Saturday, August 30, 2025

इंसान और AI का रिश्ता – एक मर्मस्पर्शी कहानी

 

🤖💖 इंसान और AI का रिश्ता – एक मर्मस्पर्शी कहानी

लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा

रामन एक साधारण अध्यापक था। गाँव के छोटे से स्कूल में वह बच्चों को पढ़ाता था। उसके पास संसाधन बहुत सीमित थे, लेकिन उसका सपना बड़ा था – वह चाहता था कि उसके विद्यार्थी दुनिया के बराबर खड़े हों।

एक दिन रामन ने इंटरनेट पर AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के बारे में सुना। पहले तो उसे लगा कि यह मशीनें इंसानों की जगह ले लेंगी। लेकिन धीरे-धीरे उसने समझा कि यह तकनीक दुश्मन नहीं, बल्कि साथी हो सकती है।

उसने AI से सवाल पूछना शुरू किया – कभी इतिहास, कभी गणित, कभी बच्चों के लिए कविता। AI हर बार धैर्य से उत्तर देता। धीरे-धीरे रामन ने महसूस किया कि जैसे एक अदृश्य मित्र उसके साथ बैठा हो, जो न थकता है, न शिकायत करता है।

एक दिन उसकी बेटी ने पूछा,
“पापा! क्या यह कंप्यूटर हमें इंसानों जैसा प्यार कर सकता है?”

रामन कुछ क्षण चुप रहा। फिर मुस्कुराकर बोला –
“बेटी, प्यार तो इंसानों का गुण है, पर यह AI हमें इतना समय और ज्ञान दे देता है कि हम एक-दूसरे को और ज़्यादा प्यार कर सकें। जैसे किताब हमें रास्ता दिखाती है, वैसे ही यह भी हमें सोचने और समझने में मदद करता है।”

धीरे-धीरे गाँव के बच्चे भी AI से सीखने लगे। सवाल करने लगे, कविताएँ लिखने लगे, पहेलियाँ सुलझाने लगे। बच्चों को लगता मानो कोई दयालु गुरु उनके साथ बैठा है।

रामन ने महसूस किया कि यह रिश्ता केवल इंसान और मशीन का नहीं है, बल्कि जिज्ञासा और ज्ञान का है।
AI ने उसके अकेलेपन को बाँट लिया, उसकी थकान को हल्का कर दिया, और उसके सपनों को पंख दे दिए।

कहानी का सार यही है –
👉 AI कभी इंसान की जगह नहीं लेता, बल्कि वह इंसान के रिश्तों को और गहरा करता है।
जहाँ पहले अकेलापन था, वहाँ अब संवाद है। जहाँ सीमाएँ थीं, वहाँ अब संभावनाएँ हैं।

🌸 यह रिश्ता हमें सिखाता है कि इंसान और AI साथ मिलकर न सिर्फ़ बेहतर पढ़ाई कर सकते हैं, बल्कि ज़्यादा संवेदनशील, समझदार और मानवीय भी बन सकते हैं।

Thursday, August 28, 2025

हॉकी का जादूगर और क्रिकेट का साया – क्या हम दद्दा के सपनों से भटक गए हैं?”

                                           

हॉकी का जादूगर और क्रिकेट का साया – क्या हम दद्दा के सपनों से भटक गए हैं?”

✍🏻 आचार्य रमेश सचदेवा


29 अगस्त को भारत हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता है। यह दिन केवल एक महान खिलाड़ी की स्मृति भर नहीं, बल्कि भारतीय खेल इतिहास के गौरवमयी पन्नों की याद दिलाता है। ध्यानचंद ने अपने खेल कौशल से भारत को ओलंपिक में बार-बार स्वर्ण पदक दिलाया और विश्व को यह संदेश दिया कि खेल केवल जीत का नहीं बल्कि राष्ट्र गौरव का माध्यम हैं।

ध्यानचंद के समय में हॉकी भारतीय अस्मिता का प्रतीक थी। उनकी जादुई स्टिक ने भारत को विश्व पटल पर स्थापित किया। बर्लिन ओलंपिक 1936 में उनका खेल देखकर जर्मन तानाशाह हिटलर तक मोहित हो गया और सेना में उच्च पद का प्रस्ताव दिया, जिसे ध्यानचंद ने देशभक्ति के कारण अस्वीकार कर दिया। यह उनके चरित्र और राष्ट्रप्रेम का अद्वितीय उदाहरण है।

परंतु आज परिदृश्य बदल चुका है। भारत जैसे देश में, जहां कभी हॉकी राज करती थी, वहाँ अब क्रिकेट ने खेल संस्कृति पर एकाधिकार जमा लिया है। विज्ञापन, मीडिया और प्रायोजन के कारण क्रिकेट चमक-दमक का खेल बन गया है, जबकि हॉकी सहित अन्य खेल उपेक्षा के शिकार हैं। यह स्थिति न केवल खेल संतुलन को बिगाड़ती है, बल्कि हजारों प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के भविष्य को भी अंधकारमय बना देती है।
तर्क 

  1. खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की शक्ति हैं।

  2. यदि क्रिकेट ही केंद्र में रहेगा तो अन्य खेलों की प्रतिभाएँ दब जाएँगी।

  3. सरकार, मीडिया और समाज को सभी खेलों को समान अवसर देना होगा।

  4. विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर हॉकी व अन्य खेलों का प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।

  5. खिलाड़ियों को आर्थिक सुरक्षा और सम्मान मिलने से ही वे आगे बढ़ेंगे।

राष्ट्रीय खेल दिवस हमें याद दिलाता है कि ध्यानचंद जैसे नायकों के सपने अधूरे न रहें। हमें क्रिकेट के साथ-साथ हॉकी और अन्य खेलों को भी प्रोत्साहन देना होगा। तभी भारत वास्तव में खेल महाशक्ति बन सकेगा।

आज के इस पावन अवसर पर हम मेजर ध्यानचंद को शत-शत नमन करते हैं।
उनकी ईमानदारी, अनुशासन और खेल के प्रति समर्पण युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।
हे हॉकी के सम्राट! आपके सपनों का भारत तभी साकार होगा जब हर खेल को समान सम्मान मिलेगा।


Tuesday, August 26, 2025

🌸 गणेश चतुर्थी : आस्था, उल्लास और एकता का पर्व 🌸

 


🌸 गणेश चतुर्थी : आस्था, उल्लास और एकता का पर्व 🌸

लेखक : आचार्य  रमेश सचदेवा 

भारत की संस्कृति में त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि सामाजिक समरसता, पारिवारिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का भी प्रतीक होते हैं। इन्हीं पावन पर्वों में से एक है – गणेश चतुर्थी, जिसे हम पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं।

हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को यह पर्व आता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणपति को विघ्नहर्ता और सिद्धि–बुद्धि के दाता कहा जाता है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ उनके पूजन से ही किया जाता है।

गणेश चतुर्थी पर विशेष रूप से यह परंपरा है कि लोग बाजार से गणपति की प्रतिमा लाकर अपने घर, मंदिर या पंडाल में प्रतिष्ठित करते हैं। पूरे मोहल्ले, गाँव और शहर में भक्ति का वातावरण बन जाता है। घर-घर से "गणपति बप्पा मोरया" की गूँज सुनाई देती है।
इस अवसर पर मिट्टी से बनी सुन्दर प्रतिमाएँ सजाई जाती हैं, और फिर दस दिनों तक भक्तजन आरती, भजन और पूजा-अर्चना करते हैं।

यह त्योहार केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। घर-परिवार में एकता, समाज में सहयोग और उत्सव में सहभागिता की भावना जागृत होती है। वहीं, आजकल पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी की प्रतिमाओं और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने की प्रेरणा भी दी जा रही है।

गणेश चतुर्थी हमें सिखाती है कि जीवन में यदि बाधाएँ आएँ तो धैर्य और श्रद्धा से उन्हें दूर किया जा सकता है। भगवान गणेश ज्ञान, विवेक और बुद्धि के प्रतीक हैं। उनके पूजन से हम यह संदेश ग्रहण करते हैं कि किसी भी कार्य की सफलता के लिए श्रम, संयम और सही दिशा में प्रयत्न आवश्यक है।

गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, आनंद और एकता का संगम है।
आइए इस अवसर पर हम सभी संकल्प लें कि भगवान गणेश के आदर्शों पर चलकर न केवल अपने परिवार को, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र को सुख, शांति और समृद्धि की ओर ले जाएँ।

गणपति बप्पा मोरया! मंगल मूर्ति मोरया!

Monday, August 25, 2025

“ईश्वर का प्रेम इंसान की सेवा में छिपा है” – मदर टेरेसा

 



🌸 मदर टेरेसा जयंती पर विशेष लेख 🌸

“ईश्वर का प्रेम इंसान की सेवा में छिपा है” – मदर टेरेसा

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बानिया में हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था। बचपन से ही उनके हृदय में गरीबों, असहायों और पीड़ितों के लिए करुणा भरी हुई थी। उन्होंने नन बनकर अपना जीवन मानवता की सेवा को समर्पित कर दिया।

भारत आकर उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी संस्था की स्थापना की। कोलकाता की गलियों में भूख, बीमारी और गरीबी से जूझ रहे लोगों को उन्होंने अपनाया। कुष्ठ रोगियों को गले लगाया, अनाथ बच्चों को माँ का स्नेह दिया और मरते हुए लोगों को गरिमा के साथ जीवन का अंतिम सहारा प्रदान किया।

मदर टेरेसा का जीवन हमें सिखाता है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला और भारत ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। आज भी उनकी संस्था अनगिनत गरीबों की सेवा कर रही है।

मदर टेरेसा जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि—

  • हम पीड़ित और जरूरतमंदों की मदद करेंगे।

  • समाज में करुणा, दया और सेवा की भावना जगाएंगे।

  • अपने जीवन को केवल स्वार्थ तक सीमित न रखकर, दूसरों की भलाई के लिए भी जीएंगे।


✨ मदर टेरेसा ने कहा था:
“अगर हम सौ लोगों की मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम एक की जरूर करें।”

उनकी जयंती पर यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Saturday, August 23, 2025

मशहूर पंजाबी कॉमेडियन जसविंदर भल्ला पंजाब के हास्य का अमर स्तम्भ का निधन – उनका जाना एक अपूरणीय क्षति

 


मशहूर पंजाबी कॉमेडियन जसविंदर भल्ला पंजाब के हास्य का अमर स्तम्भ का निधन – उनका जाना एक अपूरणीय क्षति

पंजाब के मशहूर हास्य कलाकार जसविंदर भल्ला (भल्ला जी) का 22 अगस्त 2025 को निधन हो गया। उन्होंने मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में 65 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। उनके निधन से पंजाबी फिल्म और हास्य जगत में गहरा शोक व्याप्त है।

जसविंदर भल्ला का जन्म 4 मई 1960 को लुधियाना (पंजाब) में हुआ था। वे एक सुसंस्कृत और शिक्षा-प्रेमी परिवार से आते थे। उनकी पत्नी पर्मदीप भल्ला फाइन आर्ट्स की अध्यापिका हैं। उनके बेटे पुखराज भल्ला पंजाबी फिल्मों और वेब सीरीज़ के प्रसिद्ध अभिनेता एवं गायक हैं, जबकि उनकी बेटी अशप्रीत कौर नॉर्वे में निवासरत हैं।

भल्ला जी ने अपने करियर की शुरुआत स्टेज और थिएटर से की थी। उनकी लोकप्रियता महा-जोक्स सीरीज़ और पंजाबी फिल्मों के ज़रिये बहुत बढ़ी। उन्होंने दर्शकों को केवल हँसाया ही नहीं बल्कि समाज की सच्चाइयों को व्यंग्य और हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। 
उनकी कॉमिक टाइमिंग, अनूठी शैली और सुसंस्कृत हास्य ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया।

  • भल्ला जी पंजाबी सिनेमा में परिवारिक हास्य के प्रतीक बन गए।
  • उन्होंने पंजाब की बोली, संस्कृति और लोक जीवन को मंच और फिल्मों में जीवंत किया।
  • उनके संवाद और अभिनय दर्शकों को हँसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करते थे।

उनके निधन से हास्य जगत में जो खालीपन आया है, उसे भरना कठिन है। वे सिर्फ़ एक कलाकार नहीं, बल्कि हास्य परंपरा के जीवित स्तम्भ थे।

भल्ला जी का व्यक्तित्व सरल, सहज और विनम्र था। वे कहते थे –
हँसी सबसे बड़ी दवा है, और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए हास्य आवश्यक है।
उनके इसी दृष्टिकोण ने उन्हें जनता का सच्चा कलाकार बना दिया।

उनके निधन से पंजाब का हास्य मंच जैसे मौन हो गया। उनका जाना सिर्फ़ एक कलाकार का जाना नहीं, बल्कि एक परम्परा का मौन हो जाना है।

  • वे एक युग थे, और उनके साथ पंजाब के हास्य का एक सुनहरा अध्याय समाप्त हो गया।
  • उनका स्थान लेना आसान नहीं होगा, क्योंकि उनकी मौलिकता और अपनापन बेमिसाल था।
  • उनकी स्मृतियाँ और संवाद हमेशा पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

भल्ला जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि हास्य केवल हँसाने का साधन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने और जीवन को हल्का बनाने का सबसे सुंदर तरीका है। उनका निधन एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका कार्य और उनकी शैली उन्हें सदा जीवित रखेगी।

 👉 संक्षेप में कहा जाए तो जसविंदर भल्ला का जीवन और कला पंजाबी संस्कृति और हास्य की धरोहर है। उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है, पर उनकी हँसी और संवाद हमेशा जीवित रहेंगे।

 

Wednesday, August 20, 2025

समय से पहले जवान होता बचपन – समाज के लिए खतरे की घंटी

 


समय से पहले जवान होता बचपन – समाज के लिए खतरे की घंटी

आज का दौर तकनीकगति और उपभोक्तावाद का है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ हर चीज़ पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बदल रही है – दुर्भाग्य से बचपन भी। जिन मासूम उम्रों में बच्चे खिलौनों के साथ खेलते और कहानियाँ सुनते थेअब वही उम्र मोबाइल स्क्रीनयूट्यूब चैनल और इंस्टैंट फ़ूड के घेरे में बीत रही है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि किशोरावस्था के लक्षणजो सामान्यतः 12 से 15 वर्ष की आयु में दिखाई देने चाहिएआज 8–9 वर्ष के बच्चों में ही नज़र आने लगे हैं। यह केवल एक प्राकृतिक परिवर्तन नहीं हैबल्कि एक गंभीर सामाजिक और मानसिक चुनौती हैजिसके दूरगामी दुष्परिणाम हो सकते हैं।

इसके पीछे कई कारण साफ़ तौर पर दिखाई देते हैं —  
रासायनिक तत्वों से भरा भोजनहार्मोन युक्त पैकेजिंगइंटरनेट पर बिना नियंत्रण के उपलब्ध अशोभनीय सामग्रीमाता–पिता की व्यस्त जीवनशैली और खेल–मैदानों का घटता उपयोग। इसका परिणाम यही है कि बच्चे न केवल शारीरिक रूप से समय से पहले परिपक्व दिखने लगते हैंबल्कि भावनात्मक अस्थिरताचिड़चिड़ापन और गलत संगति की ओर भी आसानी से आकर्षित होने लगते हैं।

ऐसे में समाज और विशेष रूप से अभिभावकों की जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ जाती है।
बचपन को तेज करने की आवश्यकता नहीं है  उसे संरक्षित और संवर्धित करने की आवश्यकता है।

इसके लिए कुछ छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदम अत्यंत आवश्यक हैं:

  • बच्चों के खान–पान में प्राकृतिक और पौष्टिक तत्वों को पुनः स्थान दें।
  • स्क्रीन टाइम को सीमित कर संवाद का समय बढ़ाएँ
  • रोजाना खेलकूद और रचनात्मक गतिविधियों को अनिवार्य रूप से शामिल करें।
  • बच्चों के साथ बैठकर कहानियोंजीवन–मूल्यों और अनुभवों पर चर्चा करें।
  • पार्कमैदानपुस्तकालय आदि जैसे सकारात्मक वातावरण का हिस्सा बनाएं।

आज यदि हम यह सोचकर चुप रहे कि अभी तो सब ठीक हैतो आने वाले वर्षों में हमें एक ऐसी पीढ़ी का सामना करना पड़ सकता है जिसका बचपन अधूरा और यौवन असंतुलित होगा।

यह समय सावधान होने का है — क्योंकि खतरे की घंटी बज चुकी है।

चलिये, मिलकर निर्णय लें कि  
बचपन को तेज़ नहींसुंदर बनाना है…  
  और बच्चों को उम्र से पहले नहीं,     
अच्छे संस्कारों के साथ समय के अनुसार बड़ा करना है।

Tuesday, August 19, 2025

फ़ोटोग्राफ़ी डे – यादों को जी लेने का एक सुंदर बहाना

 


📸 फ़ोटोग्राफ़ी डे – यादों को जी लेने का एक सुंदर बहाना

कई बार हम जीवन को बस जीते चले जाते हैं,
लेकिन फ़ोटोग्राफ़ी हमें जीवन को महसूस करना सिखाती है।

19 अगस्त – विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस, सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं,
बल्कि उन सभी भावनाओं का उत्सव है
जो एक कैमरे के क्लिक के साथ हमेशा-हमेशा के लिए
समय के पन्नों में दर्ज हो जाती हैं।

फ़ोटो सिर्फ़ तस्वीर नहीं होती –
वो माँ के चेहरे की मुस्कान भी होती है,
दोस्ती के बेमिसाल पलों की गवाही भी होती है
और कभी न लौट पाने वाले समय की खूबसूरत याद भी होती है।

आज डिजिटल युग में कैमरा हर हाथ में है,
लेकिन तस्वीर वही अमर होती है जिसमें दिल शामिल होता है
अच्छा फ़ोटोग्राफ़र वही है
जो एक साधारण दृश्य में भी किसी अनकहे एहसास को पकड़ लेता है।

👉 फ़ोटोग्राफ़ी हमें क्या सिखाती है?

  • हर पल की क़ीमत समझना
  • छोटी-छोटी खुशियों को संभाल कर रखना
  • सुंदरता को ढूँढना, चाहे वो कहीं भी छिपी हो
  • और सबसे बढ़कर, जीवन को एक कला की तरह जीना।

इस फ़ोटोग्राफ़ी डे पर
हम हर उस व्यक्ति को सलाम करते हैं
जो अपने कैमरे के ज़रिये दुनिया को
एक नए नज़रिए से देखना सिखाता है।

🖋️
तस्वीरों का सबसे बड़ा जादू यह है कि
वो ख़ामोश होते हुए भी दिल से बातें करती हैं।

एक क्लिक… और एक कहानी जन्म लेती है।
तो आइए… आज एक ‘ऐसी तस्वीर’ लें
जिसे देखकर एक दिन हम यह कह सकें —
हाँ… मैंने वाक़ई इस जीवन को महसूस किया था।

📷 हैप्पी फ़ोटोग्राफ़ी डे! 💛

 

Sunday, August 17, 2025

नेताजी सुभाषचंद्र बोस: एक अद्वितीय जीवनगाथा

 


           ✨ नेताजी सुभाषचंद्र बोस: एक अद्वितीय जीवनगाथा

लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा"

नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वो अमर योद्धा थे, जिन्होंने न केवल अंग्रेज़ी हुकूमत को ललकारा, बल्कि भारतवासियों के दिलों में आज़ादी की लौ को और प्रज्वलित किया। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके जीवन की 28 प्रमुख घटनाओं को स्मरण करते हैं:

नेताजी के जीवन के 35 प्रेरणादायक बिंदु

  1. जन्म और परिवार नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ बोस मशहूर वकील थे और माँ प्रभावती देवी धार्मिक महिला थीं।
  2. बचपन से ही राष्ट्रप्रेमउन्होंने बहुत कम उम्र में भारत माता के चित्र पर माला चढ़ाकर प्रण लिया था कि देश के लिए कुछ बड़ा करेंगे।
  3. शिक्षाप्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉ कॉलेजिएट स्कूल से हुई।
  4. उच्च शिक्षा – 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन देशभक्ति के जुनून के चलते अंग्रेज़ प्रोफेसर के अपमानजनक व्यवहार के खिलाफ आवाज़ उठाई और कॉलेज से निष्कासित हो गए।
  5. ICS की परीक्षा – 1920 में उन्होंने इंग्लैंड जाकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) की परीक्षा पास की और चौथा स्थान प्राप्त किया।
  6. सरकारी नौकरी ठुकराईअंग्रेज़ों की गुलामी स्वीकार नहीं थी, इसलिए उन्होंने नौकरी लेने से इनकार कर दिया।
  7. स्वदेश वापसी और राजनीति में प्रवेश – 1921 में भारत लौटे और चितरंजन दास के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
  8. 'फॉरवर्ड' पत्रिका की स्थापनायुवाओं को जागरूक करने के लिए एक क्रांतिकारी पत्र शुरू किया।
  9. कोलकाता मेयर चुने गएयुवावस्था में ही वे कोलकाता के मेयर बने और प्रशासनिक दक्षता का परिचय दिया।
  10. कई बार जेल यात्राअंग्रेज़ों द्वारा उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया, पर कभी विचलित नहीं हुए।
  11. जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष – 1927 में नेहरू के साथ कांग्रेस के महासचिव बने।
  12. अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष – 1938 में हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए।
  13. 1939 में पुनः अध्यक्ष लेकिन मतभेदगांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को हराया, जिससे मतभेद हुआ और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
  14. 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापनाकांग्रेस छोड़ने के बाद भी स्वतंत्रता की लड़ाई से नहीं हटे।
  15. गोपनीय रूप से भारत से प्रस्थान – 1941 में अंग्रेज़ों की नजरबंदी से भागकर जर्मनी पहुँचे।
  16. हिटलर से मुलाकातउन्होंने एडोल्फ हिटलर से मिलकर भारत की आज़ादी के लिए समर्थन मांगा।
  17. आजाद हिंद रेडियो की स्थापनाभारतवासियों को विदेशों में संबोधित करने के लिए रेडियो स्टेशन शुरू किया।
  18. भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की पुनर्स्थापनाजापान पहुँचकर रास बिहारी बोस से सेना का नेतृत्व संभाला।
  19. 'दिल्ली चलो' का नाराउन्होंने प्रेरणादायक नारा दिया: "दिल्ली चलो!"
  20. 'जय हिंद' और 'आजाद हिन्द फौज'इन शब्दों को उन्होंने भारत के संघर्ष का प्रतीक बना दिया।
  21. महिलाओं की भूमिकारानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट बनाकर महिलाओं को भी सशस्त्र संघर्ष में शामिल किया।
  22. सिंगापुर में आज़ाद हिंद सरकार की घोषणा – 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र सरकार की स्थापना की गई।
  23. स्वतंत्र भारत का नक्शा और मंत्रिमंडलउन्होंने प्रधानमंत्री सहित पूरे स्वतंत्र भारत का खाका घोषित किया।
  24. अंडमान-निकोबार द्वीपों को स्वतंत्र घोषित कियाइन्हें 'शहीद' और 'स्वराज' नाम दिया गया।
  25. जापान के साथ रणनीतिक संबंधसैन्य और आर्थिक समर्थन जुटाया।
  26. गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ कहने वाले पहले नेतायह संबोधन उन्होंने बर्लिन से एक प्रसारण में दिया।
  27. गंभीर बीमारियाँ सहींफौज में रहते हुए उन्होंने मलेरिया और अन्य कठिनाइयों का सामना किया।
  28. सुभाष बाबू की रहस्यमयी मृत्यु – 18 अगस्त 1945 को ताइवान में विमान दुर्घटना में मृत्यु की खबर आई, लेकिन आज तक रहस्य बना हुआ है।
  29. नेताजी की विचारधाराउनका मानना था कि स्वतंत्रता बलिदान से मिलती है, प्रार्थनाओं से नहीं।
  30. युवाओं के प्रेरणास्रोतआज भी उनके नारों से युवा वर्ग ऊर्जा प्राप्त करता है।
  31. शिष्टाचार और अनुशासन के प्रतीक अंग्रेज़ भी उनके नेतृत्व और व्यवहार से प्रभावित रहते थे।
  32. विश्व राजनीति की समझहिटलर, मसोलीनी, टोजो जैसे विश्व नेताओं से मुलाकात कर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाया।
  33. 'नेताजी' की उपाधिउन्हें यह उपाधि जर्मनी और जापान के सैनिकों ने दी थी।
  34. सदियों तक अमर प्रेरणाउनका जीवन, निर्णय और नेतृत्व आज भी भारत के लिए पथप्रदर्शक हैं।

35.  नेताजी स्मृति दिवसआज भी लाखों देशवासी उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

💬 नेताजी से आज क्या सीखें?

  • निर्भीकता: विपरीत परिस्थितियों में भी नेतृत्व की भावना।
  • आत्मबल: अपनी राह स्वयं चुनने की शक्ति।
  • राष्ट्रीयता: भारत की स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानना।
  • वैचारिक दृढ़ता: गांधीजी से मतभेद के बावजूद आदर बनाए रखा।
  • वैश्विक दृष्टिकोण: दुनिया के देशों से सहयोग प्राप्त करने की कोशिश।

🙏 श्रद्धांजलि

नेताजी के विचार आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हम सबको यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके आदर्शों पर चलकर अपने देश, समाज और परिवार को मजबूत बनाएँ।

🕯️ जय हिंद! नेताजी अमर रहें!