लोहड़ी, उत्तर भारत में हर्षोल्लास और परंपराओं का
प्रतीक त्योहार है, जो हर वर्ष 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से पंजाब,
हरियाणा और
हिमाचल प्रदेश के किसानों का त्योहार है, लेकिन इसकी लोकप्रियता अब पूरे भारत में फैल
चुकी है। लोहड़ी का इतिहास और महत्व कई पौराणिक कहानियों और लोककथाओं से जुड़ा हुआ
है, जिनमें दुल्ला भट्टी की कथा प्रमुख स्थान रखती है।
दुल्ला भट्टी का परिचय
दुल्ला भट्टी 16वीं शताब्दी में पंजाब
क्षेत्र का एक ऐतिहासिक नायक था। मुगलों के शासनकाल में जब गरीब और असहाय लोगों पर
अत्याचार हो रहे थे, तब दुल्ला भट्टी ने कमजोरों की सहायता करने और अन्याय के
खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। उसे "पंजाब का रॉबिन हुड" भी कहा
जाता है, क्योंकि उसने अमीरों से धन छीनकर गरीबों में बांटा।
दुल्ला भट्टी और लोहड़ी
लोहड़ी के गानों और परंपराओं का केंद्रबिंदु
दुल्ला भट्टी की वही कहानी है, जिसमें उसने गरीब लड़कियों को अत्याचारों से बचाया और उनकी
शादियां करवाईं। मुगलों के शासन में जब युवा लड़कियों को गुलामी के लिए बेचा जा
रहा था, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी हिंदू रीति-रिवाजों से
करवाई।
लोककथाओं के अनुसार, दुल्ला भट्टी ने दो अनाथ
लड़कियों, सुंदरी और मुंदरी, को बचाकर उनकी शादी धूमधाम से करवाई। शादी के दौरान उसने
स्वयं उपहार देकर पिता का कर्तव्य निभाया। इस घटना को लोहड़ी
के गीतों में बड़े गर्व और भावुकता के साथ गाया जाता है।
लोहड़ी के गीत और दुल्ला
भट्टी
लोहड़ी का कोई भी उत्सव दुल्ला भट्टी के बिना
अधूरा माना जाता है। हर घर और गली में बच्चे और बड़े मिलकर गाते हैं:
सुंदर-मुंदरिये हो!
तेरा कौन विचारा हो!
दुल्ला भट्टी वाला हो!
दुल्ले ने धी ब्याही हो!
शेर शक्कर पाई हो!
यह गीत दुल्ला भट्टी की बहादुरी और उसके द्वारा
किए गए सामाजिक सुधारों की प्रशंसा करता है। इसे गाकर लोग उसकी वीरता को याद करते
हैं और उसके प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
लोहड़ी की परंपराएं और
दुल्ला भट्टी की भूमिका
लोहड़ी के दौरान लकड़ियों की बड़ी-बड़ी अग्नि
जलाई जाती है, जो गर्माहट और प्रकाश का प्रतीक है। इस अग्नि के चारों ओर
लोग इकट्ठा होकर गाने गाते हैं, नृत्य करते हैं और मूंगफली, तिल, रेवड़ी, और गुड़ अर्पित
करते हैं। यह सब एकजुटता और भाईचारे का प्रतीक है। दुल्ला भट्टी की कथा हमें
सिखाती है कि समाज में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्ची मानवता
है।
दुल्ला भट्टी का आदर्श और
आज की पीढ़ी
दुल्ला भट्टी की कहानी केवल पौराणिक कथा नहीं है,
बल्कि यह समाज
को एक संदेश देती है कि हमें हमेशा अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और जरूरतमंदों
की मदद करनी चाहिए। लोहड़ी का पर्व हमें यह भी सिखाता है कि उत्सव का असली अर्थ
परंपराओं के साथ-साथ सामाजिक सेवा और एकजुटता में है।
अत: लोहड़ी केवल एक फसल का त्योहार नहीं है,
बल्कि यह हमारे
सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है। दुल्ला भट्टी की कथा इस
त्योहार को और अधिक अर्थपूर्ण बनाती है। यह न केवल इतिहास की याद दिलाती है,
बल्कि यह भी
सिखाती है कि बहादुरी, परोपकार और न्याय की भावना हमेशा प्रासंगिक रहेगी।
इसलिए, जब भी हम लोहड़ी का उत्सव मनाते हैं और
"सुंदर-मुंदरिये हो" गाते हैं, तो हम दुल्ला भट्टी जैसे नायक को सलाम करते हैं,
जिसने समाज को
बेहतर बनाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।
No comments:
Post a Comment