Wednesday, February 12, 2025

स्वामी दयानंद सरस्वती: सत्य और सुधार के अग्रदूत

 


स्वामी दयानंद सरस्वती: सत्य और सुधार के अग्रदूत

भारत की संत परंपरा में स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम एक क्रांतिकारी विचारक, समाज सुधारक और महान वेदज्ञानी के रूप में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उन्होंने न केवल वेदों की शुद्धता और उनकी वैज्ञानिकता को पुनः प्रतिष्ठित किया, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध भी प्रखर स्वर उठाया।

वेदों की पुनर्प्रतिष्ठा और सत्यार्थ प्रकाश

स्वामी दयानंद का मुख्य उद्देश्य वेदों की ओर लोगों को पुनः लौटाना था, जिसे उन्होंने अपने प्रसिद्ध नारे "वेदों की ओर लौटो" के माध्यम से अभिव्यक्त किया। उन्होंने 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा और धार्मिक पाखंड का खंडन किया तथा वेदों पर आधारित जीवन जीने का संदेश दिया।

आर्य समाज की स्थापना और समाज सुधार

1875 में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सत्य, धर्म और समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना था। जातिवाद, बाल विवाह, सती प्रथा, अंधविश्वास और विधवा अशिक्षा जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई। उनका मानना था कि सभी मनुष्यों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए, और नारी शिक्षा का विशेष रूप से प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

स्वामी दयानंद के विचार केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं थे, बल्कि वे स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्रोत भी बने। उनके विचारों ने लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने अंग्रेजों की नीति और उनके षड्यंत्रों का पर्दाफाश करते हुए आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया।

समाज को उनकी अमूल्य देन

स्वामी दयानंद सरस्वती ने समाज को ज्ञान और तर्क के आधार पर जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं। उनका जीवन और उनके आदर्श हमें सत्य की राह पर चलने और अपने धर्म, संस्कृति एवं समाज के पुनरुत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती केवल एक स्मरणोत्सव नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने का संकल्प लेने का अवसर है। वेदों का वास्तविक अर्थ समझकर, अंधविश्वासों से दूर रहकर और समाज में समरसता बनाए रखते हुए ही हम उनके दिखाए मार्ग पर चल सकते हैं।

रचनाकार: आचार्य रमेश सचदेवा      
निदेशक, ऐजू स्टेप फाउंडेशन

 

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