"कैमरे की नज़र में बचपन: सीबीएसई का निर्णय – सुधार या बोझ?"
आचार्य रमेश सचदेवा
लेखक एवं विचारक
सीबीएसई द्वारा विद्यालयों में निगरानी बढ़ाने के उद्देश्य से सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश जारी किया गया है। इस कदम का उद्देश्य है – नकल, अनुशासनहीनता या असामाजिक गतिविधियों पर अंकुश लगाना। परंतु क्या यह आदेश व्यवहारिक, आवश्यक और लाभकारी है? क्या यह बच्चों, शिक्षकों और विद्यालयों की वास्तविकताओं को समझे बिना लिया गया निर्णय है?
1. गलती को खोजने में पूरा दिन – शिक्षण कार्य का हनन
जब किसी छात्र की गलती का "सबूत" कैमरे में ढूंढना होता है, तो अक्सर एक शिक्षक या प्रधानाचार्य को पूरा दिन रिकॉर्डिंग खंगालने में लगाना पड़ता है।
यह केवल समय की बर्बादी नहीं, बल्कि उस दिन के अन्य शिक्षण कार्य, बैठकों और अभिभावकों से संवाद पर भी विपरीत प्रभाव डालता है।
शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, जांच अधिकारी बनाना नहीं।
2. हर समय कैमरे चालू रखना – तकनीकी और आर्थिक रूप से असंभव
बहुत से सरकारी व निजी स्कूलों में बिजली की कमी, खराब नेटवर्क, और उपकरणों की नियमित देखरेख की समस्या होती है।
हर समय कैमरे चालू रहें, रिकॉर्डिंग सुरक्षित हो, और हर गतिविधि कैप्चर हो – यह केवल कागज़ों पर संभव है, व्यवहार में नहीं।
क्या सीबीएसई ने यह सोचा कि अगर कैमरे बंद मिले तो विद्यालय को दोषी मान लिया जाएगा?
3. माता-पिता को बुलाकर वीडियो दिखाना – क्या यह व्यावहारिक है?
सीबीएसई के आदेश के अनुसार यदि कोई घटना होती है तो स्कूल को माता-पिता को बुलाकर वीडियो दिखाना होगा।
परन्तु किसी भी वीडियो में घटना को पूर्ण रूप से स्पष्ट देख पाना मुश्किल होता है।
इसके अलावा, तकनीकी दिक्कतें, रिकॉर्डिंग की गुणवत्ता, और माता-पिता की व्याख्या अलग-अलग हो सकती है।
यह प्रक्रिया केवल विवाद और तनाव को बढ़ाती है, समाधान को नहीं।
4. स्कूलों पर आर्थिक बोझ – कौन देगा इसका उत्तरदायित्व?
एक कक्षा में कैमरे लगाने, डीवीआर सिस्टम, स्टोरेज, तकनीकी कर्मचारी, मेंटेनेंस – ये सभी खर्च हजारों रुपये में होते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल, कम बजट वाले निजी विद्यालय या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल इन खर्चों को कैसे वहन करेंगे?
सीबीएसइ या सरकार ने कोई अनुदान योजना, तकनीकी सहायता या प्रशिक्षण की बात नहीं की है।
5. सुधार का विकल्प – शिक्षा में विश्वास और संवाद
सीबीएसई बच्चों को डराकर नहीं, समझाकर सुधारें – यही शिक्षा की मूल भावना है।
सीबीएसई विद्यालयों को चाहिए कि वे नैतिक शिक्षा, मूल्य आधारित कार्यशालाएं और अभिभावक-शिक्षक संवाद जैसे विकल्प अपनाएं।
सीबीएसई को सलाह दी जानी चाहिए कि वह आदेशों से पहले जमीनी हकीकत और शिक्षकों की राय सुने।
सीबीएसई का कैमरा आधारित निगरानी आदेश उद्देश्य से भले ही अच्छा हो, पर उसकी व्यावहारिकता, आर्थिक भार और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
शिक्षा का कार्य सुधारना है, सतर्कता केंद्र बनाना नहीं। कैमरे सीमित उपयोग के लिए ठीक हैं, पर उन्हें बच्चों के हर क्षण का प्रहरी बना देना दूरदर्शिता नहीं, अतिवाद है।
"जब शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों को दिशा देना हो, तो हर कोने में शक की नज़र नहीं, विश्वास का प्रकाश होना चाहिए।"
8 comments:
आज के युग में शिक्षा को औपचारिकता ने जकड़ रखा है l
Education and decisions in this field must be taken with holistic and child-centric approach...
कैमरे बच्चों और शिक्षिकों के सुझाव के बिना नहीं लगाने चाहिए । आपका लेख बहुत अच्छा है ।
Totally wrong orders...
Exactly.
But no improvement has been found yet.
Right
Yes.
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