किसी को धन्यवाद देने से हम छोटे नहीं हो जाते
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
धन्यवाद कहना केवल एक शिष्टाचार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह दर्शाता है कि हम दूसरों के योगदान को स्वीकार करते हैं, उनकी सहायता को महत्व देते हैं और अपने भीतर विनम्रता और संवेदनशीलता को जीवित रखते हैं। यह कहना कि “किसी को धन्यवाद देने से हम छोटे नहीं हो जाते” न केवल दूसरों को सम्मान देने का भाव है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हम एक बेहतर समाज की ओर बढ़ रहे हैं।
हमारे जीवन में अनेक ऐसे क्षण आते हैं जब कोई हमारे लिए समय निकालता है, हमारी मदद करता है या मार्गदर्शन देता है। कई बार हम यह सोच लेते हैं कि धन्यवाद कहना आवश्यक नहीं, या फिर यह सोचते हैं कि कहने से हमारा कद छोटा हो जाएगा। लेकिन वास्तविक बड़प्पन तो उसमें है जब हम यह मानते हैं कि हम अकेले कुछ नहीं कर सकते और दूसरों की मदद को हृदय से स्वीकार करते हैं।
धन्यवाद का भाव केवल संबंधों को मधुर बनाने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा को परिष्कृत करने वाला अभ्यास भी है। जब हम 'धन्यवाद' कहते हैं, तो हम यह दर्शाते हैं कि हम अहंकार से मुक्त हैं, हम दूसरों के प्रति कृतज्ञ हैं, और हमें यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि किसी ने हमारी सहायता की।
यह छोटा सा शब्द — 'धन्यवाद' — रिश्तों में गहराई, आत्मीयता और विश्वास पैदा करता है। यह हमें मूल्य आधारित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। जिनके मन में अहंकार होता है, वे सहायता लेने के बाद चुप रहते हैं। लेकिन जो वास्तव में महान होते हैं, वे कृतज्ञता व्यक्त करने में कभी देर नहीं करते।
आज जब समाज में स्वार्थ और उपेक्षा बढ़ रही है, ऐसे समय में धन्यवाद का संस्कार हमें मानवता से जोड़े रखता है। यह हमारे व्यवहार में सद्भाव, सौजन्यता और सभ्यता को बनाए रखता है।
4 comments:
बेहद ही उत्कृष्ट व प्रशंसनीय लेख है। इसके लिए लेखक आचार्य रमेश सचदेवा जी को धन्यवाद।
सुदेश कुमार आर्य, अध्यक्ष
आर्य समाज मंडी डबवाली
आपके प्रेरणापद लेखों के लिए मैं आपका भी धन्यवादी हूं💐🙏
धन्यवाद
धन्यवाद
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