"मूल्यांकन का आईना – स्वयं को देखें, दूसरों को नहीं"
लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा
जीवन में प्रसन्नता की खोज हम सब करते हैं। कोई
उसे रिश्तों में ढूंढता है, कोई उपलब्धियों में, तो कोई समाज में अपनी पहचान
में। पर क्या कभी हमने यह सोचा है कि जो सच्ची प्रसन्नता है, वह दूसरों के
आचरण या सफलताओं को आंकने में नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने में छुपी होती है?
यह उद्धरण हमें यही सिखाता है:
"प्रसन्न वो है
जो खुद का स्वयं मूल्यांकन करते हैं,
परेशान वो है जो हमेशा दूसरों का मूल्यांकन करते रहते हैं।"
जब हम दूसरों की तुलना में व्यस्त रहते हैं,
हम न केवल
स्वयं को भ्रमित करते हैं बल्कि अपना आत्मबल भी खो बैठते हैं। दूसरों की आलोचना या
तुलना करने से न हमारी स्थिति बेहतर होती है, न ही मन शांत रहता है।
बल्कि हम अपने भीतर की शक्ति को अनदेखा कर देते हैं।
वहीं जो व्यक्ति अपने आचरण, सोच, व्यवहार और
गलतियों का विश्लेषण स्वयं करता है — वह आगे बढ़ता है। आत्ममूल्यांकन हमें सजग
बनाता है, और प्रसन्नता का एक स्थायी स्रोत देता है। क्योंकि हम तब दूसरों की नहीं,
बल्कि अपनी
यात्रा पर केंद्रित रहते हैं।
इसका सबसे बड़ा लाभ क्या है?
जब हम स्वयं को
समझने लगते हैं, तो हमें दूसरों को समझने की जरूरत नहीं पड़ती — हम सहिष्णु,
सरल और
शांतचित्त हो जाते हैं। जीवन के हर मोड़ पर हमारा आत्मविश्लेषण ही हमें सही मार्ग
दिखाता है।
आज के इस दौड़ते युग में, जहां हर कोई दूसरों की
जिंदगी को आंकने में लगा है — क्यों न हम थोड़ा रुकें, और अपने भीतर झांकें। वहीं
से हमें वह रोशनी मिलेगी जो जीवन को दिशा देगी। आत्ममूल्यांकन की आदत डालिए — यही
सच्चे सुख का मार्ग है।

8 comments:
Very true , self evaluation is the key to success. When we point a finger towards someone remember three fingers are pointing to your self.
So nice. Thanks a lot.
Right sir . When you do your self evaluation you Realy lives an happy and meaningful life.So nice said .
Thanks a lot
Very inspirational and true 👍
Thanks a lot.
वैसे भी जब हम दूसरे की तरफ उंगली उठाते हैं तो तीन उंगलियां अपनी तरफ जो उठती हैं वह स्व - मूल्यांकन के लिए ही इशारा करती हैं...
Agreed
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