“विश्वास की डोर: पुरुष और नारी के बीच बदलता रिश्ता” आचार्य रमेश सचदेवा
"इस सदी का एक दुखांत यह भी है कि आज किसी पुरुष पर कोई औरत
जल्दी से विश्वास नहीं करती, चाहे वह उसे बहन कहकर ही क्यों न पुकारे।"
यह कथन न केवल हमारे समाज की सच्चाई को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विश्वास की डोर कितनी कमजोर होती जा रही है। हम हर साल महिला दिवस मनाते हैं, नारियों के सम्मान, उनके अधिकारों
और उनकी स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि विश्वास का यह संकट क्यों खड़ा हुआ?
आज का समाज पुरुष और महिला को एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी की तरह देखता है,
न कि एक-दूसरे
के पूरक के रूप में। महिला सुरक्षा के प्रति बढ़ती चिंताओं, यौन शोषण की घटनाओं और
महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के कारण नारी मन में
संदेह और भय की भावना गहरी होती जा रही है।
विश्वास का टूटता रिश्ता
🔹 पुरानी मान्यताएँ और
वर्तमान सच्चाई
एक समय था जब
पुरुष और महिला के रिश्तों में आदर, प्रेम और
सुरक्षा का भाव था। बहन-भाई का रिश्ता, गुरु-शिष्या का संबंध,
पिता-पुत्री का
निस्वार्थ बंधन – ये सभी रिश्ते विश्वास की नींव पर टिके थे। लेकिन आज समाज में
घटती घटनाओं ने नारी को स्वयं की सुरक्षा के प्रति अधिक सतर्क कर दिया है।
🔹 भरोसे को तोड़ने वाली
घटनाएँ
आजकल महिलाओं
के साथ होने वाले अपराधों की खबरें आए दिन सुनने को मिलती हैं – घरेलू हिंसा,
दहेज उत्पीड़न,
कार्यस्थल पर
शोषण और समाज में कई अन्य प्रकार की असमानताएँ। जब एक महिला हर मोड़ पर
असुरक्षित महसूस करने लगे, तो यह स्वाभाविक है कि वह किसी भी पुरुष पर आसानी से भरोसा
नहीं कर पाएगी।
🔹 आधुनिक समाज में अविश्वास
का बढ़ना
आज का समाज
इतनी जटिल परिस्थितियों से घिर गया है कि नारी को पुरुष की हर बात पर संदेह होने
लगा है। चाहे कोई पुरुष कितनी भी ईमानदारी से किसी महिला को बहन, बेटी या मित्र मानकर अपनाए, फिर भी उसके मन में कहीं न कहीं अविश्वास बना रहता है।
विश्वास को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता
यदि हम चाहते हैं कि समाज में पुरुष और महिला का रिश्ता पुनः विश्वास और सम्मान की डोर से बंधे, तो हमें कुछ
महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।
1. पुरुषों को अपने आचरण में सुधार लाना होगा
✅ महिलाओं के प्रति सहानुभूति,
सम्मान और संवेदनशीलता रखनी होगी।
✅
महिलाओं की स्वतंत्रता को स्वीकार करना होगा और उन्हें समान
अधिकार देने होंगे।
✅
अपनी भाषा और व्यवहार में संयम रखना होगा, ताकि महिलाओं
के मन में संदेह उत्पन्न न हो।
2. महिलाओं को भी संदेह की दीवार गिरानी होगी
✅ सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते, यह समझना जरूरी
है।
✅
जो पुरुष
महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के पक्षधर हैं, उन पर विश्वास करना सीखना
होगा।
✅
रिश्तों में स्पष्टता और खुलापन बनाए रखना जरूरी है।
3. समाज को शिक्षा और जागरूकता बढ़ानी होगी
✅ माता-पिता को बेटों को सही
संस्कार और बेटियों को आत्मरक्षा का ज्ञान देना चाहिए।
✅
स्कूलों और
कॉलेजों में समानता और सम्मान का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए।
✅
महिलाओं की
सुरक्षा के लिए कठोर कानूनों का सख्ती से पालन करवाया जाना
चाहिए।
4. महिला दिवस पर विशेष संकल्प की आवश्यकता
हर महिला दिवस पर केवल नारे लगाने और सम्मान देने से कुछ नहीं
होगा। अगर हम वास्तव में इस दिवस को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो हमें विश्वास के पुनर्निर्माण का संकल्प लेना होगा।
🔹
पुरुषों को यह प्रतिज्ञा लेनी होगी कि वे हर महिला को सम्मान और सुरक्षा देंगे।
🔹
महिलाओं को भी
यह संकल्प लेना होगा कि वे रिश्तों में बेवजह का अविश्वास नहीं
रखेंगी।
🔹
समाज को यह निश्चित करना होगा कि लड़का और लड़की को समान अवसर और समान सुरक्षा मिले।
निष्कर्ष
हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ पुरुष और महिला के बीच अविश्वास की गहरी खाई बन चुकी है। इस खाई को
पाटने का काम न कानून कर सकता है और न ही कोई आंदोलन। यह काम हमें
खुद करना होगा – अपने रिश्तों में ईमानदारी, पारदर्शिता और आदर का भाव
लाकर।
अगर हर पुरुष और हर महिला इस विश्वास को पुनः स्थापित करने
का संकल्प ले, तो निश्चित रूप से हमारा समाज एक बार फिर विश्वास, प्रेम और
सुरक्षा की डोर से जुड़ सकता है।
✍ आचार्य रमेश सचदेवा
7 comments:
Bahut khoob .
Thanks
बहुत बढ़िया sir आपके लेख प्रेरणादायक होते है जिंदगी जिंदाबाद
जीवन मे विश्वास होना जरूरी है।
प्रेरणास्पद💐🙏
तहदिल से आभार
कृतज्ञ हूं आपके हर लेख पर कमेंट्स को पढ़कर।
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