रक्षाबंधन – स्नेह, संकल्प और संस्कृति का पावन पर्व
✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
भारत की
सांस्कृतिक परंपराओं में कुछ पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मीयता और रिश्तों
की जड़ों को सींचने वाले आयोजन होते हैं। रक्षाबंधन ऐसा ही एक पर्व है – जिसमें बहन की ममता और भाई की
रक्षा-प्रतिज्ञा का संगम होता है। यह सिर्फ रेशमी धागा नहीं,
बल्कि विश्वास,
प्रेम और
जिम्मेदारी की डोर है।
पौराणिक और ऐतिहासिक आधार
रक्षाबंधन का उल्लेख भविष्य पुराण,
स्कंद पुराण,
श्रीमद्भागवत जैसे धर्मग्रंथों में मिलता है। जहां एक ओर इंद्राणी
द्वारा इंद्र को रक्षा-सूत्र बांधने की कथा है,
वहीं दूसरी ओर लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु को साथ ले आने की भावनात्मक गाथा भी प्रसिद्ध है।
महाभारत में द्रौपदी द्वारा कृष्ण को साड़ी का टुकड़ा बांधने और कृष्ण द्वारा चीरहरण
में रक्षा करने की कथा ने इस पर्व को और भी पवित्र बना दिया है।
स्वतंत्रता संग्राम में
राखी की भूमिका
सिर्फ धार्मिक ही नहीं, रक्षाबंधन का उपयोग राष्ट्रीय एकता के प्रतीक रूप में भी हुआ। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1905 में बंग-भंग के विरोध में राखी को भाईचारे और
अखंडता का प्रतीक बनाकर राजनीतिक जागरण का माध्यम बनाया।
वर्तमान समाज में रक्षाबंधन
रक्षाबंधन आज केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं रहा। यह गुरु-शिष्य, माता-पिता, सैनिकों, नेताओं और समाज
के विभिन्न वर्गों के बीच भी सम्मान, कर्तव्य और
सुरक्षा का बंधन बन चुका है। बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी दीर्घायु, सफलता और
सुरक्षा की कामना करती हैं। भाई भी बहन को उपहार,
सम्मान और संजीवनी जैसी भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता
है।
सांस्कृतिक व्यंजन और
परंपराएं
रक्षाबंधन पर घेवर, शकरपारे,
नमकपारे, खीर और घुघनी जैसे पकवानों
की खुशबू घर-आंगन में बिखर जाती है। पूजा की थाली, तिलक, आरती, उपहार और
मिठाइयों के साथ यह पर्व मन और आत्मा दोनों को
जोड़ता है।
तकनीकी युग में रक्षाबंधन
आज जब कई भाई-बहन देश या विदेश में अलग-अलग रहते हैं, तब डिजिटल प्लेटफॉर्म ने इस रिश्ते को और भी सशक्त किया है। ई-राखी,
वीडियो कॉल,
एनीमेटेड राखी
सीडी, और ऑनलाइन उपहार सेवा इस पर्व को
भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठा चुकी हैं।
आध्यात्मिक और सामाजिक
संदेश
रक्षाबंधन का वास्तविक भाव
सुरक्षा, दायित्व और प्रेम का संकल्प है। यह पर्व हमें आत्मीयता से जुड़े रहने, रिश्तों की मर्यादा निभाने, और संस्कृति की
रक्षा करने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म में भी यह दिन देश और धर्म की रक्षा का संकल्प दिवस माना गया है।
अत: रक्षाबंधन केवल
धागे का बंधन नहीं है, यह मन, संस्कार और
कर्तव्य का गठबंधन है। यह हमें सिखाता है कि रिश्तों की मिठास,
श्रद्धा और
जिम्मेदारी से जीवन का हर मोड़ मधुर बन सकता है।
इस रक्षाबंधन पर आइए हम भी
सिर्फ उपहारों तक नहीं, संकल्पों तक जाएं – रिश्तों को निभाने का, साथ चलने का, और एक-दूसरे की रक्षा करने
का व्रत लें।
4 comments:
सम्पूर्ण विश्व में स्नेह बना रहे
भाई - बहन का प्यार उसी तरह बना रहे... पवित्र पर्व की बधाई….
जी यही अभिलाषा हम सब की
शुक्रिया
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