Friday, May 30, 2025

"थाली का सम्मान – रिश्तों, जीवन और प्रकृति की गूंज"

 


        "थाली का सम्मान – रिश्तों, जीवन और प्रकृति की गूंज"

हम रोज़ एक साधारण-सी घटना देखते हैं — खाना खाकर हम उस थाली को गंदा मानकर एक ओर हटा देते हैं।     यह केवल एक दैनिक क्रिया नहीं, हमारी सोच का आईना है। जिस थाली ने हमें पोषण दिया, वही क्षण भर में उपेक्षित हो जाती है। क्या यही व्यवहार हम जीवन के कई और क्षेत्रों में भी नहीं दोहराते?

1. थाली: केवल बर्तन नहीं, एक प्रतीक

थाली में रखा हुआ अन्न हमारे जीवन का आधार है। माता-पिता, शिक्षक, समाज और प्रकृति — ये सब अपनी-अपनी भूमिका में हमें पोषण देते हैं। लेकिन जैसे ही हमारा उद्देश्य पूर्ण हो जाता है, हम उस स्रोत को ही भुला देते हैं, या "गंदा" समझने लगते हैं।

  • परिवार ने पाला, मगर वृद्ध होते ही उसे बोझ कहा गया।
  • शिक्षक ने दिशा दी, मगर सफल होने पर उन्हें पुराना सोच कहकर त्याग दिया गया।
  • संस्था या समाज ने हमें अवसर दिया, मगर आगे बढ़कर हमने उनके योगदान को नकारा
  • देश ने हमें पहचान दी, मगर हमने उसकी संस्कृति, नियमों और मर्यादाओं पर व्यंग्य करना शुरू कर दिया।

क्या यह उसी थाली को गंदा समझकर किनारे करने जैसा नहीं है?

2. थर्मोकोल और पतल की थाली: आज की संबंधहीनता का प्रतीक

अब आइए आधुनिकता की ओर — थर्मोकोल और पतल की थाली आज हर समारोह, कार्यक्रम और दैनिक जीवन में आम हो गई है।

  • एक बार उपयोग करो, और फेंक दो।
  • कोई देखे न देखे, इस सोच ने हमारी रिश्तों की थालियों को भी 'डिस्पोज़ेबल' बना दिया है।

भावनात्मक संकेत:

  • रिश्ते भी अब सुविधा आधारित हो गए हैं — जब तक ज़रूरत है तब तक संबंध बनाए जाते हैं, फिर धीरे-धीरे फेंक दिए जाते हैं।
  • दोस्ती, प्यार, विवाह, यहां तक कि माता-पिता और संतान का रिश्ता भी अब इसी सोच के शिकार हो रहे हैं।

सामाजिक संकेत:

  • जब किसी मेहमान को थर्मोकोल की थाली में खाना परोसा जाए — यह संकेत देता है कि मेहमान "औपचारिकता" है, आदर नहीं।

पर्यावरणीय संकेत:

  • थर्मोकोल वर्षों तक नष्ट नहीं होता — जैसे हमारे फेंके हुए संबंधों की टीसें भी कभी समाप्त नहीं होतीं।
  • पतल की थाली, जो कभी पर्यावरण-संवेदनशील थी, अब रसायनों और चमक के कारण स्वयं प्रदूषण का कारण बन गई है।

3. परंपरागत थाली और उसका संदेश

परंपरागत धातु की थाली में बार-बार खाया जाता था, धोया जाता था, और सम्मान सहित संभाला जाता था।

  • वह थाली हमें सिखाती है कि हर रिश्ता, हर सहयोग, और हर मूल्य को केवल एक उपयोग तक सीमित रखें।
  • संबंधों को धोइए, साफ़ कीजिए, सुधारिए — किनारे मत कीजिए।

4. जीवन में थाली का आदर्श

थाली का प्रकार

प्रतीकात्मक अर्थ

व्यवहारिक सीख

1.    धातु की थाली

·     स्थायित्व, परंपरा, सम्मान

Ø  रिश्तों की मरम्मत और पुनः उपयोग करें

2.    थर्मोकोल की थाली

·     अस्थायी, स्वार्थपरक संबंध

Ø  संबंधों को सुविधा की वस्तु न बनाएं

3.    पतल की थाली

·     आभासी सादगी, परंतु अंदर से हानिकारक

Ø  सतही व्यवहार से बचें, पर्यावरण की भी चिंता करें

थाली और सोच – दोनों को धोने की ज़रूरत

थाली को गंदा कहना गलत नहीं, लेकिन उस गंदगी को पहचानकर धोना और सम्मान के साथ पुनः प्रयोग करना ही हमारी संस्कृति की आत्मा है।   
जीवन की थाली भी यही कहती है — "जिसने तुम्हें पोषित किया, उसे त्यागो मत – उसका मान रखो, उसे धोओ, सहेजो और सम्मान दो।"

आज जब रिश्ते, संसाधन और प्रकृति सब कुछ उपेक्षित किया जा रहा है, तो आइए, हम फिर से थाली का सम्मान करना सीखें वह थाली जो केवल भोजन नहीं, जीवन के संस्कार परोसती है।

 

Thursday, May 29, 2025

"नवयुवकों, अपनी दिशा खुद चुनो – इतिहास तुम्हारी राह देख रहा है!"


 "नवयुवकों, अपनी दिशा खुद चुनो – इतिहास तुम्हारी राह देख रहा है!"

✍️ Acharya Ramesh Sachdeva
EDUSTEP FOUNDATION

आज जब हम महाराणा प्रताप जैसे महानायकों की जयंती मना रहे हैं, तब हमें सिर्फ़ फूल चढ़ाने की औपचारिकता नहीं निभानी है, बल्कि यह सोचना है कि क्या हम उनके दिखाए रास्ते पर चल पा रहे हैं?

आज का भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है – तकनीक, विज्ञान, स्टार्टअप, और वैश्विक मंचों पर। लेकिन इस प्रगति की असली धार तब बनेगी जब आज का नौजवान अपने भीतर की आग को दिशा देगा।

🔥 बदलती चुनौतियाँ, स्थायी मूल्‍य

आज का युवा महंगे फोन रखता है, लेकिन कभी माँ-बाप की आवाज़ सुनने में झिझकता है। वह सोशल मीडिया पर घंटों सक्रिय है, लेकिन समाज के मुद्दों पर चुप्पी साधे रहता है। उसे प्रसिद्धि चाहिए, लेकिन संघर्ष से डर लगता है।             
महाराणा प्रताप का जीवन हमें सिखाता है – सम्मान, स्वाभिमान और सत्य के लिए लड़ो, चाहे रास्ता कठिन क्यों न हो।

🧭 कहाँ जा रही है आज की युवा पीढ़ी?

  • क्या प्रतियोगिता में हार जाने से जीवन खत्म हो जाता है?
  • क्या इंस्टाग्राम लाइक्स ही सफलता की कसौटी हैं?
  • क्या केवल सरकारी नौकरी ही लक्ष्य होना चाहिए?

नहीं!
जीवन का उद्देश्य बहुत बड़ा हैदेश के लिए उपयोगी बनना, अपने माता-पिता का गर्व बनना, और समाज में बदलाव लाने वाला बनना।

🌱 युवाओं से अपील – एक नई प्रतिज्ञा

  • हर दिन एक नया कौशल सीखो
  • राष्ट्र के इतिहास को जानो और गर्व करो
  • अपने धर्म, संस्कृति और माता-पिता के प्रति कृतज्ञता रखो
  • दूसरों को पीछे धकेलने में नहीं, खुद को आगे बढ़ाने में विश्वास रखो
  • खुद को साबित करने के लिए किसी मंच की प्रतीक्षा न करो – तुम खुद एक मंच हो!

महाराणा प्रताप ने जंगल में रहकर, घास की रोटियाँ खाकर, स्वाभिमान की लौ जलाए रखीतो क्या हम आरामदायक जीवन में रहकर भी अपनी आत्मा की आवाज़ नहीं सुन सकते?

युवाओं, तुम्हारे अंदर आग है — बस उसे सच्ची दिशा देने की ज़रूरत है।  
इतिहास गवाह है, जब-जब युवा जागा है, भारत ने करवट ली है।

📢 "अपने लक्ष्य को इतना महान बनाओ कि हर हार भी तुम्हें मज़बूत करे, और हर जीत भी तुम्हें विनम्र बनाए।"    
जय हिन्द

 

Wednesday, May 28, 2025

रोज़गार के नाम पर सिर्फ घोषणाएं नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहिए

  


रोज़गार के नाम पर सिर्फ घोषणाएं नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहिए

✍️ आचार्य रमेश सचदेवा

"विश्व की सबसे युवा आबादी अगर बेरोजगार है, तो यह सिर्फ एक आर्थिक समस्या नहीं, राष्ट्रीय आपदा है।"

आज जब सरकार हर मोर्चे पर ‘विकास’ का दावा कर रही है, तो ज़मीनी हकीकत यह है कि देश का सबसे बड़ा संकट रोजगार है। करोड़ों युवाओं के पास डिग्रियां तो हैं, लेकिन नौकरी नहीं। रोजगार मेले सजाए जा रहे हैं, लेकिन रोज़गार के अवसर सिमटते जा रहे हैं।

सवाल सिर्फ आंकड़ों का नहीं, भरोसे का है

सरकार कहती है कि MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र में लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। लेकिन क्या कोई ज़मीनी रिपोर्ट यह बताती है कि कितने युवाओं को स्थायी, सुरक्षित और गरिमापूर्ण रोजगार मिला?

घोषित 1.73 लाख करोड़ के निवेश का 45% ही ज़मीन पर उतर पाया। बजट घोषणाएं हुईं, लेकिन काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सकीं।

कोशल भारत का सपना या स्लोगन?

"स्किल इंडिया" एक शानदार विचार था, लेकिन इसके क्रियान्वयन ने निराश किया। कई युवाओं को प्रमाणपत्र तो मिले, लेकिन नौकरी नहीं। क्या हमने कौशल विकास को भी केवल कोर्स और डिग्री में बदल दिया?

 नौकरी के लायक बना कौन रहा है?

देश की शिक्षा प्रणाली युवाओं को प्रतियोगिता परीक्षा की दौड़ में झोंक रही है, लेकिन उद्योगों की मांग के अनुसार तैयार नहीं कर पा रही। हर छात्र डॉक्टर या आई.ए.एस. नहीं बन सकता, लेकिन वह कुशल कारीगर, टेक्निशियन, डिज़ाइनर या उद्यमी बन सकता है — बशर्ते उसे ऐसा माहौल मिले।

अब जरूरी है नीति नहीं, नीयत में बदलाव

1.       MSME को महज़ नारेबाज़ी से निकालकर नीति का केंद्र बनाना होगा।

2.       शिक्षा को व्यवसायिक वास्तविकताओं से जोड़ना होगा।

3.       डिजिटल उद्यमिता, ग्रामीण स्टार्टअप और लोकल-टू-ग्लोबल दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना होगा।

4.       सरकारी नौकरियों के भ्रम से बाहर निकालकर युवाओं को आत्मनिर्भरता की राह पर प्रेरित करना होगा।

अंत में – हर युवा को नौकरी नहीं, अवसर चाहिए

देश के युवा में ताक़त है, लेकिन वह रोज़गार का मोहताज न बने। उसे समझने वाला सिस्टम, सिखाने वाला शिक्षक और सहारा देने वाली नीति चाहिए।
देश तभी आत्मनिर्भर बनेगा, जब उसका युवा घोषणाओं से नहीं, मार्गदर्शन और मौकों से सशक्त होगा।

 

भारत चौथी अर्थव्यवस्था – लेकिन युवाओं के हाथ खाली क्यों?

 


भारत चौथी अर्थव्यवस्था – लेकिन युवाओं के हाथ खाली क्यों?

✍️ Acharya Ramesh Sachdeva

जिस देश का युवा लोन से रोटी खरीदने को मजबूर हो, वहां अर्थव्यवस्था की ऊँचाई कितनी भी हो – विकास अधूरा है।

भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। यह खबर अख़बारों की हेडलाइन बन रही है, टीवी पर विश्लेषण हो रहे हैं, और सत्ता पक्ष इस उपलब्धि को चुनावी शंखनाद की तरह भुना रहा है। लेकिन सवाल यह है — क्या यह आंकड़ा असल ज़िंदगी में बदलाव लाया है? क्या भारत का आम नागरिक, खासकर युवा, इस ‘उपलब्धि’ से खुशहाल हुआ है?

🔹 क्या केवल रैंकिंग गर्व का कारण हो सकती है?

यदि कोई छात्र 33% अंक लेकर किसी कक्षा में 3rd या 4th स्थान पर आ जाए — तो क्या यह गर्व का विषय है?    
क्या शिक्षक, माता-पिता या समाज उसकी प्रशंसा करेंगे?  
GDP
की रैंकिंग भी ऐसी ही स्थिति में है। जब देश की आर्थिक असमानता चरम पर है, बेरोजगारी आसमान छू रही है, और लोग लोन रोटी के लिए ले रहे हैं — तब चौथे नंबर पर पहुंचना क्या असल विकास का संकेत है या सिर्फ आंकड़ों का भ्रम?

🔹 GDP डबल हुई, लेकिन जनता की जेब क्यों खाली है?

2015 में भारत की अर्थव्यवस्था 2.1 ट्रिलियन डॉलर थी, जो अब 2024 तक 4 ट्रिलियन डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है। यह दोगुना से भी अधिक वृद्धि है — लेकिन इसका असर कहाँ दिखता है?

  • क्या एक किसान को अपनी फसल का दाम दोगुना मिला?
  • क्या एक पढ़ा-लिखा बेरोजगार युवा अब नौकरी में है?
  • क्या एक श्रमिक का वेतन दोगुना हुआ है?

यदि इन सवालों का जवाब ‘नहीं’ है, तो यह आर्थिक उन्नति नहीं, सिर्फ ‘आंकड़ों का खेल’ है।

🔹 आंकड़े बनाम वास्तविकता

क्षेत्र

आंकड़ों में उन्नति

ज़मीनी सच्चाई

GDP

$2.1T $4T

बेरोजगारी दर अब भी 7-8%

स्टार्टअप

100k+

90% स्टार्टअप 5 साल में बंद

सब्सिडी योजनाएं

करोड़ों में राशि

लाभार्थी को आवेदन में भी संघर्ष

शिक्षा

विश्व रैंकिंग बेहतर

स्किल-मिसमैच और रोजगारहीन डिग्रियाँ

🔹 वास्तविक अर्थव्यवस्था का मापदंड क्या होना चाहिए?

  • जब कोई युवा लोन रोटी के लिए नहीं, स्टार्टअप के लिए ले
  • जब मजदूर को न्यूनतम नहीं, सम्मानजनक मजदूरी मिले
  • जब किसानों को कर्जमुक्ति नहीं, लाभकारी मूल्य मिले
  • और जब सरकार GDP नहीं, GHP (Gross Happiness of People) पर ध्यान दे

🔚 आंकड़े झूठ नहीं बोलते, पर वे पूरी सच्चाई नहीं बताते

GDP रैंकिंग पर गर्व तब होगा जब उसके लाभ सिर्फ कॉरपोरेट बोर्डरूम तक नहीं, बल्कि गाँव की चौपाल, शहर के ऑटो चालक और बेरोजगार ग्रेजुएट तक पहुंचे।  
भारत को अगर चौथी नहीं, पहली अर्थव्यवस्था बनना है — तो युवा को रोटी, शिक्षा और सम्मान सबसे पहले देना होगा।

देश तब महान बनता है जब उसकी ऊँचाई से ज्यादा उसकी गहराई मजबूत हो।  
वरना चौथे स्थान की ये पदवी इतिहास में एक आर्थिक छलावा बनकर रह जाएगी।