महाराणा प्रताप: बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत
(महाराणा प्रताप जयंती विशेष लेख)
महाराणा प्रताप भारत के उन अमर वीरों में से हैं, जिनका नाम सुनते ही सम्मान से सिर झुक जाता है। उनका जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ में हुआ था। प्रतिवर्ष उनकी जयंती वीरता, स्वाभिमान और आत्मबल की स्मृति में मनाई जाती है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान छोटा नहीं होता।
महाराणा प्रताप का जीवन संघर्ष और स्वाभिमान की अनुपम मिसाल है। उन्होंने मुग़ल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की, भले ही उन्हें जंगलों में रहना पड़ा, घास की रोटियाँ खानी पड़ीं, लेकिन उन्होंने कभी अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। यही जज़्बा आज के बच्चों और युवाओं को सिखाता है कि जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि डटकर सामना करना चाहिए।
उनके जीवन में मां और पशु का भी अद्भुत स्थान रहा। जब राणा प्रताप की स्थिति अत्यंत कठिन हो गई, उनकी माता जयवंता बाई ने उन्हें धैर्य बंधाया और त्याग का मार्ग दिखाया। वही मां थी जिसने अपने पुत्र को युद्ध भूमि का शेर बनाया। वहीं उनके प्रिय घोड़े चेतक ने भी स्वामीभक्ति की अद्वितीय मिसाल पेश की। हल्दीघाटी के युद्ध में जब चेतक घायल हुआ, तब भी वह राणा प्रताप को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाकर ही गिरा। यह संबंध केवल पशु और स्वामी का नहीं, बल्कि आत्मा और आत्मा का था।
महाराणा प्रताप का जीवन बच्चों को न केवल शौर्य और पराक्रम सिखाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि मां के संस्कार और पशुओं से प्रेम जीवन को महान बना सकते हैं। उनकी जयंती हम सभी के लिए प्रेरणा और आत्मगौरव का उत्सव है।
3 comments:
Bahut achha lekh likha h or shiksha bhii achhii h .
महाराणा प्रताप जी का जीवन, उनका शौर्य और उनकी कुर्बानी प्रेरणादायी है और उनका घोड़ा चेतक भी अपनी स्वामीभक्ति की मिसाल है।
शत् शत् नमन।
श्रेष्ठ पोस्ट
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