अब जनसंख्या नहीं, हर समस्या की जड़ है वोटों की राजनीति
एक समय था जब
देश की हर बड़ी समस्या — बेरोज़गारी, गरीबी, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव,
यातायात की
समस्याएं या कुपोषण — सबका कारण बढ़ती जनसंख्या को माना जाता था। जनसंख्या वृद्धि
को राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा बताया जाता था। सरकारें जनसंख्या नियंत्रण
को लक्ष्य बनाकर नीति निर्धारण करती थीं। लेकिन पिछले दो दशकों में देश की राजनीति
में जो बदलाव आया है, उसने एक नई सच्चाई को उजागर किया है — अब समस्याओं की जड़
केवल बढ़ती जनसंख्या नहीं, बल्कि वोटों की राजनीति बन चुकी है।
आज नीतियां जनसंख्या की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं
बनतीं, बल्कि इस बात पर बनती हैं कि कौन-सी नीति किस वर्ग, जाति या धर्म को खुश कर
सकती है और कितने वोट दिला सकती है।
आज अधिकांश योजनाएं जनहित के बजाय वोट बैंक
साधने के लिए बनाई जाती हैं। उदाहरण के रूप में, किसी राज्य सरकार द्वारा
केवल एक विशेष समुदाय की लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति योजना शुरू करना
नीतिगत पक्षपात का उदाहरण है। इसी प्रकार कुछ राज्यों में बिजली-पानी मुफ्त देने
की योजनाएं बनती हैं, जिनका लाभ केवल उन्हीं को मिलता है जो राजनीतिक रूप से
उपयोगी माने जाते हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं
जिन्हें राजनीति से परे रखा जाना चाहिए, आज वे भी वोट की गणनाओं में उलझकर रह गई हैं।
सरकारें निजी स्कूलों को नियंत्रित करने के नाम पर लोकलुभावन घोषणाएं करती हैं,
जबकि सरकारी
स्कूलों की हालत सुधारने की कोई गंभीर कोशिश नहीं होती। डॉक्टरों की भारी कमी,
अस्पतालों में
दवाइयों का अभाव, और शिक्षकों के रिक्त पद — ये सब समस्याएं आज भी जस की तस
बनी हुई हैं।
कानून व्यवस्था भी अब निष्पक्ष नहीं रही। अपराधी
अगर किसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील वर्ग से जुड़ा है, तो उसके विरुद्ध कार्रवाई
करने से सरकारें हिचकती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अपराध का भय
समाप्त हो जाता है और न्याय प्रणाली कमजोर होती जाती है।
जनसंख्या नियंत्रण जैसे गंभीर विषय पर भी अब कोई
सरकार खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। यदि कोई नेता यह मुद्दा
उठाता है तो उसे सांप्रदायिक ठहराकर चुप करा दिया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि
असंतुलित जनसंख्या वृद्धि न केवल संसाधनों पर बोझ डालती है, बल्कि सामाजिक असंतुलन भी
पैदा करती है।
मुफ्त की राजनीति ने देश के आत्मसम्मान और
उत्पादकता को भी चोट पहुंचाई है। चुनाव से पहले टीवी, लैपटॉप, स्कूटर,
राशन, पैसा — हर चीज
मुफ्त देने का वादा कर दिया जाता है। राज्य दिवालिया होते जा रहे
हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की घोषणा पत्र और भाषण सुनें तो लगता है देश को स्वर्ग
बना देंगे!
आज हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि
समस्याएं बढ़ती जनसंख्या से उतनी नहीं हैं, जितनी राजनीतिक स्वार्थ से
हैं। वोटों की राजनीति ने शासन को सेवा से हटा कर सौदेबाज़ी का
माध्यम बना दिया है।
समय की मांग है कि जनता राजनीति से ऊपर उठकर
राष्ट्रहित में सोचने वाली सरकारों को समर्थन दे। नेताओं को जनसंख्या, शिक्षा,
स्वास्थ्य,
और रोजगार जैसे
दीर्घकालिक मुद्दों पर काम करने के लिए विवश करे। यदि जनता चेतनाशील नहीं बनी,
तो देश की
नीतियां केवल चुनावी जुमलों में ही सिमट जाएंगी और समस्याएं यथावत बनी रहेंगी।
लेखक:
आचार्य रमेश
सचदेवा
(शिक्षाविद् एवं
सामाजिक विचारक)
जी25 ऐजू स्टेप प्राइवेट लिमिटेड
4 comments:
अभी तक यही हो रहा है..... देखो कब नेतालोग राजनीति से उपर उठते हैं
इसी वोट बैंक राजनीति ने तो देश का बेड़ा गर्क किया है
Thanks a lot.
Thanks a lot.
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