Saturday, July 19, 2025

"हार की महिमा – एक सूफ़ियाना दृष्टिकोण"


"हार की महिमा – एक सूफ़ियाना दृष्टिकोण"
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा 

"जीत जीत तुमने उम्र गुजारी, अब तो हार फकीरा।
जितका मोल चार कौड़ियां, और हार का मोल हीरा।"

इन दो पंक्तियों में जीवन का गूढ़ सत्य छिपा है — एक ऐसा सत्य जिसे केवल अनुभवी हृदय, आत्मा के पारखी, और फ़कीरी भाव में जीने वाले ही समझ सकते हैं।

🧭 जीत की कीमत?

सारी उम्र हम जीतने में लगा देते हैं — किसी से आगे निकलने की दौड़ में, पद-प्रतिष्ठा की होड़ में, दुनिया को कुछ साबित करने की जद्दोजहद में। ये जीतें भले ही हमें थोड़ी देर के लिए संतोष दें, लेकिन भीतर से हम खोखले ही रह जाते हैं। क्योंकि ये जीतें ‘बाहरी’ हैं — दिखावे की, अहंकार की। और इनका मूल्य? "चार कौड़ियां।"

💎 हार की असली चमक

जब कोई व्यक्ति सच्चे अर्थों में "हारना" सीखता है — अपने ‘अहं’ से, अपने ‘स्वार्थ’ से, अपने ‘लोभ’ से — तभी वह आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है। यही हार "हीरे" के समान है। यह वह क्षण होता है जब इंसान खुद को पहचानता है, खुदा से जुड़ता है, और जीवन के सही मायने समझता है।

🎵 सूफी संतों की दृष्टि

सूफी विचारधारा में आत्मविजय को सर्वोच्च माना गया है। वे कहते हैं — बाहर की दुनिया में हज़ार जीतें भी तुम्हें सुख नहीं देंगी, जब तक तुम अपने अंदर के मोह, क्रोध, और लालच से नहीं हारते।

इस चित्र में दिखाए गए संत की मुस्कान और साज की झंकार यही कहती है — अब जो जीतना है, वह आत्मा में उतरकर जीतो। जो हारना है, वह अपने ही झूठे 'मैं' से हारो। वही सच्चा रूहानी मार्ग है।

आओ इस जीवन में एक बार "फकीरा" बनकर देखें — जो न किसी से ऊपर है, न नीचे। जो न जीत में डूबा है, न हार में टूटा। बस सच्चाई को पहचानो — क्योंकि हार की चुप्पी में ही आत्मा की आवाज़ सुनाई देती है।

 

4 comments:

Sudesh Kumar Arya said...

प्रभु कृपा से नर तन यह पाया,
आलसी बनकर यूँ ही गँवाया
उल्टी हो गई मती,
करके अपनी क्षति, चोला त्यागा
साथी सारे जगे, तू न जागा,
॥ बेला अमृत गया...॥

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Excellent

Anonymous said...

आचार्य जी आपने बहुत खूब वर्णन किया है ।बाहरी वस्तुओं से सुख मिल सकता है स्कून नहीं वो आत्मा की यात्रा से मिलेगा ।

Amit Behal said...

हार ही हमें जीत की तरफ बढ़ने का रास्ता दिखलाती है