"कोई कब बुरा ठहराया जाता है?" — यह प्रश्न जितना सरल दिखता है, उतना ही गहरा और मनन योग्य है। इसका उत्तर केवल व्यवहार या परिणामों से नहीं, मानव स्वभाव, दृष्टिकोण और सामाजिक मानसिकता से भी जुड़ा है।
यहां कुछ बिंदुओं में उत्तर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ:
🔹 1. जब सत्य अप्रिय
हो जाए
अक्सर जो व्यक्ति सच बोलता है, सुधार की बात करता है या
व्यवस्था में कमियां दिखाता है —
उसे
"कठोर", "अहंकारी" या "असहज" कहकर बुरा ठहराया जाता
है।
"कटु सत्य कहने वाला हमेशा प्रिय नहीं होता, पर आवश्यक होता
है।"
🔹 2. जब भीड़ का
विरोध हो, और कोई अकेला खड़ा हो
जो भीड़ की सोच से अलग चलता है, उसे अक्सर संदेह, उपेक्षा और आलोचना झेलनी
पड़ती है।
"वह जो रौशनी दिखाए, अंधेरे में रहने वालों को
चुभता है।"
🔹 3. जब सुधार किसी
की सुविधा को चुनौती दे
यदि कोई व्यक्ति दूसरों की लापरवाही, अयोग्यता या
अनुशासनहीनता पर सवाल उठाता है,
तो वे लोग उसके
विरुद्ध मोर्चा बना लेते हैं — और उसे "बुरा" साबित करने लगते हैं।
🔹 4. जब व्यक्ति
निस्वार्थ हो, पर समझा न जाए
कई बार जिनका उद्देश्य केवल भलाई होता है, वे भी बुराई के
पात्र बन जाते हैं क्योंकि
लोग उन्हें
अपने दृष्टिकोण से नहीं, अपने अहंकार या असुरक्षा से आंकते हैं।
🔹 5. जब लोग
आत्मनिरीक्षण से बचना चाहें
अपनी गलती को स्वीकार करने से बचने के लिए लोग किसी और को "गलत साबित कर देना आसान समझते हैं।"
✨ निष्कर्ष:
"कोई बुरा कब ठहराया जाता है?"
जब सच, सुधार और
सिद्धांत —
व्यक्तिगत
सुविधाओं, अहंकार और भीड़ की मानसिकता से टकराते हैं।
पर अंततः…
समय सब देखता
है — और वही अंतिम निर्णय करता है।
"जो आज बुरा कहा गया, वही कल आदर्श बनता
है।"
2 comments:
बेहद ही अच्छा व चिंतनीय विषय है, लेकिन कहते हैं कि जब तक सच चप्पल पहनता है तब तक झूठ दुनिया का चक्कर लगा कर वापिस आ जाता है। हमें अपना कर्म कर धर्म निभाना चाहिए।
Very motivational and real topic of every successful person👏👏
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