Tuesday, May 13, 2025

कृत्रिम दुनिया में कैद


 कृत्रिम दुनिया में कैद


चमक रही है स्क्रीन की दुनिया,

पर बुझ रही है मन की धुनिया।

हर चेहरा अब फोन में गुम है,

सजीव जीवन कहीं कम है।


बातें होती हैं चैट के जरिये,

भावनाएं अब इमोजी बन गईं।

आंखों में न आँसू रहते हैं,

हँसी भी अब तस्वीर बन गई।


बच्चा खेल नहीं, ऐप में खोया,

बूढ़ा अपनों को तरसता रोया।

भोजन साथ नहीं, पोस्ट बना,

रिश्ता दिखावा बनकर ढहा।


रिश्ते, संवेदना, आत्मीयता —

सब खो गई तकनीक की भीड़ में।

जीवन हुआ यंत्रवत् चलता,

मानवता बस रही एक नीड़ में।


चलो लौटें उस सजीव पथ पर,

जहाँ संवाद हों, स्पर्श हों सरल।

जहाँ रिश्तों की गर्माहट हो,

और हृदय हों निर्मल, शीतल।

5 comments:

Anonymous said...

Well said

Anonymous said...

Bahut khoob 👌👌

Anonymous said...

Very True statement.

Amit Behal said...

कटु ,परंतु सत्य👍

Anonymous said...

Nice Truth naked