द्विवार्षिक बोर्ड परीक्षा: सुधार या चुनौती? आचार्य रमेश सचदेवा
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं को वर्ष में दो बार आयोजित करने का
प्रस्ताव रखा है। यह निर्णय छात्रों को अपना प्रदर्शन
सुधारने का एक और अवसर देने के उद्देश्य से लिया
गया है। लेकिन इस बदलाव के साथ कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठते हैं:
क्या यह
छात्रों की मदद करेगा, या उनकी परेशानियाँ बढ़ा देगा?
क्या स्कूल और
शिक्षा प्रणाली इस बदलाव के लिए तैयार हैं?
इस निर्णय के संभावित लाभ और चुनौतियों को समझना आवश्यक है।
द्विवार्षिक बोर्ड परीक्षा
के संभावित लाभ
1. छात्रों को सुधार का अवसर
मिलेगा
- अभी तक, छात्र केवल एक ही परीक्षा में प्रदर्शन
सुधारने का अवसर पाते थे।
- द्विवार्षिक परीक्षा प्रणाली से कम अंक
आने पर छात्र दोबारा परीक्षा देकर अपने अंक सुधार सकते हैं।
2. परीक्षा का तनाव कम होगा
- वर्तमान में, एक ही बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लाने का
अत्यधिक दबाव रहता है।
- अगर वर्ष में दो बार परीक्षा होगी, तो
छात्रों पर "एक ही
प्रयास में सफलता" का तनाव कम होगा।
3. परीक्षा प्रणाली अधिक लचीली
होगी
- छात्रों को अपनी
तैयारी के अनुसार परीक्षा देने का अवसर मिलेगा।
- जो छात्र पहली परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर लेते
हैं, उन्हें दूसरी बार परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं होगी।
4. रटकर पढ़ाई की प्रवृत्ति घट
सकती है
- बार-बार परीक्षा देने का मौका मिलने से छात्र केवल अंक लाने की बजाय समझकर पढ़ाई करने पर
ध्यान दे सकते हैं।
- निरंतर मूल्यांकन से समग्र (Holistic)
शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
द्विवार्षिक बोर्ड परीक्षा
के संभावित चैलेंज
1. छात्रों और स्कूलों पर
बढ़ता दबाव
- परीक्षा की संख्या बढ़ने से छात्रों
पर सालभर परीक्षा का दबाव बना रहेगा।
- स्कूलों को अधिक बार
परीक्षा आयोजित करनी होगी, जिससे प्रशासनिक बोझ बढ़ सकता है।
2. कोचिंग और ट्यूशन का प्रभाव
बढ़ सकता है
- परीक्षा दो बार होने से कोचिंग
संस्थानों की मांग बढ़ सकती है, जिससे छात्रों और अभिभावकों का खर्च
बढ़ेगा।
- अतिरिक्त परीक्षा का मतलब है कि छात्रों
को सालभर कोचिंग का दबाव झेलना पड़ सकता है।
3. कमजोर छात्रों के लिए अधिक
चुनौतीपूर्ण
- कुछ छात्रों को पहली
परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने का आत्मविश्वास नहीं होता।
- यदि पहली परीक्षा में खराब प्रदर्शन हुआ, तो तनाव बढ़ सकता है और दूसरी परीक्षा के लिए पढ़ाई का समय
कम रह जाएगा।
4. शिक्षा व्यवस्था पर
अतिरिक्त भार
- परीक्षा दो बार कराने के लिए शिक्षकों,
संसाधनों और परीक्षा केंद्रों की अधिक आवश्यकता होगी।
- स्कूलों को परीक्षा की तैयारी और परिणाम मूल्यांकन में
अधिक समय देना पड़ेगा, जिससे अन्य शैक्षणिक गतिविधियों पर असर पड़ सकता है।
5. मानसिक दबाव में वृद्धि
- कुछ छात्र दो बार
परीक्षा देने की अनिवार्यता को तनावपूर्ण मान सकते हैं।
- वर्ष में दो बार परीक्षा की तैयारी करने से छात्रों की मानसिक सेहत पर प्रभाव पड़ सकता है।
क्या यह सुधार सही दिशा में
है?
इस प्रणाली के फायदे और नुकसान को देखते हुए,
यह कहना
मुश्किल है कि यह निर्णय छात्रों के लिए राहत लाएगा
या उनके लिए नई चुनौतियाँ पैदा करेगा।
👉 क्या छात्रों को वर्षभर
परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रखना सही होगा?
👉
क्या इससे
शिक्षकों और स्कूलों की प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ बहुत अधिक बढ़ जाएँगी?
👉
क्या यह बदलाव
वास्तव में शिक्षा के स्तर को सुधार पाएगा या सिर्फ एक नया बोझ बनेगा?
समाधान की दिशा में आगे
बढ़ते हुए
- सरकार और शिक्षा बोर्ड को शिक्षकों,
छात्रों और अभिभावकों से फीडबैक लेकर इस प्रणाली को
लागू करना चाहिए।
- परीक्षा के साथ आधुनिक मूल्यांकन
प्रणाली (एआई-आधारित टेस्टिंग, प्रोजेक्ट
वर्क, प्रैक्टिकल स्किल असेसमेंट) को भी शामिल किया जाना
चाहिए।
- यदि द्विवार्षिक परीक्षा प्रणाली लागू होती है,
तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि छात्रों की मानसिक सेहत पर अनावश्यक दबाव न पड़े।
निष्कर्ष यह निकलता है कि
बोर्ड परीक्षा वर्ष में दो बार कराने का फैसला कुछ छात्रों के
लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इससे जुड़े प्रशासनिक और
मानसिक दबाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
शिक्षा
व्यवस्था का लक्ष्य छात्रों का समग्र विकास
होना चाहिए, न कि केवल परीक्षा के अंक सुधारने की होड़।
हमें यह तय करना होगा कि
क्या बार-बार परीक्षा आयोजित करना ही सही समाधान है, या हमें शिक्षा प्रणाली को
वास्तविक कौशल-आधारित और तनावमुक्त बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
रचनाकार आचार्य रमेश सचदेवा
निदेशक, ऐजू-स्टेप फाउंडेशन
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