Tuesday, February 25, 2025

खुशी का सही अर्थ—जीना एक कला


 खुशी का सही अर्थ—जीना एक कला

वर्तमान उपभोक्तावादी युग में हम अक्सर यह मान बैठते हैं कि सुख और खुशी का सीधा संबंध धन-संपदा और भौतिक सुविधाओं से है। सोच यह होती है कि जितनी अधिक सुविधाएँ होंगी, उतना ही व्यक्ति प्रसन्न रहेगा। परंतु वास्तविक अनुभव कुछ और ही कहानी कहता है। जिस व्यक्ति को जीवन जीने की कला आती है, वह सीमित संसाधनों में भी आनंद और संतोष पा लेता है; वहीं, जिसके पास सभी सुख-सुविधाएँ होते हुए भी जीने का सही हुनर नहीं है, वह निरंतर असंतुष्ट रहता है।

ऊपर दिए गए विचार इसी सत्य को उजागर करते हैं कि सच्ची खुशी हमारे भीतर के दृष्टिकोण से जन्म लेती है, न कि बाहरी साधनों से। हम अक्सर भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते हैं, यह सोचकर कि उनके मिलने से जीवन में पूर्णता आएगी। लेकिन यदि हमारा मन शांत और संतुष्ट न हो, तो भले ही हमारे पास दुनिया भर की दौलत हो, हम खुद को अधूरा ही महसूस करेंगे। दूसरी ओर, जिनके पास संसाधन सीमित हैं लेकिन जीवन के प्रति सकारात्मक सोच है, वे हर छोटे-से-छोटे पल में भी आनंद ढूँढ़ लेते हैं।

इसलिए, आवश्यक है कि हम जीवन को गहराई से समझें और उसे संपूर्णता से जीने का प्रयास करें। अपनी क्षमताओं का सम्मान करते हुए, परिवार व दोस्तों के साथ प्रेमपूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाते हुए, हम छोटे-छोटे पलों में खुशी का अनुभव कर सकते हैं। यहीं पर जीवन की असली सुंदरता छिपी है—अपने आसपास की सरल चीज़ों को महसूस करना, अपने मन को तनाव से मुक्त रखना, और हर परिस्थिति में आगे बढ़ने का जज़्बा बनाए रखना।

याद रखिए, खुशी बाहर नहीं, हमारे मन के भीतर है। हमें बस उसे पहचानने और जीने की कला सीखने की जरूरत है। जब हम यह समझ जाएँगे कि सच्ची खुशी दिखावे में नहीं, बल्कि हमारी सोच और संतोष में बसती है, तभी हम वास्तव में सुखी जीवन का आनंद उठा सकेंगे।

 

4 comments:

Anonymous said...

Rightly Said Sir....We must keep the remote of our happiness with Us and never share that remote with anyone.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks

Amit Behal said...

जीना इसी का नाम है👍✌️

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

जी भाई साहब