हक और धैर्य – एक दिन जरूर आएगा
जीवन की राहें सीधी नहीं होतीं। हर किसी की
यात्रा में संघर्ष, इंतज़ार और अनिश्चितता होती है। कभी-कभी हम यह सोचने लगते
हैं कि क्या हमारी मेहनत वाकई मायने रखती है? क्या हम जो सपने देख रहे
हैं, वे सच भी होंगे? ऐसे ही क्षणों में यह वाक्य दिल को ढाढ़स देता है –
"अचानक से एक दिन तुम्हारी बारी आएगी और तुम्हें वो सब मिलेगा, जिसके तुम
हकदार हो।"
यह पंक्तियाँ सिर्फ आशा नहीं, बल्कि विश्वास
का बीज हैं। यह बताती हैं कि अगर आपने सच्चे मन से मेहनत की है, अपने आप पर
विश्वास बनाए रखा है, और सही राह पर डटे रहे हैं – तो देर हो सकती है, पर अंधेर नहीं।
हकदारी यूं ही नहीं मिलती
हक़दारी किसी ख्वाहिश से नहीं बनती, वह बनती है
तपस्या से। यह दुनिया कर्म का संसार है – और जो व्यक्ति बिना थके, बिना रुके,
निरंतर आगे
बढ़ता है, उसका भाग्य खुद उसकी तरफ खिंचा चला आता है।
धैर्य की परीक्षा
कभी-कभी सफलता देर से मिलती है, ताकि वह आपको
परिपक्व बना सके। इंतज़ार की घड़ियां आत्ममंथन का समय होती हैं। वे हमारे इरादों
को और मज़बूत करती हैं, हमारे भीतर की चमक को और निखारती हैं।
'अचानक' का अर्थ
जब हम सुनते हैं "अचानक से एक
दिन", तो वह दिन सचमुच अचानक आता नहीं है। वह अनगिनत छोटे
प्रयासों, प्रार्थनाओं, अस्वीकृतियों और उम्मीदों का परिणाम होता है। लेकिन वह आता
है – और जब आता है, तो सब कुछ अर्थपूर्ण लगने लगता है।
अपने हक़ का इंतज़ार करें,
पर खुद को कभी मत भूलिए
दूसरों से तुलना करने के बजाय खुद के सफर को
अपनाइए। हर किसी का समय अलग होता है। आपकी बारी भी आएगी, पर तब जब आप सच में उसके
लायक बन जाएंगे।
अंत में यही कहा जा सकता है
कि :
धैर्य रखिए,
ईमानदारी से
कर्म करते रहिए और खुद पर यकीन मत खोइए। हो सकता है आज नहीं, पर "अचानक
किसी दिन" वो सब जरूर मिलेगा, जिसके आप सच्चे हकदार हैं।
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