स्वतंत्रता दिवस विशेष – आचार्य रमेश सचदेवा
प्रस्तावना
स्वतंत्रता दिवस केवल तिरंगा फहराने का उत्सव
नहीं—यह स्मरण और संकल्प का दिन है। 1947
ने हमें एक साथ आज़ादी का अमृत और बँटवारे का
ज़हर दोनों चखाया। लाखों लोग उजड़े, हजारों कहानियाँ खामोश हो
गयीं, पर इसी राख से एक नया भारत जन्मा—लोकतंत्र, संविधान और नागरिक अधिकारों का भारत। “मेरे हिस्से का 1947” का अर्थ है:
मेरी स्मृति, मेरी पीड़ा, मेरी आशाएँ—और मेरा कर्तव्य।
1947 का असली अर्थ
- अर्थ 1:
स्वाधीनता—गुलामी की जंजीरों का टूटना, अपनी भाषा,
अपनी संस्कृति और अपने भविष्य पर अधिकार।
- अर्थ 2:
कीमत—हिजरत, कतारों
में खड़े शरणार्थी, लापता परिजन, राख होते घर।
- अर्थ 3:
पुनर्निर्माण—खाली हाथ
आये लोग मेहनत और हिम्मत से बाजार, खेत, कॉलोनियां,
स्कूल, मिलें फिर से खड़ी करते गये।
सीमाएँ बदलीं, पर पड़ोस का सच नहीं
बँटवारे ने नक्शे पर लकीरें खींच दीं; मगर गांवों की हकीकत यह रही कि दूध-मक्खन, बीज और बरसों की दोस्ती किसी काग़ज़ से
नहीं कटती। कहीं मस्जिद ने मंदिर की चौखट बचायी, कहीं गुरुद्वारे ने लंगर
में अमन परोसा, कहीं हिन्दू परिवार ने अपने मुस्लिम पड़ोसी को रातों-रात
सीमा पार पहुँचाया। यही भारत की आत्मा है: संकट में भी साथ खड़े होना।
महिलाओं और बच्चों की अनकही दास्तान
सबसे भारी कीमत महिलाओं और बच्चों ने चुकायी—लुटा घर, टूटी अस्मिता, बिखरा बालपन। आज़ादी का उत्सव तभी पूर्ण है जब
हम यह स्वीकारें कि इतिहास का यह दर्द हमारी सामूहिक स्मृति का हिस्सा है, और स्त्री-सुरक्षा व बाल-अधिकार हमारा आज का
पक्का वचन।
पुनर्वास की महागाथा
सरकारी शिविर, राशन, अस्थायी स्कूल, नयी बस्तियाँ—यह सब सिर्फ प्रशासन नहीं था;
यह समाज की सामूहिक करुणा थी। गुरुद्वारों के
लंगर, मंदिर-मस्जिद की सराय, स्थानीय समितियाँ, अध्यापक और डॉक्टर—इन सबने मिलकर “शरणार्थी” को “नागरिक” बनाया। यही वह संस्कार है जिसे हमें अगली पीढ़ी को पढ़ाना है: दुख में दस्तक देना।
संविधान: दर्द से जन्मी प्रतिज्ञा
हमारे संविधान ने स्वतंत्रता, समानता, बंधुता की शपथ दिलायी। धर्म-निरपेक्षता कोई शब्द नहीं—यह 1947 के जख्मों की दवा है। मतभेद लोकतंत्र का अधिकार है; घृणा लोकतंत्र का पतन।
स्वतंत्रता दिवस पर यह मानना होगा कि कानून के सामने
सब बराबर हैं—और यह बराबरी हमें रोज निभानी है।
आज के भारत की चुनौतियाँ और हमारा काम
- सामाजिक
सौहार्द: धर्म, जाति, भाषा—किसी भी नाम पर नफरत नहीं; असहमति को
संवाद बनाना।
- सूचना-संयम:
अफ़वाह, फ़ेक न्यूज़, ट्रोल
संस्कृति—इन पर लगाम हमारा ही बौद्धिक अनुशासन लगाएगा।
- शिक्षा और
कौशल: हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा; कौशल से रोजगार, नवाचार से
आत्मनिर्भरता।
- न्याय और
संवेदना: कमजोर की सुनवाई, महिला-सुरक्षा,
श्रमिक-गरिमा—यही असली राष्ट्रवाद।
- पर्यावरण-संकल्प:
नदियाँ, जंगल, जैव-विविधता—अगली
पीढ़ी का हक़; विकास और प्रकृति का संतुलन।
- सीमा-सुरक्षा
और नागरिक-कर्तव्य: सैनिक मोर्चे पर हैं, हम कर-ईमानदारी, मतदान,
स्वच्छता, ट्रैफिक
अनुशासन से मोर्चे पर रहें।
“मेरे हिस्से का 1947” – व्यक्तिगत प्रतिज्ञा
- मैं सत्य, संवेदना और समानता को निजी जीवन में लागू करूँगा/करूँगी।
- किसी भी
पीड़ित—चाहे वह शरणार्थी हो, मज़दूर, महिला या बच्चा—के लिए आवाज़ बनूँगा/बनूँगी।
- तीन
सेवा-संकल्प: हर साल रक्त/नेत्र/अंगदान की जागरूकता, एक छात्र
की फीस/किताबों में सहयोग, और अपने मोहल्ले में पेड़ व साफ़-सफ़ाई की अभियान में
भागीदारी।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता दिवस पर झंडा सिर्फ हवा से नहीं, हमारी आत्मा से लहरता है। 1947
ने
सिखाया—आज़ादी मुफ़्त नहीं, और नफरत का कोई अंत नहीं।
इसलिए अमन, न्याय और करुणा—यही नया भारत गढ़ेंगे।
आइए, हम सब मिलकर
कहें:
“मेरे हिस्से का 1947—याद, सीख और वचन। मैं आज़ादी की लौ को नफरत की आँधी से
बचाऊँगा/बचाऊँगी।”
जय हिन्द।
1 comment:
बहुत सुंदर रचना है । जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
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