Wednesday, August 6, 2025

जब व्यवस्था ही हार का कारण बन जाए

 

"जब व्यवस्था ही हार का कारण बन जाए"

हम अपने जीवन में कई बार देखते हैं कि कुछ बेहद ईमानदार, मेहनती और निष्ठावान लोग, बार-बार असफल हो जाते हैं। न उनकी मेहनत रंग लाती है, न उनके अच्छे इरादे उन्हें मंज़िल तक पहुंचा पाते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण होता है – एक टूटी-फूटी, पक्षपाती या अराजक व्यवस्था।

🚫 जब सिस्टम न्याय नहीं देता

एक अच्छा इंसान नियमों का पालन करता है, सच्चाई के साथ खड़ा रहता है, रिश्वत नहीं देता, अनुशासन में रहता है — लेकिन अगर सिस्टम ही भ्रष्ट, पक्षपाती या निष्क्रिय हो तो ऐसे इंसान की अच्छाई ही उसके लिए अभिशाप बन जाती है।

📉 प्रतिभाओं का गला घोंटती व्यवस्था

अक्सर देखा गया है कि सरकारी तंत्र, भर्ती प्रक्रियाएं, शिक्षा व्यवस्था या न्याय प्रणाली जैसी व्यवस्थाएं इतने स्तरों पर गड़बड़ होती हैं कि एक साधारण नागरिक का भरोसा टूट जाता है। योग्य विद्यार्थी नौकरियों से वंचित रह जाते हैं, ईमानदार अधिकारी भ्रष्टाचारियों के सामने झुकने को मजबूर हो जाते हैं।

🔁 अच्छे लोगों की हार – समाज की हार

जब एक अच्छा इंसान लगातार व्यवस्था से पराजित होता है, तो या तो वह हार मान जाता है, या सिस्टम का हिस्सा बन जाता है। दोनों ही स्थितियाँ समाज के लिए नुकसानदायक होती हैं। अगर अच्छाई ही हर बार हारने लगे, तो लोग अच्छा बनना ही छोड़ देंगे।

🌱 समाधान की ओर

  • व्यवस्था में पारदर्शिता लाना ज़रूरी है।

  • हर नागरिक को आवाज़ उठानी चाहिए जब अन्याय हो।

  • ईमानदार लोगों को समर्थन और मंच मिलना चाहिए।

  • शिक्षा प्रणाली में नैतिकता और नागरिक चेतना पर बल दिया जाना चाहिए।

एक बेहतर समाज के लिए केवल अच्छे इंसान ही नहीं, अच्छी व्यवस्था भी ज़रूरी है। क्योंकि अगर लड़ाई इंसान बनाम सिस्टम की हो जाए – तो भले ही इंसान कितना भी अच्छा हो, एक ख़राब व्यवस्था उसे हर बार हरा ही देगी। समय आ गया है कि हम न केवल सिस्टम की आलोचना करें, बल्कि उसे सुधारने का प्रयास भी करें

2 comments:

Anonymous said...

यह सबसे पहले अपने से शुरू हो तो सब ठीक हो जाएगा ।

Amit Behal said...

कटु परन्तु सत्य👍