✍️ लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा
जब-जब हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग की बात होती है, तो उसमें एक नाम बहुत ही सादगी और गहराई से उभरता है — शकील बदायूंनी।
उनकी लेखनी, मानो आत्मा का गीत हो। उनकी कविताएं और फिल्मी गीत महज़ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि जज़्बातों की जिंदा तस्वीरें हैं।
🎤 शायर नहीं, एक एहसास थे शकील
3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे शकील बदायूंनी न केवल एक कवि थे, बल्कि एक संवेदना के प्रवक्ता भी थे। उन्होंने उर्दू शायरी को आम जनमानस की ज़ुबान बना दिया और फ़िल्मी गीतों को दिल की गहराई और रूह की ऊँचाई दी।
🎶 अमर गीतों की धरोहर
शकील के गीत संगीत की आत्मा और भावनाओं का सागर हैं। उन्होंने वो लिखा जो हर दिल महसूस करता है, लेकिन कह नहीं पाता।
उनके कुछ अमर गीत जो आज भी हर पीढ़ी को स्पर्श करते हैं:
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“चौदहवीं का चाँद हो” — सौंदर्य की पराकाष्ठा
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“प्यार किया तो डरना क्या” — प्रेम में आत्मसम्मान
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“अफ़साना लिख रही हूँ” — विरह की वेदना
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“जब चली ठंडी हवा” — सौम्यता और सरलता
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“मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम” — प्रेम का पवित्र वचन
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“मधुबन में राधिका नाचे रे” — भक्ति और रस का संगम
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“ये ज़िंदगी के मेले” — जीवन की सच्चाई
इन गीतों ने न केवल फिल्मों को अमर किया, बल्कि संगीत को साहित्य से जोड़ दिया।
🤝 नौशाद और शकील: सुर और शब्द की जोड़ी
शकील की सबसे प्रसिद्ध जोड़ी बनी संगीतकार नौशाद के साथ।
जहाँ नौशाद ने सुरों से जादू रचा, वहीं शकील ने शब्दों से रूह को छूने वाला जादू फैलाया।
यह जोड़ी फिल्मों के संगीत पक्ष को गंभीर साहित्यिक ऊँचाई पर ले गई।
📜 साहित्य से सिनेमा तक
शकील बदायूंनी ने यह प्रमाणित किया कि फिल्मी गीत भी उच्च कोटि की साहित्यिक रचना हो सकते हैं।
उन्होंने कभी बाजारू भाषा का सहारा नहीं लिया, बल्कि शुद्ध उर्दू और हिंदी में आम जन की भावनाओं को पिरोया।
🕯️ एक खामोश विदाई
20 अप्रैल 1970 को शकील इस दुनिया से विदा हो गए, परंतु उनकी रचनाएं अमर हैं।
आज भी जब रेडियो पर उनके लिखे गीत बजते हैं, तो लगता है जैसे कोई अपना दिल की बात कह रहा हो।
🌹 शकील बदायूंनी की विरासत
शकील बदायूंनी सिर्फ एक गीतकार नहीं, बल्कि एक युग, एक विचार, और एक भावनात्मक अनुभव हैं।
उनकी रचनाएं आज भी गुनगुनाई जाती हैं, महसूस की जाती हैं, और भावनाओं को शब्द देती हैं।
वे एक ऐसी आत्मा हैं जो गीतों में जीती है, और उनकी विरासत आने वाली हर पीढ़ी को सृजन और संवेदना की राह दिखाती रहेगी।
श्रद्धांजलि शकील साहब को —
जिन्होंने गीतों को आत्मा दी और आत्मा को आवाज़।
2 comments:
Nice article 👍
गीत लिखना और अच्छे लिखना दोनों में बहुत अन्तर होता है इन्होंने ऐसे गीत लिखे आज भी लोग दीवाने है इनके गीतों के।हमे गर्व है इनपर ।
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