हिन्दी केवल भारत की भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। यह भाषा न केवल हमें अपने इतिहास और परंपराओं से जोड़ती है, बल्कि आज विश्व मंच पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है, जिससे हिन्दी के प्रचार-प्रसार और इसके प्रति जागरूकता को बढ़ावा मिलता है।
विश्व हिन्दी दिवस की शुरुआत
विश्व हिन्दी दिवस की परंपरा 10 जनवरी 2006 से आरंभ हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस दिन को वैश्विक स्तर पर हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने और उसका महत्व रेखांकित करने के लिए स्थापित किया। हालांकि, हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयास बहुत पहले से ही शुरू हो गए थे।
इंदिरा गांधी की भूमिका
हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के प्रयासों में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा दिया और इसके महत्व को विश्व समुदाय के सामने प्रस्तुत किया। 1975 में, उनकी पहल पर पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में आयोजित किया गया, जिसमें हिन्दी को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में बड़े कदम उठाए गए।
विदेशों में हिन्दी सिखाने के प्रयास
आज विश्व के कई देशों में हिन्दी सीखने और सिखाने के कार्यक्रम चल रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) और अन्य संस्थानों के माध्यम से विभिन्न देशों में हिन्दी कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। अमेरिका, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में हिन्दी सिखाने के लिए विशेष स्कूल और केंद्र खोले गए हैं।
इसके अतिरिक्त, भारतीय दूतावास और उच्चायोग भी विदेशों में हिन्दी प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। हिन्दी फिल्मों, गीतों और साहित्य के माध्यम से भी विदेशों में इस भाषा की लोकप्रियता बढ़ी है। आज, कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक वैकल्पिक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है, और इंटरनेट पर हिन्दी सामग्री की मांग में भी वृद्धि हुई है।
हिन्दी का वैश्विक महत्व
आज हिन्दी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। यह भाषा न केवल भारतीय मूल के लोगों को, बल्कि अन्य संस्कृतियों के लोगों को भी आकर्षित कर रही है। डिजिटल युग में हिन्दी ने अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखा है और सोशल मीडिया तथा प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपनी पहुंच को और विस्तारित किया है।
अंत में यही कहा जा सकता है कि विश्व हिन्दी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान, हमारी शक्ति और हमारी धरोहर है। इसे संरक्षित और संवर्धित करना हम सभी का कर्तव्य है। आइए, इस दिन पर यह संकल्प लें कि हिन्दी को वैश्विक स्तर पर और अधिक सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाने के लिए हम हरसंभव प्रयास करेंगे।
"हिन्दी है हमारी संस्कृति की रागिनी, इसे विश्व भर में गूंजने दो।"
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