Wednesday, May 28, 2025

रोज़गार के नाम पर सिर्फ घोषणाएं नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहिए

  


रोज़गार के नाम पर सिर्फ घोषणाएं नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहिए

✍️ आचार्य रमेश सचदेवा

"विश्व की सबसे युवा आबादी अगर बेरोजगार है, तो यह सिर्फ एक आर्थिक समस्या नहीं, राष्ट्रीय आपदा है।"

आज जब सरकार हर मोर्चे पर ‘विकास’ का दावा कर रही है, तो ज़मीनी हकीकत यह है कि देश का सबसे बड़ा संकट रोजगार है। करोड़ों युवाओं के पास डिग्रियां तो हैं, लेकिन नौकरी नहीं। रोजगार मेले सजाए जा रहे हैं, लेकिन रोज़गार के अवसर सिमटते जा रहे हैं।

सवाल सिर्फ आंकड़ों का नहीं, भरोसे का है

सरकार कहती है कि MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र में लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। लेकिन क्या कोई ज़मीनी रिपोर्ट यह बताती है कि कितने युवाओं को स्थायी, सुरक्षित और गरिमापूर्ण रोजगार मिला?

घोषित 1.73 लाख करोड़ के निवेश का 45% ही ज़मीन पर उतर पाया। बजट घोषणाएं हुईं, लेकिन काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सकीं।

कोशल भारत का सपना या स्लोगन?

"स्किल इंडिया" एक शानदार विचार था, लेकिन इसके क्रियान्वयन ने निराश किया। कई युवाओं को प्रमाणपत्र तो मिले, लेकिन नौकरी नहीं। क्या हमने कौशल विकास को भी केवल कोर्स और डिग्री में बदल दिया?

 नौकरी के लायक बना कौन रहा है?

देश की शिक्षा प्रणाली युवाओं को प्रतियोगिता परीक्षा की दौड़ में झोंक रही है, लेकिन उद्योगों की मांग के अनुसार तैयार नहीं कर पा रही। हर छात्र डॉक्टर या आई.ए.एस. नहीं बन सकता, लेकिन वह कुशल कारीगर, टेक्निशियन, डिज़ाइनर या उद्यमी बन सकता है — बशर्ते उसे ऐसा माहौल मिले।

अब जरूरी है नीति नहीं, नीयत में बदलाव

1.       MSME को महज़ नारेबाज़ी से निकालकर नीति का केंद्र बनाना होगा।

2.       शिक्षा को व्यवसायिक वास्तविकताओं से जोड़ना होगा।

3.       डिजिटल उद्यमिता, ग्रामीण स्टार्टअप और लोकल-टू-ग्लोबल दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना होगा।

4.       सरकारी नौकरियों के भ्रम से बाहर निकालकर युवाओं को आत्मनिर्भरता की राह पर प्रेरित करना होगा।

अंत में – हर युवा को नौकरी नहीं, अवसर चाहिए

देश के युवा में ताक़त है, लेकिन वह रोज़गार का मोहताज न बने। उसे समझने वाला सिस्टम, सिखाने वाला शिक्षक और सहारा देने वाली नीति चाहिए।
देश तभी आत्मनिर्भर बनेगा, जब उसका युवा घोषणाओं से नहीं, मार्गदर्शन और मौकों से सशक्त होगा।

 

6 comments:

Dr K S Bhardwaj said...

आज का निजाम तो समाज हित का कोई काम करने वाला है नहीं. आज बेरोजगारी चरम पर है मगर किसी को परवाह नहीं.
अच्छा लेख

Anonymous said...

Very well described the topic .

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

सही है। इसने तो सिद्ध कर दिया है कि सावन का अंधे को हरा ही हरा नजर आता है ।

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks

Amit Behal said...

Politics of fake promises...

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Yes