"राम मनोहर लोहिया: विचारों के क्रांतिकारी, आज भी उतने ही प्रासंगिक"
— आचार्य रमेश सचदेवा
भारतीय राजनीति, समाज और
विचारधारा में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय के साथ
फीके नहीं पड़ते — बल्कि उनके विचार समय के साथ और अधिक स्पष्ट, और अधिक ज़रूरी हो जाते हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया एक ऐसे
ही व्यक्तित्व थे — जिनकी सोच, संघर्ष और
सिद्धांत आज भी हमारे सामने कई प्रश्न खड़े करते हैं।
जीवन परिचय:
डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। उन्होंने उच्च
शिक्षा जर्मनी से प्राप्त की और महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित
रहे, पर साथ ही उन्होंने अपने
स्वतंत्र चिंतन को कभी नहीं छोड़ा।
वे केवल एक राजनेता नहीं थे — वे एक विचारक, समाजवादी चिन्तक, क्रांतिकारी, और भारतीय राजनीति के ईमानदार चेहरों में से एक थे। वे जातिवाद, सामाजिक असमानता, पूंजीवादी शोषण
और भाषाई भेदभाव के कट्टर
विरोधी थे।
प्रमुख विचार और संघर्ष:
- सामाजिक न्याय का स्वर:लोहिया जी का सबसे बड़ा योगदान था — ‘पिछड़ों को 60%’ का नारा। उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की खुलकर वकालत की।
- जातिवाद के विरुद्ध साहसिक लड़ाई:उन्होंने खुलकर कहा — "जातिवाद केवल हिन्दू समाज की समस्या नहीं, भारतीय समाज की आत्मा पर कलंक है।"
- हिंदी और भारतीय भाषाओं के पक्षधर:वे अंग्रेज़ी के आधिपत्य के विरुद्ध थे और हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि जब तक भाषा में आत्मनिर्भरता नहीं होगी, तब तक स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।
- राजनीतिक शुचिता के पक्षधर:उन्होंने ‘चौखंभा राज्य’ की कल्पना की — जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और हर स्तर पर जवाबदेही हो।
- सत्ता नहीं, व्यवस्था परिवर्तन उनका लक्ष्य था।वे विपक्ष में रहकर भी जनहित की राजनीति के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करते थे।
आज के युग में लोहिया की प्रासंगिकता:
आज जब राजनीति वोट बैंक, धार्मिक ध्रुवीकरण और व्यक्तिगत लाभ का माध्यम बन चुकी है, तब लोहिया की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है।
- जाति आधारित राजनीति बनाम सामाजिक न्याय:आज जातिवाद को केवल चुनावी गणित बना दिया गया है, जबकि लोहिया ने इसे सामाजिक सुधार का माध्यम बनाया था।क्या आज कोई नेता उस साहस से जाति-व्यवस्था को ललकारता है?
- भाषा और शिक्षा में आत्मनिर्भरता:आज भी अंग्रेज़ी का प्रभुत्व हमारे प्रशासन और न्याय प्रणाली में कायम है।लोहिया का सपना था — गांव का बच्चा भी अपनी भाषा में सोच सके, और देश चला सके।
- राजनीतिक नैतिकता:लोहिया ने सत्ता में आने की बजाय सत्ता को आईना दिखाने की राजनीति की।आज जब हर ओर नैतिक पतन है, तब उनकी सादगी और सत्यप्रियता हमें रास्ता दिखा सकती है।
- महिलाओं और वंचितों के हक में आवाज़:लोहिया स्त्री अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कहा था —"अगर महिलाएं संगठित हो जाएं, तो सत्ता अपने आप बदल जाएगी।"
प्रेरक प्रसंग: जब लोहिया जी ने प्रधानमंत्री की आलोचना
करने में भी नहीं हिचकिचाए
डॉ. राम मनोहर लोहिया का मानना था कि लोकतंत्र में सत्ता से सवाल पूछना हर
नागरिक का अधिकार और कर्तव्य है, चाहे वह व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो।
यह घटना दर्शाती है कि लोहिया जी सत्ता के सामने
भी सिर झुकाने वाले नहीं थे। वे व्यक्ति नहीं, नीति और सिद्धांतों के आधार
पर राजनीति करते थे।
1 comment:
Excellent explanation .
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