असफलता के बाद थामिए हाथ, मत तोलिए अंक
आचार्य रमेश सचदेवा
परीक्षा परिणामों का समय विद्यार्थियों के लिए
जितना निर्णायक होता है, उतना ही संवेदनशील भी।
इस दौर में यदि
किसी बच्चे को उम्मीद के अनुसार अंक या परिणाम नहीं मिलता, तो वह स्वयं को
असफल समझ बैठता है।
ऐसे में
अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका केवल मार्गदर्शन की नहीं, बल्कि
भावनात्मक संबल की होती है।
जब कोई सपना टूटता है, तो केवल काग़ज़
पर अंक नहीं गिरते —
कई बार
आत्मविश्वास, साहस और भविष्य की दिशा भी डगमगाने लगती है।
इस समय बच्चा
सबसे अधिक अपनेपन, समझ और सकारात्मक ऊर्जा की तलाश करता है।
यदि उस पर डाँट, तिरस्कार या
तुलना थोपी जाती है, तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, असफलता को सीख
और सुधार का अवसर मानना चाहिए।
बच्चों से
खुलकर संवाद करें, उनके मन की बात जानें, उन्हें विश्वास दिलाएँ कि
एक परीक्षा से जीवन समाप्त नहीं होता।
युवाओं को यह समझाना होगा कि हर सफल व्यक्ति की
कहानी में कुछ असफल अध्याय जरूर होते हैं।
टूटे सपनों से
नए रास्ते बनते हैं — यदि परिवार और समाज उन्हें सहारा दें।
परीक्षा के परिणाम चाहे जैसे हों, हर बच्चे को यह
एहसास होना चाहिए कि वह नंबर नहीं, एक व्यक्तित्व है।
एक कोशिश हार
सकती है — लेकिन हौसला कभी नहीं।
परीक्षा का परिणाम नहीं, जीवन का
उद्देश्य महत्वपूर्ण है
NEET, JEE या किसी भी परीक्षा में
असफलता अंत नहीं, एक मोड़ है।
हर बच्चा एक
संभावना है, न कि एक रैंक या स्कोर।
जब परिणाम आशा
के अनुरूप न आएं, तो डाँटना नहीं, साथ देना चाहिए।
बच्चे को यह
विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि वह काबिल है, और उसके पास आगे बढ़ने के
कई रास्ते हैं।
संवेदनशील
संवाद, सकारात्मक माहौल और भरोसे से हम हर टूटे सपने को नई उड़ान दे सकते हैं।
कहते हैं न कि जब सपने टूटते हैं तो परीक्षा के
बाद बच्चों को सँभालने की ज़िम्मेदारी हमारी है
यही सच्ची
परवरिश और समझदारी है।
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