10 नवम्बर विशेष
लेख
✍️
आचार्य रमेश
सचदेवा
10 नवम्बर को प्रतिवर्ष मनाया
जाने वाला विश्व विज्ञान दिवस (शांति और विकास के लिए विज्ञान)
केवल विज्ञान
की उपलब्धियों को याद करने का दिन नहीं है — यह दिन विज्ञान को शांति, न्याय, और सतत विकास से जोड़कर देखने का एक वैश्विक प्रयास है। इसकी
शुरुआत युनेस्को द्वारा की गई थी ताकि विज्ञान और समाज के बीच की दूरी को कम
किया जा सके।
विज्ञान – केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं
विज्ञान कोई 'बोतलों और बीकरों' तक सीमित विषय नहीं है। यह जीवन का दृष्टिकोण है
—
- कैसे हम
अपने समस्या सुलझाने के तरीकों को बेहतर
बनाते हैं,
- कैसे हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर
विकास करते हैं,
- और कैसे
हम तकनीक का उपयोग करके शांति,
स्वास्थ्य और समानता की ओर
बढ़ते हैं।
विज्ञान और शांति – विरोधाभास नहीं, समाधान हैं
कई बार यह सोचा जाता है कि विज्ञान और युद्ध साथ-साथ चलते हैं — लेकिन यही
अधूरी दृष्टि है।
वास्तव में,
विज्ञान ही वह
शक्ति है जो:
- बीमारियों
के इलाज ढूंढता है,
- सूखे,
बाढ़ और भूकंप से बचाव
के उपाय करता है,
- और साक्षरता, ऊर्जा और जल जैसे मुद्दों पर टिकाऊ समाधान लाता है।
🔸 परमाणु हथियार विनाश कर
सकते हैं, लेकिन परमाणु ऊर्जा उजियारा भी दे सकती है।
🔸
ड्रोन से
जासूसी हो सकती है, लेकिन वहीं से खाद्यान्न भी पहुंचाया जा सकता है।
इसलिए विज्ञान,
दिशा मांगता है
— उद्देश्य नहीं खोता।
विकास – केवल GDP नहीं, वैज्ञानिक
चेतना है
एक समाज का विकास केवल उसकी अर्थव्यवस्था से नहीं, बल्कि इस बात से तय होता है
कि:
- वह अपने
बच्चों को कितना जिज्ञासु बनाता है,
- युवा
पीढ़ी को कितना वैज्ञानिक दृष्टिकोण देता है,
- और
विज्ञान को सुलभ और सामाजिक बनाता है या नहीं।
विज्ञान का मतलब है – सवाल पूछने की आज़ादी और
समाधान खोजने की ज़िम्मेदारी।
जब विज्ञान अपने उद्देश्य से भटक गया...
हम स्वीकार करें या नहीं, पर यह कटु सत्य है कि जब से विज्ञान का प्रयोग युद्धों में हुआ है — बम, ड्रोन, जैविक हथियार, साइबर अटैक — तब से विज्ञान अपने मूल उद्देश्य "शांति
और विकास" से भटकता हुआ दिखाई दिया है।
विज्ञान का जन्म मानवता की सेवा के लिए हुआ था, लेकिन जब वह सत्ता, वर्चस्व और विध्वंस के उपकरणों में बदल गया, तब विज्ञान एक प्रकाश नहीं, बल्कि संकट का कारण बनने लगा।
विज्ञान नीरहित नहीं होता, उसका भी एक चरित्र और दिशा होती है।
और वह दिशा जब विनाश की ओर
मुड़ती है, तब विज्ञान स्वयं अपने ही जनक से प्रश्न पूछता है।
इसलिए अब समय आ गया है कि हम विज्ञान की दिशा को पुनः मूल्यांकित करें —
- क्या वह विकासशील देशों की सेवा कर रहा है,
- क्या वह जलवायु संकट का समाधान दे रहा है,
- क्या वह समानता और समावेशिता को बढ़ा रहा है या फिर वो
केवल सत्ता और
तकनीकी वर्चस्व की दौड़ में ईंधन
बनता जा रहा है?
हमें क्या करना चाहिए?
विज्ञान को पुनः अपने मूल में लौटना होगा — जहां हर आविष्कार में करुणा हो, हर खोज में संवेदना हो, और हर प्रयोग में शांति की सम्भावना हो।
- विद्यालयों
में विज्ञान को परीक्षा का विषय नहीं, अनुभव का
विषय बनाएं।
- गाँव और
पिछड़े क्षेत्रों में वैज्ञानिक जागरूकता के शिविर हों।
- बच्चों को
प्रयोग करने, असफल होने और फिर से प्रयास करने की आज़ादी दें।
- विज्ञान
को धर्म या राजनीति के चश्मे से न देखें — यह मानवता का सार्वभौमिक उपकरण है।
विज्ञान का असली उद्देश्य यह नहीं कि हम चाँद पर जाएं, बल्कि यह है कि धरती पर कोई
भूखा न रहे।
विज्ञान का
अर्थ यह नहीं कि हम कितनी दूर देख सकते हैं, बल्कि यह है कि हम दूसरों
की पीड़ा को कितना गहराई से देख सकते हैं।
इस विश्व विज्ञान दिवस पर हम सब मिलकर
यह संकल्प लें कि हम विज्ञान को केवल तकनीकी ज्ञान नहीं, एक मानवीय उत्तरदायित्व के रूप में स्वीकार करेंगे — ताकि विज्ञान, शांति और विकास दोनों का
वाहक बन सके।
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2 comments:
वैज्ञानिक सोच की आवश्यकता पर कोई मूर्ख ही प्रश्न उठा सकता है. सामयिक आलेख.
Thanks a lot
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