17 मार्च: हरियाणा की बेटियों ने रचा इतिहास, देश को दी नई ऊँचाइयाँ
आचार्य रमेश सचदेवा
भारतीय इतिहास में कुछ तारीखें केवल कैलेंडर के
पन्नों में नहीं होतीं—वे प्रेरणा के
दीपस्तंभ बन जाती हैं।
ऐसी ही एक तारीख है 17 मार्च, जो हर साल हमें याद दिलाती है कि सपनों की कोई सीमा नहीं होती, अगर हौसले
सच्चे हों और इरादे मजबूत।
कल्पना चावला – जिन्होंने आकाश को भी पार किया
17 मार्च 1961 को हरियाणा के करनाल में
जन्मी कल्पना चावला ने अपने नाम के अनुरूप सचमुच
"कल्पनातीत" उड़ान भरी। एक साधारण परिवार से आने वाली यह बेटी बचपन से
ही आसमान में उड़ते जहाज़ों को
टकटकी लगाए देखा करती थी।
उन्होंने ऐरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, अमेरिका जाकर नासा की अंतरिक्ष यात्री बनीं और फिर वो क्षण
आया जब उन्होंने 1997 में अंतरिक्ष की पहली उड़ान भरी।
उनकी आंखों में केवल अपने लिए नहीं, पूरे देश के लिए सपने थे।
लेकिन 1 फरवरी 2003 को जब कोलंबिया स्पेस
शटल पृथ्वी पर लौटते समय टूटकर
बिखर गया, तो भारत की यह बेटी तारे बन गई।
उनका जीवन समाप्त हुआ, पर उनकी प्रेरणा अनंत हो गई।
"कल्पना एक नाम नहीं, एक सोच है — कि लड़की होना कभी रुकावट नहीं, बल्कि उड़ान की शुरुआत हो सकती है।"
सायना नेहवाल – जिसने रैकेट को भारत की आवाज़
बना दिया
इसी तारीख को, 17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में
जन्मी एक और बेटी ने दुनिया के
बैडमिंटन कोर्ट में तिरंगा लहराया
— वो हैं सायना नेहवाल।
सायना ने बाल्यावस्था से ही कठोर अनुशासन और कठिन मेहनत को अपनाया। उन्होंने
भारत को कई अंतरराष्ट्रीय पदक दिलाए, ओलंपिक ब्रॉन्ज
मेडल जीता और विश्व रैंकिंग
में नंबर 1 तक पहुँचीं।
उनकी राह भी आसान नहीं थी — चोटें, आलोचनाएँ और असंख्य दबाव। मगर हर बार वे हौसले से लड़ीं और मुस्कान से जीतीं।
"सायना की कहानी बताती है कि जब बेटी कंधे पर बैग और दिल में
जुनून लेकर निकलती है, तो वह विश्व
मंच पर भारत की पहचान बन जाती है।"
दो कहानियाँ, एक संदेश
कल्पना और सायना—एक ने आकाश की ऊँचाई को छुआ, दूसरी ने ज़मीन पर पसीने से देश का गौरव बढ़ाया।
दोनों ने साबित किया कि हरियाणा की
बेटियाँ अब चौखट में नहीं, चरम पर रहती
हैं।
आज की पीढ़ी के लिए संदेश
आज जब युवा सोशल मीडिया और स्क्रीन की दुनिया
में उलझे हुए हैं, तब इन बेटियों
की संघर्षमयी यात्रा, अनुशासन और समर्पण उन्हें सच्चा रोल मॉडल प्रदान करती है।
- कल्पना कहती हैं: “Dreams are not bound by gravity.”
- सायना कहती हैं: “If you sweat in practice, you shine in
competition.”
नमन उन बेटियों को...
कल्पना – जिनकी यात्रा भले अधूरी रही, पर उनका सपना हम सबमें जीवित है।
सायना – जो आज भी मेहनत और समर्पण का पर्याय हैं।
और उन हर बेटियों को, जो हर दिन समाज से, परिस्थितियों से, और खुद से जूझ
रही हैं—बिना शोर किए, देश को ऊँचा कर
रही हैं।
17 मार्च सिर्फ तारीख नहीं है, यह हर बेटी के सपनों को सलाम करने का दिन है।
आइए, हम बेटियों को सिर्फ
प्रोत्साहित न करें, विश्वास दें, अवसर दें और मंच दें, ताकि अगली कल्पना और सायना आपके घर से निकलें, और दुनिया को जीतें।
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
(सामाजिक चिन्तक व शिक्षा प्रेरक)
2 comments:
म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के...✌️
Very inspirational story for girls and parents.
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