— एक सामाजिक दृष्टिकोण
समाज में काम और काबिलियत की मांग हमेशा से रही है, लेकिन आज हम एक विचित्र
स्थिति में पहुंच गए हैं — जहां एक ओर लाखों लोग बेरोजगार हैं, वहीं दूसरी ओर काम के लिए उपयुक्त लोग मिल नहीं रहे, और जो लोग काम
पर हैं, वे अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहे। यह केवल आर्थिक
संकट नहीं, बल्कि नैतिक, शैक्षणिक और सामाजिक संकट का रूप ले चुका है।
1. आदमियों के पास काम नहीं — बेरोजगारी की मार
हमारे देश में युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है, लेकिन उनमें से बहुतों के
पास न रोजगार है, न दिशा। शिक्षा व्यवस्था ने उन्हें डिग्रियां दीं, लेकिन काम करने
की दक्षता नहीं। बेरोजगारी सिर्फ आर्थिक बोझ नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, मानसिक
स्वास्थ्य और पारिवारिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है।
2. काम के लिए आदमी नहीं — कुशलता की कमी
दूसरी ओर, उद्योग और संस्थान सही लोगों की तलाश में भटक रहे हैं।
नौकरी उपलब्ध है, लेकिन योग्य उम्मीदवार नहीं। इसका सीधा कारण है — सक्षम, व्यावहारिक और नैतिक शिक्षा की कमी। सिर्फ डिग्री
या मार्कशीट किसी को “काम का आदमी” नहीं बनाती — उसके भीतर अनुशासन, ईमानदारी और निरंतर सीखने की जिज्ञासा भी होनी चाहिए।
3. काम पर रखे आदमी किसी काम के नहीं — उत्तरदायित्व की कमी
यह सबसे खतरनाक स्थिति है — जब व्यक्ति पद पर तो होता है, लेकिन न उसमें
काम के प्रति लगन होती है, न दक्षता। ऐसे लोग संस्थानों की जड़ों को खोखला करते हैं। भ्रष्टाचार, टालमटोल, आलस्य और ‘जिम्मेदारी से भागना’ इस समस्या की
जड़ हैं। जब कर्म को पूजा नहीं समझा जाता, तो केवल पद और वेतन ही महत्वपूर्ण लगने लगते
हैं।
समाधान क्या है?
- शिक्षा को
व्यवहारिक और नैतिक बनाना होगा।
- काम के
प्रति सम्मान और श्रम को प्रतिष्ठा देनी होगी।
- प्रशिक्षण
और कौशल विकास को बढ़ावा देना होगा।
- उत्तरदायित्व
निभाने वाले कर्मचारियों को मान्यता देनी होगी।
काम और कर्मशीलता किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती है। यदि हम इस तीन-स्तरीय
समस्या को समझें और सुलझाने का प्रयास करें, तो हम न केवल रोजगार की
स्थिति सुधार सकते हैं, बल्कि एक कर्मनिष्ठ समाज की नींव भी रख सकते हैं।
2 comments:
Well described .
अच्छे कर्म ही सुदृढ़ समाज व राष्ट्र निर्माण में सहायक सिद्ध होते है
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