Thursday, August 14, 2025

मोबाइल स्क्रीन, जंक फूड और बदलती जीवनशैली ने छीनी मासूमियत; समाज और परिवार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत


मोबाइल स्क्रीन, 
जंक फूड और बदलती जीवनशैली ने छीनी मासूमियतसमाज और परिवार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत

लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा

बचपन को जीवन का सबसे सुंदर और बेफ़िक्र समय माना जाता हैलेकिन आज का बचपन पहले जैसा नहीं रहा। जहां कभी बच्चे खुले मैदानों में खेलतेकहानियों की दुनिया में खोए रहते और घर के बुजुर्गों से जीवन के मूल्य सीखते थेवहीं अब मोबाइल स्क्रीनजंक फूड और तेज़ रफ्तार जीवनशैली ने उनकी मासूमियत को समय से पहले छीन लिया है।

मोबाइल स्क्रीन का बढ़ता जाल

स्मार्टफोन और टैबलेट बच्चों के लिए मनोरंजन का मुख्य साधन बन गए हैं। डिजिटल गेम्स और वीडियो की आदत बच्चों को वास्तविक दुनिया से दूर कर रही है। घंटों स्क्रीन पर समय बिताने से न केवल उनकी शारीरिक सक्रियता कम हो रही हैबल्कि आंखोंदिमाग और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।

जंक फूड का ज़हर

फास्ट फूडकोल्ड ड्रिंक और पैकेज्ड स्नैक्स स्वाद में भले ही लुभावने होंलेकिन इनमें मौजूद उच्च कैलोरीनमकशक्कर और प्रिज़र्वेटिव्स बच्चों के शरीर में मोटापाहार्मोनल असंतुलन और पाचन संबंधी समस्याएं पैदा कर रहे हैं। इनका नियमित सेवन बच्चों की प्राकृतिक वृद्धि को बाधित करता है।

बदलती जीवनशैली और पारिवारिक दूरी

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय कम हो गया है। पढ़ाईट्यूशन और प्रतियोगिता की दौड़ में बच्चे खेल और रचनात्मक गतिविधियों से दूर हो रहे हैं। इस कमी को अक्सर स्क्रीन और जंक फूड भर देते हैंलेकिन ये आदतें लंबे समय में बच्चों की सोचस्वास्थ्य और व्यवहार पर नकारात्मक असर छोड़ती हैं।

समाधान की दिशा

  • डिजिटल समय सीमा तय करें और बच्चों को बाहरी खेलों और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें।
  • घर का बना पौष्टिक भोजन प्राथमिकता दें और जंक फूड को कभी-कभार तक सीमित रखें।
  • माता-पिता का समय और संवाद बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा का सबसे बड़ा आधार है।
  • सकारात्मक सामाजिक वातावरण देंजिसमें बच्चे अच्छे मूल्यों और आदतों को अपनाएं।

समय आ गया है कि समाज और परिवार मिलकर बच्चों के बचपन को संवारने के लिए ठोस कदम उठाएं। यह केवल स्वास्थ्य का विषय नहींबल्कि आने वाली पीढ़ी के संतुलित और स्वस्थ विकास का प्रश्न है। यदि हम आज सतर्क नहीं हुएतो कल हमें ऐसी पीढ़ी का सामना करना पड़ेगाजिसका बचपन अधूरा और जीवन असंतुलित होगा।

बचपन सिर्फ उम्र का नहींबल्कि अनुभवसंस्कार और सीख का नाम है। इसे बचाना हम सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी हैताकि हमारे बच्चे न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होंबल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनें।

3 comments:

Amit Behal said...

Matter of Serious Concern... CHILDHOOD is really at stake...

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Parenting is required at every step

Dr K S Bhardwaj said...

Real and burning problem. But I don't see any way out of it. It will rather incre