भारत चौथी
अर्थव्यवस्था – लेकिन युवाओं के हाथ खाली क्यों?
✍️ Acharya
Ramesh Sachdeva
“जिस देश का युवा लोन से रोटी खरीदने को मजबूर हो, वहां अर्थव्यवस्था की ऊँचाई कितनी भी हो – विकास अधूरा है।”
भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। यह खबर अख़बारों की हेडलाइन बन रही है, टीवी पर विश्लेषण हो रहे हैं, और सत्ता पक्ष इस उपलब्धि
को चुनावी शंखनाद की तरह भुना रहा है। लेकिन सवाल यह है — क्या यह आंकड़ा असल ज़िंदगी में बदलाव लाया है? क्या भारत का आम नागरिक, खासकर युवा, इस ‘उपलब्धि’ से खुशहाल हुआ है?
🔹 क्या केवल
रैंकिंग गर्व का कारण हो सकती है?
यदि कोई छात्र
33% अंक लेकर किसी कक्षा में 3rd या 4th स्थान पर आ जाए — तो क्या यह गर्व
का विषय है?
क्या शिक्षक, माता-पिता या समाज उसकी
प्रशंसा करेंगे?
GDP की रैंकिंग भी ऐसी ही
स्थिति में है। जब देश की आर्थिक असमानता
चरम पर है, बेरोजगारी आसमान छू रही है, और लोग लोन
रोटी के लिए ले रहे हैं — तब चौथे नंबर पर पहुंचना क्या
असल विकास का संकेत है या सिर्फ आंकड़ों का भ्रम?
🔹 GDP डबल हुई, लेकिन जनता की जेब क्यों खाली है?
2015 में भारत की अर्थव्यवस्था 2.1
ट्रिलियन डॉलर थी, जो अब 2024 तक 4 ट्रिलियन डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है। यह दोगुना से भी अधिक वृद्धि है — लेकिन इसका असर कहाँ दिखता है?
- क्या एक किसान को अपनी
फसल का दाम दोगुना मिला?
- क्या एक पढ़ा-लिखा
बेरोजगार युवा अब नौकरी में है?
- क्या एक श्रमिक का
वेतन दोगुना हुआ है?
यदि इन सवालों का जवाब ‘नहीं’ है, तो यह आर्थिक उन्नति नहीं, सिर्फ ‘आंकड़ों
का खेल’ है।
🔹 आंकड़े बनाम
वास्तविकता
क्षेत्र |
आंकड़ों में उन्नति |
ज़मीनी सच्चाई |
GDP |
$2.1T ➝ $4T |
बेरोजगारी दर अब भी 7-8% |
स्टार्टअप |
100k+ |
90% स्टार्टअप 5 साल में बंद |
सब्सिडी योजनाएं |
करोड़ों में राशि |
लाभार्थी को आवेदन में भी संघर्ष |
शिक्षा |
विश्व रैंकिंग बेहतर |
स्किल-मिसमैच और रोजगारहीन डिग्रियाँ |
🔹 वास्तविक
अर्थव्यवस्था का मापदंड क्या होना चाहिए?
- जब कोई युवा लोन रोटी
के लिए नहीं, स्टार्टअप के लिए ले
- जब मजदूर को न्यूनतम
नहीं, सम्मानजनक मजदूरी मिले
- जब किसानों को
कर्जमुक्ति नहीं, लाभकारी मूल्य मिले
- और जब सरकार GDP नहीं, GHP (Gross Happiness of People) पर ध्यान दे
🔚 आंकड़े झूठ
नहीं बोलते, पर वे पूरी सच्चाई नहीं बताते
GDP रैंकिंग पर गर्व तब होगा जब उसके लाभ सिर्फ कॉरपोरेट
बोर्डरूम तक नहीं, बल्कि गाँव की चौपाल, शहर के ऑटो चालक और
बेरोजगार ग्रेजुएट तक पहुंचे।
भारत को अगर चौथी नहीं, पहली अर्थव्यवस्था बनना है
— तो युवा को रोटी, शिक्षा और
सम्मान सबसे पहले देना होगा।
देश तब महान बनता है जब उसकी ऊँचाई से ज्यादा उसकी गहराई
मजबूत हो।
वरना चौथे स्थान की ये पदवी इतिहास में एक
आर्थिक छलावा बनकर रह जाएगी।
6 comments:
Nice analysis. Some times data can be mislead too.
Well described the topic .
भाईजान यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है । विशेषज्ञों के अनुसार अभी जापान जैसे विकसित देश को पीछे छोड़ने में हमें कई दशक लगेंगे...
Thanks ji
Thanks
सही कहा आपने
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