Wednesday, March 19, 2025

ज़िंदगी सामने थी... और हम दुनिया में उलझे रहे...


 🌅 ज़िंदगी सामने थी... और हम दुनिया में उलझे रहे...

✍️ आचार्य रमेश सचदेवा

कभी-कभी ज़िंदगी हमें आईना दिखाती है — चुपचाप, शांत, पर गहराई से।
हम खुद को बहुत व्यस्त पाते हैं — वक़्त की कमी, ज़माने की होड़, समाज की अपेक्षाएं, रिश्तों की डोरऔर इसी दौड़ में हम भूल जाते हैं कि जिस जीवन को हम संवारना चाहते थे, वो तो हमारे सामने ही खड़ा था।

किसी कवि कि ये पंक्तियाँ:

"एक दिन शिकायत तुम्हें वक़्त और ज़माने से नहीं, खुद से होगी..."
"कि ज़िंदगी सामने थी और तुम दुनिया में उलझे रहे..."

जिंदगी कभी सवाल नहीं पूछतीं, लेकिन आत्मा को झकझोर जरूर देती हैं।

🔁 हम किससे भाग रहे हैं?

हम दिनभर काम में लगे रहते हैं — बच्चों की पढ़ाई, EMI, नौकरी की दौड़, दूसरों की अपेक्षाएं — और फिर रात को थककर कहते हैं, "समय ही नहीं मिला अपने लिए।"
पर सच तो यह है कि हमने समय से ज़्यादा "दुनिया की राय" को प्राथमिकता दी

वक़्त कभी नहीं रुकता – पर हम रुक सकते हैं

वक़्त हमारी मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता है।
हम जो आज टालते हैं, वही कल हमारी सबसे बड़ी पछतावा बन सकता है।

👉 बच्चों के बचपन की मुस्कान,
👉 माँ-बाप की इंतज़ार करती आंखें,
👉 अपने अंदर की आवाज़,
👉 वो सपना जो कभी देखा था —
ये सब सामने थे, पर हम दुनिया में उलझे रहे।

💬 और फिर एक दिन...

हम खुद से ही शिकायत करने लगते हैं।
ना ज़माना जिम्मेदार लगता है, ना हालात।
बस, अपनी चुप्पी, अपनी टालमटोल और अपनी प्राथमिकताओं पर पछतावा होता है।

🌟 तो अब क्या करें?

  • कभी-कभी रुक कर सांस लेना भी जीवन की सफलता होती है।
  • अपने "आज" को इतना व्यस्त मत बनाओ कि कल तुम्हारे पास पछताने के अलावा कुछ न बचे।
  • दुनिया की भीड़ में खोकर अपना रास्ता मत भूलो

🙏 अंत में...

ज़िंदगी कोई मंज़िल नहीं, एक यात्रा है।
और उस यात्रा में हर लम्हा जीने लायक होता हैअगर हम उसे देखना चाहें।

तो अगली बार जब आप दौड़ते-दौड़ते थक जाएँ, तो रुकिए...
और पूछिए —
"क्या मैं ज़िंदगी को जी रहा हूँ, या सिर्फ दुनिया को दिखा रहा हूँ?"

📌 लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
(जीवन-प्रेरक, लेखक, और सामाजिक चिंतक)

3 comments:

Amit Behal said...

Live life King size✌️

Anonymous said...

Right asked . Kabhii khud se bhii baate kar lia kro . Apne ander jaia kro . God bless you . Bahut achha varnan Kia h.

Sudesh Kumar Arya said...

आज की यही सच्चाई है...हर व्यक्ति एक अंधी दौड़ में शामिल है।
"एक दिन शिकायत तुम्हें वक़्त और ज़माने से नहीं, खुद से होगी..."
"कि ज़िंदगी सामने थी और तुम दुनिया में उलझे रहे..."