हर कान सुरक्षित नहीं होता
लेखक: आचार्य
रमेश सचदेवा
इस शोरगुल भरी दुनिया में — जहां हर ओर से राय, सलाह, शिकायतें और
गॉसिप सुनाई देती हैं — हम अक्सर एक वाक्य सुनते हैं: “मैं सुनने को
तैयार हूं।” इसका अर्थ होता है कि सामने
वाला समझने और सहानुभूति रखने को तैयार है।
लेकिन क्या
वास्तव में हर किसी को अपनी बातें बताना ठीक है?
सच्चाई यह है: हर कान सुरक्षित नहीं होता — न बोलने के लिए,
न सुनने के लिए।
1. जो कान बातों को तोड़-मरोड़ देते हैं
कुछ कान सिर्फ सुनते नहीं — बातों को बिगाड़ते भी हैं।
जो बात आप
विश्वास से कहते हैं, वह किसी की चटपटी कहानी बन जाती है। ऐसे कान अक्सर ढीली ज़ुबानों और अफवाह उड़ाने वाले मनों से जुड़े होते हैं।
इन कानों में
बात कहने का मतलब है — अपनी शांति और प्रतिष्ठा को खतरे में डालना।
2. जो कान समझने से पहले ही जज करते हैं
कुछ लोग सुनते नहीं, तुरंत निर्णय सुना देते हैं।
आप अपनी बात
पूरी भी नहीं करते और वे नतीजा निकाल लेते हैं।
ऐसे कान
असुरक्षित होते हैं — ये न तो भावनाओं को जगह देते हैं, न ही आत्मिक विकास को। इनके
सामने बोलना कोर्ट में खड़े होने जैसा लगता है,
न कि किसी
सुरक्षित स्थान पर।
3. जो कान सत्य को सुनना ही नहीं चाहते
कुछ कान चुनिंदा बातें ही सुनते हैं —
वही जो उनके नजरिए को सही साबित करें।
सुझाव, सुधार और ज्ञान
— ये सब उनके लिए अनसुना होता है।
ये कान इसलिए
असुरक्षित नहीं हैं कि जवाब देंगे, बल्कि इसलिए कि वे खुद को
बदलना ही नहीं चाहते।
ऐसे लोग
रिश्तों को तोड़ते हैं, सीखने की प्रक्रिया को रोकते हैं और विकास में बाधा बनते
हैं।
4. जो कान आपकी बातों का फायदा उठाते हैं
कभी-कभी आप अपने संघर्ष या सपनों की बात शेयर करते हैं, और बदले में धोखा मिलता है।
कुछ कान आपकी
बातों को अपने स्वार्थ, जलन या चालाकी के लिए इस्तेमाल करते हैं।
ऐसे कानों पर
भरोसा करने से आपको भावनात्मक, सामाजिक और
व्यावसायिक नुकसान हो सकता है।
5. जो कान आपको थका देते हैं
कुछ कान दिखते तो सहानुभूति से भरे हैं, लेकिन असल में वे भावनात्मक बोझ बन जाते हैं।
वे आपको नकारात्मकता, तुलना और शिकायतों में उलझा देते
हैं।
ऐसी बातचीत के
बाद आप और भी अधिक थके, उलझे और कमजोर महसूस करते हैं।
सुरक्षित कान
सशक्त करते हैं, असुरक्षित कान थका देते हैं।
🟢 तो, कौन-से कान
होते हैं सुरक्षित?
- सहानुभूति
हो, दया नहीं
- गोपनीयता
हो, जिज्ञासा नहीं
- उपस्थित
होना चाहिए, दिखावा नहीं
- बुद्धिमत्ता
हो, जल्दबाज़ी नहीं
- विकास हो,
गॉसिप नहीं
एक सुरक्षित कान सुकून देता है, आपकी रक्षा
करता है और आपको निखारता है।
ऐसे कान दुर्लभ
होते हैं — और अनमोल भी।
🔔 आज के युग में जहां बोलना
आसान है, लेकिन सुनना दुर्लभ, वहां ये याद रखें:
हर कान
सुरक्षित नहीं होता।
हर जगह दिल
खोलकर बात करना ठीक नहीं।
अपनी सच्चाई को लापरवाह कानों से बचाकर रखें।
और सबसे ज़रूरी —
खुद ऐसे इंसान
बनें, जिसका कान दूसरों के लिए भरोसेमंद, शांतिदायक और
समझदार हो —
क्योंकि यह
दुनिया ऐसे ही लोगों से बेहतर बन सकती है,
जो सुनते हैं —
और भरते हैं, न कि तोड़ते हैं।
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