मोबाइल स्क्रीन, जंक फूड और बदलती जीवनशैली ने छीनी मासूमियत; समाज और परिवार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
बचपन को जीवन का सबसे सुंदर और बेफ़िक्र समय माना जाता है, लेकिन आज का बचपन पहले जैसा नहीं रहा। जहां कभी बच्चे खुले मैदानों में खेलते, कहानियों की दुनिया में खोए रहते और घर के बुजुर्गों से जीवन के मूल्य सीखते थे, वहीं अब मोबाइल स्क्रीन, जंक फूड और तेज़ रफ्तार जीवनशैली ने उनकी मासूमियत को समय से पहले छीन लिया है।
मोबाइल स्क्रीन का बढ़ता जाल
स्मार्टफोन और टैबलेट बच्चों के लिए मनोरंजन का मुख्य साधन बन गए हैं। डिजिटल गेम्स और वीडियो की आदत बच्चों को वास्तविक दुनिया से दूर कर रही है। घंटों स्क्रीन पर समय बिताने से न केवल उनकी शारीरिक सक्रियता कम हो रही है, बल्कि आंखों, दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।
जंक फूड का ज़हर
फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक और पैकेज्ड स्नैक्स स्वाद में भले ही लुभावने हों, लेकिन इनमें मौजूद उच्च कैलोरी, नमक, शक्कर और प्रिज़र्वेटिव्स बच्चों के शरीर में मोटापा, हार्मोनल असंतुलन और पाचन संबंधी समस्याएं पैदा कर रहे हैं। इनका नियमित सेवन बच्चों की प्राकृतिक वृद्धि को बाधित करता है।
बदलती जीवनशैली और पारिवारिक दूरी
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय कम हो गया है। पढ़ाई, ट्यूशन और प्रतियोगिता की दौड़ में बच्चे खेल और रचनात्मक गतिविधियों से दूर हो रहे हैं। इस कमी को अक्सर स्क्रीन और जंक फूड भर देते हैं, लेकिन ये आदतें लंबे समय में बच्चों की सोच, स्वास्थ्य और व्यवहार पर नकारात्मक असर छोड़ती हैं।
समाधान की दिशा
- डिजिटल समय सीमा तय करें और बच्चों को बाहरी खेलों और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें।
- घर का बना पौष्टिक भोजन प्राथमिकता दें और जंक फूड को कभी-कभार तक सीमित रखें।
- माता-पिता का समय और संवाद बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा का सबसे बड़ा आधार है।
- सकारात्मक सामाजिक वातावरण दें, जिसमें बच्चे अच्छे मूल्यों और आदतों को अपनाएं।
समय आ गया है कि समाज और परिवार मिलकर बच्चों के बचपन को संवारने के लिए ठोस कदम उठाएं। यह केवल स्वास्थ्य का विषय नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के संतुलित और स्वस्थ विकास का प्रश्न है। यदि हम आज सतर्क नहीं हुए, तो कल हमें ऐसी पीढ़ी का सामना करना पड़ेगा, जिसका बचपन अधूरा और जीवन असंतुलित होगा।
बचपन सिर्फ उम्र का नहीं, बल्कि अनुभव, संस्कार और सीख का नाम है। इसे बचाना हम सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी है, ताकि हमारे बच्चे न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ हों, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनें।
3 comments:
Matter of Serious Concern... CHILDHOOD is really at stake...
Parenting is required at every step
Real and burning problem. But I don't see any way out of it. It will rather incre
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