कृत्रिम दुनिया में कैद
चमक रही है स्क्रीन की दुनिया,
पर बुझ रही है मन की धुनिया।
हर चेहरा अब फोन में गुम है,
सजीव जीवन कहीं कम है।
बातें होती हैं चैट के जरिये,
भावनाएं अब इमोजी बन गईं।
आंखों में न आँसू रहते हैं,
हँसी भी अब तस्वीर बन गई।
बच्चा खेल नहीं, ऐप में खोया,
बूढ़ा अपनों को तरसता रोया।
भोजन साथ नहीं, पोस्ट बना,
रिश्ता दिखावा बनकर ढहा।
रिश्ते, संवेदना, आत्मीयता —
सब खो गई तकनीक की भीड़ में।
जीवन हुआ यंत्रवत् चलता,
मानवता बस रही एक नीड़ में।
चलो लौटें उस सजीव पथ पर,
जहाँ संवाद हों, स्पर्श हों सरल।
जहाँ रिश्तों की गर्माहट हो,
और हृदय हों निर्मल, शीतल।
5 comments:
Well said
Bahut khoob 👌👌
Very True statement.
कटु ,परंतु सत्य👍
Nice Truth naked
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