Thursday, May 8, 2025

महंगाई, बेरोज़गारी और आम आदमी की चिंता


 महंगाई, बेरोज़गारी और आम आदमी की चिंता 

(लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा)

भारत जैसे विकासशील देश में आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता आज रोटी, रोजगार और राहत बन चुकी है। एक ओर महंगाई ने उसकी जेब को खाली कर दिया है, वहीं दूसरी ओर बेरोज़गारी ने उसकी उम्मीदों को कमजोर कर दिया है। इन दोनों संकटों के बीच आम आदमी केवल जिंदा रहने की जद्दोजहद में उलझा हुआ है।

1. महंगाई – हर सांस पर बोझ:
आज के दौर में महंगाई किसी विषाणु की तरह हर वर्ग को प्रभावित कर रही है। दाल, आटा, तेल, गैस, दूध जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। पेट्रोल और डीज़ल के दामों ने परिवहन को महंगा बना दिया है, जिसका सीधा असर हर वस्तु की लागत पर पड़ा है। आम आदमी की मासिक आय तो स्थिर है, लेकिन खर्च कई गुणा बढ़ चुका है।

2. बेरोज़गारी – डिग्रियों के ढेर पर खाली जेब:  
देश में करोड़ों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, लेकिन नौकरी के अवसर सीमित हैं। सरकारी भर्तियाँ या तो वर्षों से रुकी हुई हैं या इतनी प्रतिस्पर्धी हैं कि आम उम्मीदवार हताश हो जाता है। निजी क्षेत्र में या तो न्यूनतम वेतन है या काम की असुरक्षा। इससे युवा वर्ग मानसिक दबाव में आ रहा है, और कहीं-कहीं अपराध या पलायन की ओर भी अग्रसर हो रहा है।

3. आम आदमी – दबाव में, फिर भी उम्मीद में: 
इन दोनों समस्याओं के बीच आम आदमी सबसे ज्यादा पीड़ित है। वह ईमानदारी से टैक्स देता है, कर भरता है, लेकिन बदले में उसे सुविधाएं नहीं मिलतीं। हर महीने की शुरुआत में उसके हाथ में कुछ सपने होते हैं, लेकिन महीने के अंत तक सिर्फ खर्च और चिंताएं रह जाती हैं। फिर भी वह हर सुबह नई आशा के साथ उठता है – यही उसकी ताकत भी है और पीड़ा भी।

4. समाधान की ओर – शासन और समाज की ज़िम्मेदारी:

  • सरकार को चाहिए कि वह मूल्य नियंत्रण की स्पष्ट नीति अपनाए।
  • स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन की योजनाएं सक्रिय की जाएं।
  • युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण देकर स्वरोज़गार के लिए प्रेरित किया जाए।
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश और योजनाओं के उचित क्रियान्वयन से भी राहत संभव है।
  • समाज को भी आगे आकर संवेदनशीलता और सहयोग की भावना को मजबूत करना चाहिए।

उपरोक्त सभी बिंदुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि महंगाई और बेरोज़गारी के दुष्चक्र से आम आदमी को निकालना सिर्फ सरकार का दायित्व नहीं, पूरे समाज की सांझी ज़िम्मेदारी है। यदि नीतियां जनहितकारी हों, प्रशासन ईमानदार हो और समाज संवेदनशील हो, तो इन समस्याओं का समाधान संभव है। आम आदमी के चेहरे पर मुस्कान लौटाना ही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है।

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