“भारत में शिक्षा का माध्यम-अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रभाव और मातृभाषा की चुनौती” आचार्य रमेश सचदेवा
भारत में हाल के वर्षों में अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा की मांग तेज़ी से बढ़ी
है। अब न केवल शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी स्कूल अंग्रेज़ी
माध्यम की शिक्षा को अपना प्रमुख आकर्षण बना रहे हैं। माता-पिता, चाहे किसी भी आर्थिक या सामाजिक पृष्ठभूमि से
हों, अपने बच्चों के लिए
अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि वे इसे बेहतर भविष्य,
रोजगार और वैश्विक अवसरों की कुंजी मानते हैं।
अंग्रेज़ी की बढ़ती मांग
ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्कूल अब बड़े-बड़े होर्डिंग्स और विज्ञापनों में यह
दावा कर रहे हैं कि वे अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। यह इस
धारणा को दर्शाता है कि अंग्रेज़ी भाषा में निपुणता होने से न केवल बच्चों को उच्च
शिक्षा के अवसर मिलते हैं बल्कि उनकी सामाजिक स्थिति भी मजबूत होती है।
अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा का इतना अधिक प्रभाव हो गया है कि कई स्कूल अब
किंडरगार्टन से ही आईईएलटीएस (IELTS) की कोचिंग देना शुरू कर रहे हैं। यह बच्चों को शुरू से ही वैश्विक शिक्षा और
करियर के लिए तैयार करने की मानसिकता को दर्शाता है।
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) और मातृभाषा पर जोर
नई शिक्षा नीति 2020 ने मातृभाषा को
प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया है। नीति के अनुसार, कक्षा 5 तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाना चाहिए, क्योंकि शोध बताते हैं कि शुरुआती शिक्षा
मातृभाषा में होने से बच्चों की बौद्धिक क्षमता और शैक्षिक प्रदर्शन बेहतर होता
है।
लेकिन माता-पिता इस नीति को अपनाने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। उनका मानना
है कि मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चों का करियर सीमित हो सकता है और वे
प्रतियोगी परीक्षाओं, उच्च शिक्षा और
अंतरराष्ट्रीय स्तर के अवसरों में पीछे रह सकते हैं। यही कारण है कि अधिकांश
अभिभावक अंग्रेज़ी को प्राथमिकता देते हैं, जिससे मातृभाषा आधारित शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में
कठिनाइयाँ आ रही हैं।
अंग्रेज़ी बनाम मातृभाषा: संतुलन बनाना आवश्यक
अंग्रेज़ी निस्संदेह वैश्विक अवसरों के द्वार खोलती है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा से सांस्कृतिक और भाषायी
धरोहर कमजोर हो सकती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि
अंग्रेज़ी और मातृभाषा के बीच संतुलन बनाया जाए। स्कूलों को द्विभाषी शिक्षा
प्रणाली अपनानी चाहिए, जिसमें बच्चों को
उनकी मातृभाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी में भी निपुण बनाया जाए।
इसके अलावा, सरकार को
मातृभाषा में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयास करने चाहिए। उच्च गुणवत्ता
की पाठ्यपुस्तकें, डिजिटल संसाधन और
प्रशिक्षित शिक्षकों की उपलब्धता बढ़ाकर मातृभाषा आधारित शिक्षा को अधिक आकर्षक
बनाया जा सकता है।
वर्तमान में भारत में शिक्षा के माध्यम को लेकर एक बड़ा बदलाव देखने को मिल
रहा है। एक ओर माता-पिता अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं,
वहीं दूसरी ओर नई शिक्षा नीति मातृभाषा को
बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। यह विरोधाभास नीति निर्माताओं और शिक्षकों के
सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी करता है।
भविष्य के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें बच्चों को उनकी मातृभाषा में मजबूत बुनियादी शिक्षा
मिले और साथ ही वे अंग्रेज़ी में भी दक्ष बनें। केवल इसी माध्यम से हम अपनी भाषायी
और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखते हुए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी आगे बढ़
सकते हैं।
रचनाकार आचार्य रमेश सचदेवा
निदेशक ऐजू स्टेप फाउंडेशन
2 comments:
बहुत खूब... भाषा चाहे कोई भी सीखो पर मातृभाषा और राष्ट्रभाषा की कीमत पर नहीं
Agreed
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