Thursday, February 6, 2025

अहिंसा को अकर्मण्यता अथवा कायरता समझना उचित नहीं

 

अहिंसा को अकर्मण्यता अथवा कायरता समझना उचित नहीं

अहिंसा एक महान सिद्धांत है, जिसे अक्सर गलत समझा जाता है। कुछ लोग इसे अकर्मण्यता या कायरता के रूप में देखते हैं, परंतु यह धारणा पूरी तरह से भ्रामक है। अहिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा से परहेज करना नहीं है, बल्कि यह विचार, वाणी, और कर्म में भी हिंसा से दूर रहने की शिक्षा देती है। यह आंतरिक शक्ति, धैर्य, और साहस का प्रतीक है।

महात्मा गांधी ने अहिंसा को स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख हथियार बनाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बिना हथियार उठाए भी अन्याय के खिलाफ दृढ़ता से खड़ा हुआ जा सकता है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि अहिंसा केवल एक नीतिगत सिद्धांत नहीं, बल्कि परिवर्तन लाने का सशक्त साधन है। जो व्यक्ति हिंसा के मार्ग पर चलता है, वह क्षणिक जीत तो प्राप्त कर सकता है, परंतु स्थायी समाधान अहिंसा से ही संभव है।

अहिंसा अपनाने के लिए मानसिक और आत्मिक बल की आवश्यकता होती है। यह कमजोर या डरपोक व्यक्तियों का मार्ग नहीं है, बल्कि यह तो उन्हीं के लिए संभव है जिनके अंदर आत्म-नियंत्रण और दृढ़ विश्वास होता है। अहिंसक व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शांति और संयम बनाए रखता है। यह सहनशक्ति और मानसिक संतुलन की पराकाष्ठा है।

अहिंसा का सिद्धांत केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का भी एक प्रभावी माध्यम है। यह व्यक्ति को न केवल दूसरों के प्रति करुणामय बनाता है, बल्कि स्वयं के अंदर भी आत्मचिंतन और सुधार की प्रेरणा देता है।

इस प्रकार, अहिंसा को कायरता या अकर्मण्यता समझना एक गंभीर भ्रांति है। यह साहस, धैर्य और आत्मबल का परिचायक है, जो न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव छोड़ता है। अहिंसा के मार्ग पर चलना कठिन है, परंतु यही मार्ग सच्चे और स्थायी शांति की ओर ले जाता है।

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