Friday, August 15, 2025

मेरे तो गिरधर गोपाल – श्रीकृष्ण का आकर्षण, आदर्श और बदलते संस्कार

 


मेरे तो गिरधर गोपाल – श्रीकृष्ण का आकर्षण, आदर्श और बदलते संस्कार

विशेष लेख – समाज एवं संस्कृति पर दृष्टि
लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा 

आस्था और बदलती जीवन-शैली

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में श्रीकृष्ण का स्थान अद्वितीय है। जन्माष्टमी के अवसर पर घर-घर लड्डू गोपाल सजाए जाते हैं—रंग-बिरंगे वस्त्र, मोरपंख, बांसुरी, झांझ-घंटी और भजन-कीर्तन की गूंज। यह दृश्य हमारी भक्ति और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रमाण है।
लेकिन आज भक्ति का स्वरूप बदल रहा है। बाहरी सजावट और दिखावटी भक्ति बढ़ रही है, जबकि जीवन में श्रीकृष्ण के आदर्श—प्रेम, नीति, निःस्वार्थ कर्म और संतुलनको अपनाने का प्रयास कम हो रहा है।

श्रीकृष्ण का बहुआयामी व्यक्तित्व

श्रीकृष्ण केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि कला, संगीत, प्रेम, नीति और नेतृत्व के अद्वितीय संगम हैं।

  • बाल्यलीलामटकी-चोरी और रास-लीला से मासूमियत, अपनापन और आनंद का संदेश।
  • युवा नेतृत्वअन्याय के विरुद्ध खड़े होना और नीति के साथ निर्णय लेना।
  • महाभारत में भूमिकाशांति-दूत, सारथी, कूटनीतिज्ञ और युद्धनीति-विशारद का संतुलन।
  • गीता का उपदेशनिःस्वार्थ कर्म, धैर्य और आत्म-ज्ञान का मार्गदर्शन।

नाम ही आनंद का प्रतीक

"कृष्ण" का अर्थ है आकर्षक। उनका नाम और उनकी कथाएं मन को आनंद और शांति से भर देती हैं। बांसुरी की मधुर धुन हो या गीता का गूढ़ ज्ञान—दोनों ही जीवन को आनंदमय और सार्थक बनाते हैं।

आधुनिक पालन-पोषण में विरोधाभास

हम अपने घर में लड्डू गोपाल को सजा तो लेते हैं, लेकिन बच्चों के पालन-पोषण में उनके आदर्शों से दूर जा रहे हैं—

  1. मोबाइल के सहारे पालनबच्चों को व्यस्त रखने के लिए स्क्रीन थमा देना।
  2. जंक फूड पर निर्भरतापौष्टिक भोजन की जगह पिज़्ज़ा, बर्गर और पैकेट फूड।
  3. ट्यूटर्स, गाइड और हेल्प-बुक्स पर अत्यधिक भरोसास्वयं अध्ययन और चिंतन की आदत कम होना।
  4. कोचिंग सेंटर पर अति-निर्भरताज्ञान के साथ संस्कार का दायित्व दूसरों पर डाल देना।
  5. आया के सहारे परवरिशमाता-पिता का बच्चों के साथ कम समय बिताना।

युवाओं के लिए प्रेरणा

श्रीकृष्ण के जीवन से आज के युवाओं के लिए स्पष्ट संदेश है—

  • कला और शिक्षा का संतुलनपढ़ाई के साथ संगीत, खेल, और रचनात्मक गतिविधियों का महत्व।
  • सकारात्मक नेतृत्वअपनी क्षमताओं को समाजहित में लगाना।
  • सही संगति का चुनावसत्संग, अच्छे मित्र और मार्गदर्शक चुनना।
  • धैर्य और दृढ़ताहर परिस्थिति में शांत और संतुलित निर्णय लेना।

गीता का अमर संदेश – निःस्वार्थ कर्म

श्रीकृष्ण का कर्मयोग आज भी उतना ही प्रासंगिक है—

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
हमें अपने कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए, परिणाम की चिंता किए बिना। यही सोच जीवन को तनावमुक्त और सार्थक बनाती है।

लड्डू गोपाल की पूजा और सजावट हमारी भक्ति है, लेकिन सच्ची भक्ति उनके आदर्शों को जीवन में उतारना है।
मोबाइल, जंक फूड और केवल कोचिंग पर निर्भरता से बच्चों का भविष्य संपूर्ण नहीं बन सकता। हमें अपने बच्चों को भी उतना ही स्नेह, संस्कार और संतुलित वातावरण देना होगा जितना नंदबाबा और यशोदा ने श्रीकृष्ण को दिया था।

संदेश:
मेरे तो गिरधर गोपाल—बाकी सब संसार। परंतु असली भक्ति तभी है, जब हम अपने घर के नन्हे गोपाल और गोपियों को भी श्रीकृष्ण के आदर्शों के अनुसार जीवन का मार्ग दें।

2 comments:

Anonymous said...

Very nicely described.

Amit Behal said...

श्री कृष्ण जी का सम्पूर्ण जीवन ही प्रेरणामयी दर्शन है...