Wednesday, August 6, 2025

बूढ़े दरख़्त और उनकी ख़ामोश सीखें

 


     बूढ़े दरख़्त और उनकी ख़ामोश सीखें

✍️ लेखक व विचारक: आचार्य रमेश सचदेवा

जब भी आप किसी पुराने पार्कआंगन या गांव के चौपाल में किसी बूढ़े दरख़्त को देखेंगेतो वह सिर्फ एक पेड़ नहीं होता — वह समय का साक्षी होता है। वह मौसमों की मार सह चुका होता हैआंधियों से लड़ चुका होता हैऔर फिर भी अपनी जड़ें जमाकर खड़ा रहता है। उसकी शाखाएं भले ही झुक गई होंपत्ते कम हो गए होंलेकिन उसकी छांव अब भी ठंडी होती है और उसकी उपस्थिति अब भी शांतसजीव और सम्मानजनक होती है।

क्या हम इन्हीं बूढ़े दरख़्तों में अपने दादा-दादीनाना-नानीया समाज के वरिष्ठ नागरिकों की छवि नहीं देखते?

🌳 उनकी ख़ामोश सीखें क्या हैं?

  1. धैर्य की परिभाषा: जिस प्रकार बूढ़ा दरख़्त तेज़ हवाओं में भी न डोलता हैवैसे ही वरिष्ठ जन जीवन की चुनौतियों में धैर्य और संयम का उदाहरण होते हैं।
  2. निस्वार्थ सेवा: बिना किसी अपेक्षा के वह छांवफल और लकड़ी देता है। यही सेवा की भावना बुज़ुर्गों की सबसे बड़ी सीख होती है।
  3. गहराई से जिए गए अनुभव: उनके जीवन की कहानियाँसंघर्ष और सफलताएं नई पीढ़ी के लिए अमूल्य धरोहर हैं। वो पुस्तकें हैं जो शब्दों से नहींजीवन से लिखी गई हैं।

🌱 नई पीढ़ी के लिए संदेश:

आज का युवा तेज़ी से भाग रही दुनिया में व्यस्त हैलेकिन अगर वह कुछ पल ठहरकर इन "बूढ़े दरख़्तों" के पास बैठेतो उसे जीवन की वो समझ मिलेगी जो किसी किताब में नहीं होती।
उनसे बात करेंउनके अनुभव सुनेंउनकी दुआएं लें — ये दुआएं उस ‘छांव’ की तरह होती हैंजो कठिन समय में बहुत राहत देती हैं।

🙏 हमारा कर्तव्य क्या है?

  • बुज़ुर्गों को उपेक्षित न करें।
  • उनकी उपयोगिता को समझें।
  • उनके अनुभवों को सुनें और सम्मान दें।
  • उनके साथ समय बिताएंताकि हम भी एक दिन वैसा ही बनने का सपना देख सकें — मज़बूतशांत और प्रेरणादायक।

अंत में बस यही कहूँगा:

तू इन बूढ़े दरख़्तों की हवाएं साथ रख लेना,
सफर में काम आएंगी दुआएं साथ रख लेना…

उनकी छांव में बैठने से हमें कुछ न कुछ सीख ज़रूर मिलती हैऔर वही सीख हमारे जीवन को सही दिशा देती है।

क्या आप तैयार हैं इन बूढ़े दरख़्तों की ख़ामोश सीखों को सुनने और समझने के लिए? 🌿

3 comments:

Anonymous said...

हमें इनसे प्रेरणा लेने का मौक़ा लेना चाहिए और अपने में इनके गुणों को उतारने का प्रयत्न करना चाहिए ।

Amit Behal said...

Old is Gold...Respect the elderly...

Anonymous said...

Ramesh Bhai bahut sach kaha hai. Mujhe Shiv Batalvi Sahib ki nazm "Kujh rukh mainu putt lagde ne," ki yaad dila di aapne.