क्या आतंक का वित्त पोषण वैश्विक आर्थिक सहायता से हो रहा है?
जब आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्र अपने नागरिकों की रक्षा के लिए हर रोज संघर्ष कर रहे हैं, तब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा उन देशों को अरबों डॉलर का कर्ज देना जिनपर आतंकवाद को शह देने के गंभीर आरोप हैं, एक बड़ा वैश्विक विरोधाभास है।
पाकिस्तान, जिसकी धरती से न जाने कितनी बार आतंक की आग फैली है—जिसके खिलाफ भारत ने बार-बार विश्व मंचों पर सबूत प्रस्तुत किए हैं—उसे IMF द्वारा एक के बाद एक आर्थिक राहत पैकेज दिया जाना, क्या वाकई सही निर्णय है?
क्या IMF को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि:
- दिया गया कर्ज जनता के कल्याण में लगे, न कि आतंकियों के ठिकानों को बचाने में?
- जिस देश पर FATF जैसी संस्थाओं ने निगरानी रखी है, वह पहले खुद को आतंक मुक्त साबित करे?
IMF का यह कहना कि “हम केवल आर्थिक संकेतकों के आधार पर निर्णय लेते हैं” अब काफी नहीं।
जब आतंकवादी हमलों में निर्दोष लोग मारे जाते हैं, तब आर्थिक संतुलन से अधिक ज़रूरी हो जाता है – नैतिक संतुलन।
भारत सहित सभी वैश्विक लोकतंत्रों को अब यह मांग करनी चाहिए कि IMF, FATF और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं सख्त मानदंड तय करें, ताकि आतंक को पोषण करने वाले देशों को आर्थिक मदद मिलने से पहले उन्हें जवाबदेह ठहराया जा सके।
क्योंकि अगर आतंक को लोन मिलता रहेगा, तो शांति को कब मौका मिलेगा?
1 comment:
Absolutely correct...these International institutions are showing double standard...
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