नवरात्रि: शक्ति की उपासना या समाज का दर्पण?
✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
30 मार्च 2025 से जो नवरात्रि आ रही है, वह केवल कैलेंडर की तारीख नहीं —
वह एक आत्मजागरण का
अवसर है।
अगर इन नौ दिनों में हम अपने घरों,
विद्यालयों, समाज और मन में नारी के प्रति नई चेतना जगा सकें — तो ही यह सच्चा शक्ति पूजन कहलाएगा।
"नारी को देवी मत कहो,
बस इतना कर दो — कि वह डर के बिना जी सके,
और गरिमा से बढ़ सके।"
नवरात्रि — यह शब्द सुनते ही मन में माँ दुर्गा
के नौ रूपों की छवि उभर आती है। मंदिरों में घंटियां गूंजने लगती हैं, और पूरे देश
में शक्ति की उपासना आरंभ हो जाती है। देवी के चरणों में पुष्प अर्पित किए जाते
हैं, कन्याओं को पूजित कर भोजन कराया जाता है, और यह विश्वास दोहराया जाता
है कि "नारी में ही शक्ति का वास
है।"
परंतु एक प्रश्न हमें भीतर से झकझोरता है —
"जब पूरा देश देवियों की आराधना करता है, तो फिर नारी आज भी
असुरक्षित क्यों है?"
🌺 आस्था और वास्तविकता के बीच
का अंतर
नवरात्रि में हम माँ दुर्गा की पूजा करते हैं —
जो राक्षसों का संहार करती हैं, अन्याय के विरुद्ध खड़ी होती हैं, और धर्म की स्थापना करती
हैं।
पर जब वही
शक्ति रूपी नारी सड़कों पर, घरों में, कार्यस्थलों पर अपमान, उत्पीड़न या
शोषण का शिकार होती है — तब समाज की चुप्पी उसके घावों को और
गहरा कर देती है।
क्या यह विरोधाभास नहीं कि जो देवी बनकर पूजा
जाती है, वही नारी असल जीवन में संघर्षरत रहती है?
🔍 नारी की स्थिति और नारी की
जिम्मेदारी
यह कहना कि नारी केवल पीड़ित है, पूरी सच्चाई
नहीं।
आज की नारी
शिक्षित है, जागरूक है, आवाज़ उठाना जानती है। परंतु कहीं न कहीं वह अपने स्त्रीत्व की गरिमा, आत्मबल और सामाजिक जिम्मेदारी से खुद भी दूर होती जा रही है।
फैशन, तुलना, आभासी जीवन और
स्वार्थ ने उसे बाहरी रूप में सशक्त किया है, पर भीतर से वह कहीं खोती जा
रही है।
👉 यदि नारी खुद अपने निर्णयों
में दृढ़ता, चरित्र में शुद्धता और आचरण में आत्मसम्मान को स्थान दे,
तो वह न केवल
खुद को, बल्कि समाज को भी दिशा दे सकती है।
🙏 नवरात्रि: केवल पूजा नहीं,
सामाजिक शुद्धि का पर्व बनें
नवरात्रि की पूजा को यदि हम औपचारिकता से हटाकर "चेतना की साधना" बना दें —
तो यह पर्व
नारी के सम्मान, सुरक्षा और आत्मबल का सबसे बड़ा सामाजिक आंदोलन बन सकता है।
📌 नवरात्रि की पूजा हो —
- नारी के आत्म-सम्मान की,
- उसकी शिक्षा व सुरक्षा की,
- उसके अधिकार और अवसर की,
- और सबसे पहले, उसकी गरिमा की।
यदि हम सच में माँ दुर्गा की आराधना करते हैं,
तो हमें उनके
हर रूप —
माँ, बहन, पत्नी, सहकर्मी,
बेटी — हर नारी के भीतर उसी देवी का दर्शन करना सीखना होगा।
🌸 संस्कृति और संवेदना का
संगम बने नवरात्रि
आज नवरात्रि को एक नया स्वरूप देने की आवश्यकता
है।
👉
Facebook की फोटो स्टोरी से आगे बढ़कर,
👉
केवल कन्या
पूजन से आगे जाकर,
👉
हमारी सोच,
भाषा और व्यवहार में नारी को देवी रूप में सम्मान देना ही सच्चा पूजन होगा।
🔔 नवरात्रि एक अवसर है — पूजन
से परिवर्तन तक
यदि हर परिवार, हर विद्यालय, हर पंचायत और
हर मंच से यह संकल्प लिया जाए —
कि हम नारी को
केवल पूजा नहीं, समझ, सुन, और संभाल भी सकें —
तो यही
नवरात्रि नारी-रक्षा और राष्ट्र-निर्माण का नया अध्याय
बन सकती है।
🌸 सोशल मीडिया से संस्कारों
तक का सफर तय हो
आज नवरात्रि फेसबुक स्टोरी,
मेकअप थीम और कन्या भोज की पोस्ट बनकर रह गई है।
पर क्या आपने
कभी उस स्त्री की चुप्पी पढ़ी है,
जो आपकी पूजा
थाली सजाती है, पर खुद कभी पूछी नहीं जाती?
इस बार नवरात्रि की पूजा
तस्वीरों तक सीमित न रहे —
वह बने — चरित्र, विचार और व्यवहार की साधना।
1 comment:
Bahut khoob
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