Friday, March 21, 2025

प्रेरक लेख: जल — जीवन का अमूल्य वरदान

 

प्रेरक लेख: जल — जीवन का अमूल्य वरदान


"अंतरिक्ष में एक भी बूंद बेकार नहीं जाने देते,
और हम धरती पर नदियों को सुखा देते हैं।"

जल—जिसे हम जीवन कहते हैं—आज उसी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यह विडंबना ही है कि जिस देश में सदियों से जल को देवता माना गया, वहीं अब जल की एक-एक बूंद के लिए हाहाकार मचने लगा है।

अंतरिक्ष में जब वैज्ञानिक जाते हैं, तो वहां जल की एक बूंद को भी सहेज कर रखा जाता है। पानी का पुनःचक्रण किया जाता है, हर बूंद का हिसाब रखा जाता है। परन्तु धरती पर, जहां यह संसाधन हमें सहजता से मिला, हमने उसकी कीमत ही नहीं समझी। बटन दबाने से जब पानी बहने लगता है, तब हम भूल जाते हैं कि हर बूँद जीवन की डोरी है।

सरकार आंकड़ों से तसल्ली देती है—"इतने करोड़ लीटर जल संरक्षित किया गया", "इतनी नहरें बनी", "इतने तालाब गहरे किए गए"। परंतु क्या यह सचमुच धरातल पर दिखता है? गांव के कुएं सूख चुके हैं, शहरों में टैंकरों की कतारें हैं, और खेत प्यासे खड़े हैं। जल संकट सिर्फ आंकड़ों से नहीं, चेतना से मिटेगा।

हम विकास की दौड़ में इतने अंधे हो गए कि धरती की कोख ही सूख गई। हरियाली को काटकर हमने कंक्रीट उगा दिए। सुंदरता के नाम पर बनाए गए मार्बल के मकान धरती को सांस लेने तक नहीं देते। न मिट्टी बची, न नमी। जल को संजोने वाली धरती अब उसे बहा देती है, क्योंकि हमने उसे जल लेने लायक छोड़ा ही नहीं।

हर तरफ जल का दुरुपयोग है—बिना मतलब की पाइपलाइनें बहती हैं, गाड़ियों पर बहाया जाता है टनों पानी, और तो और, त्योहारों में भी जल की बर्बादी एक फैशन बन चुकी है। जब तक हमें यह एहसास नहीं होगा कि जल नहीं तो जीवन नहीं, तब तक कोई नीति, कोई योजना हमें नहीं बचा सकती।

अब समय है आत्ममंथन का। जल संरक्षण सिर्फ सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है—यह हर व्यक्ति का कर्तव्य है। यदि हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी जल का स्वाद जानें, तो हमें आज ही संकल्प लेना होगा:

  • घर में हर बूँद को सहेजें
  • वर्षा जल का संचयन करें
  • जल के पारंपरिक स्रोतों को पुनर्जीवित करें
  • बच्चों को जल का महत्व सिखाएं
  • और सबसे जरूरी, अपने आचरण से उदाहरण बनें

जल नहीं, तो कल नहीं।
अब भी समय है—बूंद-बूंद बचाइए, जीवन सहेजिए।

– आचार्य रमेश सचदेवा

6 comments:

KHUSHBAJ SINGH said...

NICE

Anonymous said...

स्वामी रामदयाल जी ने एक नारा दिया था, "जल ही जीवन है। इसकी एक एक बूंद कीमती है। " लेकिन आज हम इस की प्रासंगिकता को नहीं समझ पा रहे हैं और जल का अनुचित ढंग से प्रयोग कर रहे हैं। शायद यह सच्च है कि जब कोई वस्तु हमारे पास होती है तो हम उस का मूल्य नहीं समझते लेकिन जब हम उसे खो देते हैं फिर पश्चाताप करते हैं। इसलिए हमें चेत जाना चाहिए और जल को व्यर्थ बहाने की अपेक्षा उसका संरक्षण करना चाहिए।

Anonymous said...

स्वामी रामदयाल जी ने एक नारा दिया था, "जल ही जीवन है। इसकी एक एक बूंद कीमती है। " लेकिन आज हम इस की प्रासंगिकता को नहीं समझ पा रहे हैं और जल का अनुचित ढंग से प्रयोग कर रहे हैं। शायद यह सच्च है कि जब कोई वस्तु हमारे पास होती है तो हम उस का मूल्य नहीं समझते लेकिन जब हम उसे खो देते हैं फिर पश्चाताप करते हैं। इसलिए हमें चेत जाना चाहिए और जल को व्यर्थ बहाने की अपेक्षा उसका संरक्षण करना चाहिए।

Sudesh Kumar Arya said...

जल ही जीवन है। इसे व्यर्थ न बहाएं बल्कि इसका संरक्षण करें।

देव जुनेजा said...

बहुत ही ज्वलंत विषय पर आपने विचार व्यक्त किए हैं। स्वामी राममदयाल जी, "जल ही जीवन है” यह सरल लेकिन गहन वाक्य हमारे जीवन की सच्चाई को दर्शाता है। जल का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यह न केवल हमारी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का भी अभिन्न हिस्सा है। जल के बिना न केवल मानव जीवन, बल्कि पृथ्वी पर हर जीव का अस्तित्व संभव नहीं है। लेकिन यह जानते हुए भी हम जल का दुरुपयोग करते हैं। हम जल को व्यर्थ बहाते हैं। हमें जल का संरक्षण करना चाहिए ताकि हमारी भावी पिढ़ियां जल का उपयोग करने में समक्ष हों। यह भी एक सच्चाई है कि जो कुछ हमें उपलब्ध हो हम उसका आदर नहीं करते परन्तु जब छिन जाए तो हमें पश्चात्ताप होता है। इसलिए हमें समय रहते ही चेत जाना चाहिए।

Anonymous said...

Good thought and msg .