☕ सुबह की पहली चाय – एक अनुभव, एक शुरुआत
लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा
सुबह की पहली किरण जब खिड़की के पर्दे को छूती
है, तो मन धीरे-धीरे नींद के आवरण से बाहर आने लगता है। उस पल जो चीज़ सबसे पहले
याद आती है — वो है सुबह की पहली चाय।
यह चाय सिर्फ एक पेय नहीं होती, यह एक संकेत होती है — कि एक नया दिन शुरू हो गया है।
बिस्तर से उठकर रसोई तक का छोटा-सा सफर हो या
बालकनी में बैठकर धूप में पहली घूंट लेना — सुबह की पहली चाय हमारे जीवन की सबसे
सादगीभरी लेकिन सबसे जरूरी रस्मों में से एक है। उसमें ना कोई तामझाम होता है,
ना कोई दिखावा
— बस होता है एक आत्मीय स्पर्श, एक मन की बात, एक सुकून की चुप्पी।
कभी यह चाय माँ के हाथों से बनी होती है — जिसमें सिर्फ दूध और पत्ती नहीं, बल्कि
ममता और परवाह की मिठास घुली होती है।
कभी यह अपने ही हाथों की बनाई होती है — जो खुद को देने वाला एक स्नेह-भरा तोहफा होती
है।
कभी यह साथी के साथ ली जाती है, और चाय का स्वाद उस मुस्कान में घुल जाता है जो शब्दों से
कहीं ज्यादा कहती है।
चाय के साथ-साथ जो चलती है वो होती है — दिन की पहली
सोच।
"आज क्या करना है?"
"कल क्या छूट गया?"
"कैसे और बेहतर बना सकते हैं इस जीवन को?"
सुबह की पहली चाय हमें दिनभर की तैयारी का भाव
देती है। यह शरीर को ऊर्जा देती है, लेकिन उससे भी अधिक मन को स्थिरता
और आत्मबल देती है। कभी यह चिंतन का समय बनती है, तो कभी एकांत का सबसे मधुर साथी।
🔹 चाय – एक संवाद का माध्यम
चाय के साथ कई रिश्ते शुरू होते हैं —
पहली मुलाकातों
में अक्सर "एक कप चाय" की पेशकश से बात आगे बढ़ती है।
पारिवारिक
चर्चाएँ, दफ्तर की मीटिंग, दोस्ती की गहराइयाँ — सबमें कहीं न कहीं चाय की भूमिका होती
है।
सुबह की पहली चाय हमारे दिन का पहला संकेत है कि हम अभी भी जीवित हैं, सक्रिय हैं, सोच सकते हैं,
मुस्कुरा सकते
हैं। यह हमें स्मरण कराती है कि हर दिन एक नया मौका है, और यह चाय उसका स्वागत करने
वाला पहला कदम।
तो अगली बार जब आप सुबह की पहली चाय लें — सिर्फ
उसे पीजिए नहीं, जी लीजिए।
5 comments:
चाय की खूबसूरत व्याख्या l
खूब जमेगी महफिल जब मिल बैठेंगे दोस्त चाय के साथ...😊
धन्यवाद जी
बिल्कुल जी । आ जाओ आज महफ़िल सजाते हैं
दिन की शुरुआत अपने जीवन साधी के साथ रिटायरमेंट लाइफ में चाय पीने का नजारा ही कुछ और है ।ना कोई जल्दी न कोई फ़िकर बस चलते जाना है उसके बाद टहलने । क्या आनंद है इस लाइफ का ।
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