Sunday, January 19, 2025

बच्चों की परवरिश में अनुशासन और सहनशीलता का महत्व



आज का समय हमारी परवरिश और शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लेकर आया है। वह युग जब शिक्षक को बच्चों का सबसे बड़ा मार्गदर्शक और अनुशासन का प्रतीक माना जाता था, अब बीते दिनों की बात लगती है। यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि कैसे शिक्षकों और माता-पिता के बदलते दृष्टिकोण ने बच्चों की मानसिकता और जीवन जीने के तरीके को प्रभावित किया है।

शिक्षकों का बदलता स्थान और माता-पिता का हस्तक्षेप

पहले, शिक्षक केवल कक्षा तक सीमित नहीं थे। वे जीवन के हर मोड़ पर बच्चों को सिखाने और सही दिशा दिखाने वाले आदर्श होते थे। जब कोई बच्चा अपने माता-पिता की बात नहीं सुनता था, तो माता-पिता उसे शिक्षक के पास ले जाकर कहते थे, "मास्टर जी, इसका थोड़ा ख्याल रखिए।" शिक्षक उस बच्चे को जीवन के सही मार्ग पर लाने के लिए जिम्मेदारी उठाते थे, चाहे इसके लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता हो।

आज, स्थिति बिलकुल उलट गई है। अगर शिक्षक बच्चों को डांट देते हैं या अनुशासन में रखते हैं, तो माता-पिता तुरंत मोर्चा लेकर स्कूल पहुंच जाते हैं। कई बार तो वे शिक्षकों को अपने बच्चों के सामने डांटते, अपमानित करते या यहां तक कि मारपीट पर उतर आते हैं। इस तरह की घटनाओं ने न केवल शिक्षकों का मान घटाया है, बल्कि बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान की भावना भी कमजोर कर दी है।

बच्चों का बढ़ता अहंकार और लाड़-प्यार का प्रभाव

माता-पिता का यह रवैया बच्चों को "पैम्पर" करने की प्रक्रिया में बदल गया है। बच्चे अब समझने लगे हैं कि कोई भी उनकी गलती पर सवाल नहीं उठा सकता। उनके माता-पिता हर स्थिति में उनका बचाव करेंगे। इस अतिसंवेदनशील परवरिश ने बच्चों को इतना सहुलियत भरा जीवन दे दिया है कि वे छोटी-छोटी कठिनाइयों को भी सहन नहीं कर पाते।

अगर घर में लाइट चली जाए और पंखा दो मिनट के लिए बंद हो जाए, तो बच्चे इसे अपनी "दुनिया का सबसे बड़ा चैलेंज" मानने लगते हैं। यह वही बच्चे हैं जिन्हें कभी अपने जीवन की छोटी से छोटी कठिनाई का सामना नहीं करने दिया गया। वे जीवन के उन सबक से वंचित रह जाते हैं जो कठिन परिस्थितियों का सामना करने से सीखे जा सकते हैं।

परिणाम: तनाव, अकेलापन और आत्महत्या की प्रवृत्ति

आज, यह आश्चर्य की बात नहीं कि बच्चे तनाव, अकेलेपन और आत्महत्या जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जब उन्हें जीवन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, तो वे उसका समाधान खोजने के बजाय हताश हो जाते हैं। जीवन की जरा-सी भी बाधा उनके लिए अकल्पनीय चुनौती बन जाती है।

यह समस्या केवल बच्चों की नहीं, बल्कि माता-पिता और समाज की भी है। बच्चे जब हर समय "पैम्पर" किए जाते हैं, तो वे यह नहीं सीख पाते कि विफलता भी जीवन का हिस्सा है। उन्हें यह समझना चाहिए कि हर चुनौती से एक नया सबक मिलता है और कठिन परिस्थितियां ही इंसान को मजबूत बनाती हैं।

क्या किया जा सकता है?

इस समस्या का समाधान माता-पिता और शिक्षकों के संतुलित दृष्टिकोण में छिपा है:

  1. शिक्षकों को सम्मान दें: माता-पिता को यह समझना होगा कि शिक्षक बच्चे के भले के लिए ही अनुशासनात्मक कदम उठाते हैं। शिक्षकों का सम्मान और सहयोग देना बच्चों को सही दिशा में ले जा सकता है।
  2. अति-लाड़-प्यार से बचें: बच्चों को हर बात पर बचाने और उनके लिए हर समस्या का समाधान तैयार करने की बजाय, उन्हें छोटी-मोटी कठिनाइयों का सामना करने दें।
  3. जीवन कौशल सिखाएं: बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि असफलता और चुनौतियां जीवन का हिस्सा हैं। उन्हें यह समझने में मदद करनी चाहिए कि समस्याओं का समाधान खोजने की ताकत उनके भीतर है।
  4. संवाद और सहनशीलता: बच्चों के साथ नियमित संवाद करें और उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर दें। साथ ही, सहनशीलता और मानसिक मजबूती को बढ़ावा दें।

निष्कर्ष

बच्चों की परवरिश में अनुशासन और सहनशीलता का सही संतुलन आवश्यक है। शिक्षक और माता-पिता को मिलकर बच्चों को जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए। यदि हम बच्चों को हर समस्या से बचाते रहेंगे, तो हम उन्हें जीवन जीने की सबसे महत्वपूर्ण कला—संघर्ष करना और उससे उभरना—सिखाने में विफल रहेंगे।
यह केवल बच्चों के भविष्य के लिए ही नहीं, बल्कि एक मजबूत समाज के निर्माण के लिए भी जरूरी है।

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