शिक्षा, जो कभी समाज को जागरूक और सशक्त बनाने का माध्यम हुआ करती थी, आज व्यापार बनकर रह गई है। यह विडंबना है कि जिस शिक्षा को मूल्यों और संस्कारों का स्रोत माना जाता था, वही अब केवल मुनाफे का साधन बन गई है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हमें इस ओर ध्यान देने का अवसर देता है कि शिक्षा के व्यवसायीकरण, नैतिक पतन और बढ़ते द्वंद्व ने हमारे समाज को किस दिशा में ले जाया है।
शिक्षा का व्यवसायीकरण
आज शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान और कौशल प्रदान करने से अधिक, मुनाफा कमाने तक सीमित हो गया है।
1. महंगी शिक्षा: प्राइवेट स्कूल और कॉलेज शिक्षा को इतना महंगा बना चुके हैं कि यह आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई है।
2. गुणवत्ता की कमी: शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्रियां देना रह गया है, जबकि ज्ञान और व्यवहारिक शिक्षा पर ध्यान कम हो गया है।
3. असमानता: पैसे के आधार पर शिक्षा का स्तर तय हो रहा है, जिससे गरीब तबके के बच्चे पीछे रह जाते हैं।
संस्कार और नैतिकता गौण हो गई है
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों में नैतिकता, संस्कार और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करना था। लेकिन आधुनिक शिक्षा प्रणाली में यह पहलू लगभग समाप्त हो चुका है।
1. मूल्यों की कमी: नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आज के युवा नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं।
2. संवेदनहीनता: युवा पीढ़ी में समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदारी की भावना कम होती जा रही है।
3. लालच और स्वार्थ: शिक्षा का उद्देश्य समाज के प्रति योगदान देना नहीं, बल्कि व्यक्तिगत सफलता और धन अर्जित करना बन गया है।
बढ़ते द्वंद्व और अत्याचार
शिक्षा का उद्देश्य समाज में शांति और सामंजस्य स्थापित करना था, लेकिन आज इसके विपरीत हो रहा है।
1. प्रतिस्पर्धा का दबाव: बच्चों पर पढ़ाई और करियर को लेकर इतना दबाव है कि वे मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे हैं।
2. असमानता: शिक्षा में भेदभाव और असमानता से समाज में द्वंद्व बढ़ रहा है।
3. बढ़ता अपराध: नैतिक शिक्षा के अभाव में युवा पीढ़ी अपराध, भ्रष्टाचार और हिंसा की ओर अग्रसर हो रही है।
समाधान की आवश्यकता
1. मूल्य आधारित शिक्षा: शिक्षा में नैतिकता और संस्कार को पुनः शामिल करना होगा।
2. सभी के लिए समान शिक्षा: शिक्षा को व्यापार से निकालकर सभी के लिए समान और सुलभ बनाना होगा।
3. शिक्षकों की भूमिका: शिक्षक केवल पढ़ाने तक सीमित न रहें, बल्कि बच्चों में नैतिकता और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करें।
4. सरकार की भूमिका: शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगाने और सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
शिक्षा केवल डिग्री या नौकरी पाने का माध्यम नहीं है, यह समाज को बेहतर बनाने और आने वाली पीढ़ियों को सशक्त बनाने का साधन है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि समाज को नैतिक, शांतिपूर्ण और प्रगतिशील बनाना होना चाहिए।
"शिक्षा का असली उद्देश्य धन अर्जित करना नहीं, बल्कि समाज को संस्कारित और सशक्त बनाना है। जब तक हम इसे नहीं समझेंगे, तब तक शिक्षा का मूल उद्देश्य अधूरा रहेगा।"
No comments:
Post a Comment