शहीद दिवस पर विशेष: क्या केवल फूल अर्पित कर देना ही कर्तव्य है हमारा?
— आचार्य रमेश सचदेवा
23 मार्च... यह तारीख भारतीय
इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जो हर भारतीय के हृदय में गर्व और दर्द दोनों भावों को एक
साथ जगा देती है। इसी दिन 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी
पर चढ़ा दिया था। इन तीनों युवा क्रांतिकारियों ने भारत माता की स्वतंत्रता के लिए
अपना जीवन बलिदान कर दिया — न कोई स्वार्थ, न कोई लालच, केवल मातृभूमि
के लिए अमर प्रेम।
आज के युवा बाइक और कारों पर भगत सिंह की
तस्वीरें लगाते हैं, टी-शर्ट पहनते हैं जिन पर "इंकलाब जिंदाबाद" लिखा
होता है, पर क्या उनके विचारों और जीवनशैली को अपनाते हैं? क्या हम सच में उस भारत की
ओर बढ़ रहे हैं, जिसका सपना इन शहीदों ने देखा था?
शहीदों का सपना
भगत सिंह का
भारत केवल स्वतंत्र नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय से परिपूर्ण भारत था। वे
समानता, शिक्षा, वैज्ञानिक सोच और युवाओं की भूमिका को महत्व देते थे। राजगुरु और सुखदेव भी
यही मानते थे कि आज़ादी केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सोच में बदलाव होनी
चाहिए।
लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी क्या वह सपना
साकार हुआ?
आज की सच्चाई
हम कहते हैं कि
आज हम उन शहीदों की बदौलत आज़ाद हवा में सांस लेते हैं। लेकिन क्या यह सच्ची
आज़ादी है, जब नेता केवल वोट और नोट की राजनीति करते हैं? जब हर कोई दूसरों को नीचा
दिखाने में ही अपनी विजय समझता है? जब झूठे वादे, भ्रष्टाचार और स्वार्थ राजनीति की रीढ़ बन चुके
हैं?
क्या सिर्फ फूल चढ़ाना काफी
है?
शहीद दिवस पर
माल्यार्पण करना एक सम्मानजनक परंपरा है, लेकिन क्या इससे हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है?
क्या यही वह
"क्रांति" है जिसकी कल्पना भगत सिंह ने की थी? यह दिन केवल श्रद्धांजलि का
नहीं, आत्ममंथन का भी दिन है।
एक संकल्प, एक परिवर्तन
आज आवश्यकता है
कि हम केवल श्रद्धांजलि न दें, बल्कि संकल्प लें — एक बेहतर भारत का निर्माण करने का,
जहां ईमानदारी,
समानता,
शिक्षा और
देशभक्ति को सर्वोपरि रखा जाए।
हमें आने वाली पीढ़ी को यह समझाना होगा कि देश
का अर्थ केवल सीमाओं से नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की सोच, कर्म और मूल्यों से है। यदि
हम आज बदलाव की पहल करेंगे, तभी भारत सच में "विकसित और उज्ज्वल" बन पाएगा।
तो आइए, इस शहीद दिवस पर केवल पुष्प न चढ़ाएं —
बल्कि प्रण
करें कि हम अपने कर्मों से उन बलिदानों को सार्थक बनाएंगे।
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे
हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।"
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