Saturday, March 22, 2025

"तीन जीवन, एक संकल्प – भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अमर मित्रता"


 "तीन जीवन, एक संकल्प – भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अमर मित्रता"      

शहीद दिवस पर

आदरणीय सम्मानित और प्यारे साथियों,

आज 23 मार्च है — वह दिन जब तीन नौजवान क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा, ताकि हम आज़ादी की सांस ले सकें।   
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव — तीन नाम नहीं, बल्कि तीन दीपक हैं, जिन्होंने राष्ट्र के अंधकार को चीरकर हमें उजाले की राह दिखाई।

इनकी मित्रता केवल विचारों की नहीं थी, यह एक क्रांतिकारी आत्माओं का संगम था।

👉 "एक लक्ष्य, एक जीवन"   
तीनों अलग-अलग प्रांतों से थे — भगत सिंह पंजाब से, राजगुरु महाराष्ट्र से और सुखदेव लाहौर से।
फिर भी इनका सपना एक था — आज़ाद भारत, समान भारत।

👉 "लाहौर षड्यंत्र केस में अटूट एकता"
जब अंग्रेजों ने उन्हें अलग-अलग करके तोड़ना चाहा, तो उनका जवाब था —      
"हम अलग नहीं, भारत मां के तीन बेटे हैं।"

👉 "फांसी से पहले का वादा"  
एक रात पहले जब मौत पास थी, तो उन्होंने मुस्कराकर एक-दूसरे से कहा —      
"कल सूरज को देख नहीं पाएंगे, पर उसकी आज़ादी की किरण बनकर लौटेंगे।"

👉 "शौर्य और संयम का प्रतीक"
जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंका, तो किसी को मारा नहीं।
वे जगाना चाहते थे — और सुखदेव-राजगुरु ने भी बिना डरे अपने हिस्से की जिम्मेदारी ली।

👉 "मौत को गले लगाना भी था आसान"     
23 मार्च 1931 को जब फांसी का वक्त आया, तो तीनों एक साथ ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए चले।
फांसी से पहले भी उनके चेहरे पर डर नहीं, एक शांत मुस्कान थी।

साथियों,
इन तीनों की दोस्ती हमें यह सिखाती है कि सच्ची मित्रता वह होती है जो लक्ष्य के लिए जीना और मरना सिखाए।
इनका संघर्ष हमें यह याद दिलाता है कि क्रांति केवल बंदूक से नहीं, विचारों से भी होती है।

आज जब हम शहीद दिवस पर इन वीरों को श्रद्धांजलि देते हैं, तो केवल फूल चढ़ाना ही पर्याप्त नहीं —
हमें उनके सपनों का भारत बनाना होगा। एक ऐसा भारत जहां युवा सोचें, जागें और जिम्मेदारी लें।

तो आइए — आज हम सब मिलकर संकल्प लें: 
कि हम उस आज़ादी को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।  
हम उस मित्रता, उस साहस, उस बलिदान को हमेशा याद रखेंगे।

इंकलाब जिंदाबाद! वंदे मातरम्!

 

1 comment:

Anonymous said...

Nice information . God bless you.