Monday, March 10, 2025

अत्यधिकता का विष – आज के समय की एक अदृश्य महामारी

 


अत्यधिकता का विष – आज के समय की एक अदृश्य महामारी

गौतम बुद्ध का यह कथन – "हर वो चीज़ जो ज़रूरत से ज़्यादा हो, वही ज़हर है", आज के समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। यह युग विकास और सुविधा का है, परंतु साथ ही यह अत्यधिकता’ की अंधी दौड़ का भी है।

आज हम सूचना, सम्पत्ति, साधन, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं की बाढ़ में जी रहे हैं। मोबाइल पर लगातार सूचनाएं, सोशल मीडिया पर आभासी मान-सम्मान की लालसा, और भौतिक वस्तुओं का अंतहीन संग्रह – यह सब आधुनिक जीवन की पहचान बन चुका है। जो कभी हमें खुशी देता था, वही अब हमें बांधने लगा है। ज़रूरत से अधिक खाना, बोलना, सोचना, या यहां तक कि दूसरों की चिंता करना भी आज मानसिक विष बन चुका है।

बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी पर ‘अधिक’ का भार है – अधिक अंक, अधिक सफलता, अधिक पैसा, अधिक प्रसिद्धि। यह सब पाने की चाह में हम अपने भीतर की शांति, संबंधों की मधुरता और जीवन की सरलता को खोते जा रहे हैं।

बुद्ध का यह सादा सा सूत्र हमें याद दिलाता है कि जीवन का सुख ‘अधिक’ में नहीं, ‘उचित’ में है। जब हम अपनी इच्छाओं, आदतों और विचारों में संतुलन साध लेते हैं, तभी हम भीतर से हल्के, स्वतंत्र और प्रसन्न हो पाते हैं। यही सच्ची सफलता है – ज़हर से दूर, जीवन के मूल से जुड़ी हुई।

 

1 comment:

Amit Behal said...

अति हर चीज की बुरी