Thursday, July 31, 2025

"मुंशी प्रेमचंद: समाज का दर्पण, साहित्य का सम्राट"


 "मुंशी प्रेमचंद: समाज का दर्पण, साहित्य का सम्राट"   

जयंती पर विशेष लेख (31 जुलाई)

लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा

"हमारी मानवता तब तक अधूरी है जब तक हम दूसरों के दुख को अपना न समझें।"
ये वाक्य मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक दर्शन की आत्मा हैं। 31 जुलाई, 1880 को जन्मे धनपत राय श्रीवास्तव, जिन्हें हम सब मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानते हैं, हिंदी और उर्दू साहित्य के वो स्तंभ हैं जिन्होंने कलम को समाज का आईना बना दिया। आज उनकी 145वीं जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनके अद्वितीय योगदान को याद करते हैं।

जीवन परिचय: एक शिक्षक, एक लेखक, एक क्रांतिकारी विचारक

प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस (अब वाराणसी) जिले के लमही गांव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया, जिससे जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। लेकिन अभावों में पला यह बालक एक दिन ‘कलम का सिपाही’ बन गया।

बचपन में ही उन्होंने उर्दू में लेखन शुरू किया और "नवाब राय" के नाम से कहानियाँ लिखीं। ब्रिटिश सरकार ने उनकी रचनाओं को विद्रोहात्मक’ कहकर प्रतिबंधित किया, लेकिन वे रुके नहीं — नाम बदलकर 'प्रेमचंद' बना और साहित्य का प्रवाह और तेज़ हुआ।

 लेखन शैली: यथार्थवाद की नई परिभाषा

प्रेमचंद ने भावनाओं से परे जाकर ‘यथार्थ’ को शब्दों में ढाला।  
उनकी कहानियाँ और उपन्यास समाज के दलितों, किसानों, स्त्रियों, मजदूरों और शोषित वर्ग की आवाज़ बन गईं। वे ‘आदर्शवाद’ और ‘संवेदना’ के बीच मानवीय मूल्यों की खोज करते थे।

उनकी भाषा में सहजता, सरलता और प्रभावशीलता थी। वे क्लिष्ट साहित्य को आम आदमी की भाषा में लेकर आए। यही कारण है कि गाँव का किसान हो या शहर का विद्यार्थी — हर वर्ग प्रेमचंद को पढ़ और समझ सकता है।

प्रमुख रचनाएँ:

उपन्यास: गोदान: एक किसान की त्रासदी और समाज की सच्चाई का अद्भुत चित्रण। गबन: मध्यमवर्गीय समाज की महत्वाकांक्षाओं की करुण कथा। रंगभूमि: अंधे भिखारी सूरदास के माध्यम से नैतिक बल की विजय। निर्मला: दहेज और स्त्री उत्पीड़न पर गहरी चोट।

कहानियाँ: कफन: गरीबी और नैतिकता की जटिलता को उधेड़ती कहानी। पूस की रात: किसान जीवन का यथार्थ चित्रण। ईदगाह: हामिद की मासूमियत और त्याग की मार्मिक कथा। ठाकुर का कुआँ: छूआछूत और जातीय भेदभाव पर करारा प्रहार।

 

मुंशी प्रेमचंद का सामाजिक दृष्टिकोण:

  • उन्होंने लेखन को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का औजार माना।
  • वे जातिवाद, सामंतवाद, दहेज प्रथा, नारी उत्पीड़न और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ थे।
  • उनके लेखन में गांधीवाद, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की छाप भी दिखाई देती है।

कलम का सिपाही’ और युग प्रवर्तक

प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज की आत्मा है। वे हिंदी कथा साहित्य को लोककथाओं से निकालकर यथार्थ की ज़मीन पर ले आए।      वे सिर्फ लेखक नहीं थे, आंदोलनकारी विचारक थे जिनकी कलम ने लोगों को सोचने, सवाल करने और बदलने की प्रेरणा दी।

जयंती पर श्रद्धांजलि

आज जब समाज फिर से वर्ग, भाषा, जाति और धर्म के विभाजन में उलझा है — प्रेमचंद का साहित्य और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है।

उनकी कहानियाँ आज भी हमें बताती हैं कि "सच्चा साहित्य वही है जो अंधकार में दीपक बनकर जले और समाज को रास्ता दिखाए।"

मुंशी प्रेमचंद केवल साहित्यकार नहीं, भारतीय समाज के नैतिक पथ-प्रदर्शक हैं।
उनकी कलम आज भी उतनी ही ताकतवर है जितनी सौ साल पहले थी। उनकी जयंती पर हमारा कर्तव्य है कि हम पढ़ें, समझें और उनके विचारों को अपने जीवन में उतारें।

"मुंशी प्रेमचंद अमर रहें। उनकी कलम चलती रहे — अन्याय के विरुद्ध और सच्चाई के साथ।"
वंदे मातरम्।

 

5 comments:

JITENDER DHAMIJA said...

Good job sir and Good information

Anonymous said...

मुंसी प्रेमचंद जी की रचनाओं में ग़रीबी, सामाजिक न्याय, आर्थिक असमानता आदि के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है । आपकी रचना ने काफ़ी कुछ वर्णन किया है ।🙏

Dr K S Bhardwaj said...

मुंशी जी की भाषा और शैली आम आदमी की भाषा और शैली है. कहानी ईदगाह इसका प्रमाण है. स्वर्गीय लेखक को नमन

Anonymous said...

मुंशी प्रेम चंद जी वास्तव में समाज का दर्पण और साहित्य के सम्राट थे। मैंने अपने दादा/दादी की प्रेरणा से हिन्दी साहित्य सदन (लाइब्रेरी) से लेकर दो बीघा जमीन, कफ़न, फूस की रात, ईदगाह, निर्मला, गबन एवं पर्दा जैसी अनेक साहित्य कृतियों को बचपन में पढ़ा था, आज भी मानस पटल पर अंकित है। इस लेख के लिए आपको साधुवाद।

Amit Behal said...

मुंशी प्रेमचंद जैसे विद्वानों की हिंदी साहित्य को अमूल्य देन वर्णित करने के लिए आपको साधुवाद💐🙏