— संबंधों को देखने की एक नई दृष्टि
हम अक्सर जीवन में ऐसे क्षणों से गुजरते हैं
जहां हमें लगता है कि हम सही हैं, और दूसरा
व्यक्ति गलत। हम अपने दृष्टिकोण, अनुभव और भावनाओं को अंतिम मानकर दूसरों को उसी तराजू में
तोलने लगते हैं। पर क्या यह उचित है?
कई बार ऐसा होता है कि जो बात हमें लाभकारी लगती
है, वही किसी और को हानि लगती है। जो हमारे लिए सत्य है, वह किसी और की दृष्टि में
झूठ हो सकता है। इसका यह अर्थ नहीं कि कोई झूठा है — बल्कि इसका सीधा अर्थ है कि हर व्यक्ति का अनुभव, परिस्थिति और समझ अलग होती है।
हम भूल जाते हैं कि हर दिल के पीछे एक कहानी है,
हर खामोशी के
पीछे कोई पीड़ा छिपी है, और हर दूरी के पीछे कोई टूटा हुआ संवाद।
किसी ने कहा है
— “सबके अपने कह हैं, सबकी अपनी जंग...”
— यह पंक्ति हमें
सिखाती है कि हम दूसरों की थकान और तंगहाली को महसूस करना सीखें।
रिश्तों में दूरी अक्सर
‘मैं’ के बढ़ते मान से होती है, न कि किसी सच्ची गलती से। जब हम हर बात में स्वयं को केंद्र बनाते हैं, तो ‘हम’ पीछे छूट जाते हैं।
यदि हम किसी संबंध को सहेजना चाहते हैं, तो जरूरी है कि हम दूसरों के सच को भी उतनी ही
ईमानदारी से स्वीकारें जितनी अपनी भावनाओं को करते हैं।
जीवन की सबसे बड़ी समझ यह है कि कोई भी पूर्णत:
सही या गलत नहीं होता। हम सभी अपने-अपने ‘सत्य’ के साथ जीते हैं — और यदि हम इस भिन्नता को सम्मान देना सीख जाएं, तो संबंध टूटते नहीं,
और मन रूठता
नहीं।
हर किसी का सच अलग होता है
— और शायद वहीं से समझ की शुरुआत होती है।
🌼
7 comments:
Very Nice
अपना नज़रिया हमेशां सकारात्मक रखें💐🙏
very true ...
Thanks
सही कहा । धन्यवाद जी
Thanks
Beshak very nice 🙏💯
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