अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, कुछ तथाकथित शांति-दूत ‘युद्धविराम’ (Ceasefire) की अपील करने लगते हैं। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान फिर सुर्खियों में आया – जिसमें उन्होंने युद्धविराम या मध्यस्थता की बात की। पर सवाल यह उठता है कि क्या यह अपील समस्या का समाधान है या आतंक के लिए नई साँस?
पाकिस्तान की दशकों से नीति एक जैसी रही है – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को पीड़ित दिखाना और अंदरखाने आतंक को पालना। IMF जैसे संगठनों से अरबों डॉलर का कर्ज लेना, और फिर उसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों में करना क्या पाकिस्तान की नीति नहीं बन चुकी? क्या पाकिस्तान को दुनिया की परीक्षा लेने और भारत की सहनशीलता को कमजोर समझने की छूट मिलनी चाहिए?
भारत ने हमेशा शांति की पहल की है, लेकिन यह शांति तब तक अधूरी है जब तक आतंक के अड्डे बंद नहीं होते। क्या युद्धविराम उन आतंकियों के लिए तैयारी का नया मौका नहीं बन जाता? क्या यह सिर्फ भारत को शांत रहने के लिए मजबूर करने की चाल नहीं है?
यदि डोनाल्ड ट्रंप सचमुच वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभाना चाहते हैं, तो उन्हें अस्थायी ‘Ceasefire’ की अपील से आगे बढ़कर स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। क्या वह इतना साहस दिखा सकते हैं कि पाकिस्तान से कहें – या तो आतंक छोड़ो या दुनिया से अलग हो जाओ?
हम भारतवासी कुछ सच्चे सवाल उठा रहे हैं:
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क्या हर बार भारत को ही पीछे हटने की अपील की जाएगी?
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क्या आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने के बदले में भारत को युद्धविराम का पाठ पढ़ाया जाएगा?
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क्या शांति की परिभाषा केवल भारत के मौन से जुड़ी है?
भारत अब बदल चुका है। हमारी सहनशीलता हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति है। पर जब कोई बार-बार परीक्षा लेने लगे, तो उत्तर देना भी अनिवार्य हो जाता है।
हम डोनाल्ड ट्रंप से और पूरी दुनिया से पूछते हैं:
अगर आपमें हिम्मत है, तो इस समस्या को स्थायी रूप से सुलझाइए – आतंक के स्त्रोत को बंद कराइए। वरना शांति की हर अपील केवल आतंकियों को नया मौका देने जैसी होगी।
1 comment:
Nip the evil in the bud...👍
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